Wednesday 21 September 2022

सच्चिदानंद सिंह / आइंस्टीन के शब्दों में सापेक्षता (4)

10. 'दूरी' की धारणा की सापेक्षता
हम अपनी लम्बी ट्रेन में दो बिंदुओं, मानिये पहले और सौवें डिब्बे के मध्यस्थ निन्दुओं, के बीच की दूरी जानना चाहते हैं. सीधा तरीका है कि कोई आदमी गज या मीटर लेकर उन दो बिंदुओं को मिलाती सरल रेखा को नापना शुरू कर दे. 

लेकिन अगर हम यही दूरी ट्रेन के अंदर नहीं, बाहर नापना चाहें तो? मानिये ट्रेन के दो बिंदु जिनके बीच की दूरी हम नापना चाहते हैं A' और B' हैं. ये दोनों ट्रेन में हैं इसलिए v रफ़्तार से चलते जा रहे हैं. पहले हमे ट्रेन के बाहर दो बिंदु A और B खोजने पड़ेंगे जिन्हे एक ही समय (मानिये t समय) A' और B', क्रमशः पार करते हैं. अध्याय 8 में दिए गए तरीके से (एक समान बनी घड़ियों को 'मिला कर' अनेक जगहों पर रख कर) समय नाप कर हम A और B की स्थिति जान सकेंगे. तब गज या मीटर की मदद से A और B के बीच की दूरी हम जान सकते हैं. क्या यह दूरी वही रहेगी जो A' और B' के बीच चलती ट्रेन में मिली थी? 

कोई पूर्व सिद्ध कारण नहीं है कि ऐसा हो ही! ये भिन्न हो सकते हैं. 

(अब तक आइंस्टीन ऐसी विलक्षण बातों के कारण तर्क से समझाते आये हैं. अब नहीं. अब गणित से ही कारण समझे जा सकते हैं और इस किताब को गणित से यथासम्भव दूर रखा गया है.)

ट्रेन की लम्बाई जो बाहर से नापी जाएगी वह चलती ट्रेन के अंदर से नापी गयी लम्बाई से भिन्न हो सकती है.  यह गति के योग के नियम पर एक दूसरी आपत्ति है -   
पहली थी कि चलती गाडी का एक सेकण्ड जमीन के एक सेकण्ड के समतुल्य नहीं है; दूसरी आपत्ति होगी कि चलती गाडी का मीटर (या गज या ..) जमीन पर के मीटर से भिन्न है!

11. लॉरेंज़ परिवर्तन
पिछले तीन अध्यायों से यह स्पष्ट है कि क्लासिकी मैकेनिक्स की इन दो अनुचित परिकल्पनाओं के चलते हम प्रकाश की गति के नियम को सापेक्षता के सिद्धांत से  मेल खाते नहीं देखते थे:

1. दो घटनाओं के बीच काल का अंतराल (समय) उन कोआर्डिनेट सिस्टम्स की गति से स्वतंत्र है जिनमें वे घटनाएं घटित होती हैं. 
२. दो घटनाओं के बीच दिशा (अर्थात स्पेस) का अंतराल (दूरी) उन कोआर्डिनेट सिस्टम्स की गति से स्वतंत्र है जिनमें वे घटनाएं घटित होती हैं.

यदि इन परिकल्पनाओं को छोड़ दिया जाए तब अध्याय 7 में वर्णित दुविधा नहीं रहेगी, क्योंकि वह दुविधा अध्याय 6 में वर्णित गति के योग के नियम पर आधारित है जो इन परिकल्पनाओं को छोड़ने पर वैध नहीं रहता. 

यब यह असंभव नहीं लगता कि प्रकाश की गति का नियम सापेक्षता के सिद्धांत के विरुद्ध नहीं हो. उस स्थिति में हमें देखना है कि कैसे हम गति के योग के नियम (अध्याय 6) में कुछ परिवर्तन लाएं - ऐसे परिवर्तन कि ये दोनों (प्रकाश की गति का नियम और सापेक्षता  सिद्धांत) असंगत नहीं रहें. अध्याय 6 में हम जगह (स्थिति / बिंदु) और समय, दोनों को दो कोआर्डिनेट सिस्टम्स में पाते हैं - एक रेल लाइन का कॉओर्डिनटे सिस्टम जो स्थिर है और दूसरा ट्रेन का, जो v  की रफ़्तार से  एक दिशा में (दाहिनी तरफ) जा रहा है.

समस्या को दूसरे शब्दों में इस प्रकार रखा जा सकता है: किसी घटना की जगह और उसका समय, जो हम एक सिस्टम में जानते हैं. उस जगह (बिंदु) और समय के मान दूसरे सिस्टम में क्या होगा? क्या हम उनके बीच (दो सिस्टम में बिंदु और समय के मानों के बीच) किसी ऐसे सम्बन्ध की कल्पना कर सकते हैं जिससे प्रकाश की गति का नियम और सापेक्षता का सिद्धांत परस्पर अविरुद्ध रहें?  कोई ऐसा सम्बन्ध, जिससे प्रकाश की हर किरण की गति रेल लाइन की अपेक्षा और ट्रेन की भी अपेक्षा एक ही (c) रहे? इस प्रश्न का एक निश्चित उत्तर मिलता है - एक ऐसा नियम जिससे हम जान सकते हैं कि एक कोआर्डिनेट सिस्टम के किसी घटना के दिशा-काल के मान क्या होंगे जब कोआर्डिनेट सिस्टम परिवर्तित हो जाए.

आगे बढ़ने के पहले एक स्पष्टीकरण आवश्यक  है. अब तक हमारे दो संदर्भ - दो कोआर्डिनेट सिस्टम - ट्रेन और रेल के थे. इनमे घटनाएं एक सरल रेखा में हो / बढ़ रहीं थीं. लेकिन हमारा कॉओर्डिनेट सिस्टम तीन आयामी है - जैसा अध्याय 2 में हमने देखा था (कनॉट प्लेस दिल्ली के ऊपर बादल). कहीं भी कोई घटना घटे उस की जगह (स्थिति, बिंदु) इस कोआर्डिनेट सिस्टम में देखी / जानी या समझी जा सकती है. इसी तरह v के रफ़्तार से चलती ट्रेन का कोआर्डिनेट सिस्टम भी सम्पूर्ण दिशाओं (स्पेस) में व्याप्त रहता माना जा सकता है. और कोई घटना, चाहे कहीं भी घट रही हो, उसकी स्थिति इस कोआर्डिनेट सिस्टम में भी देखी / जानी या समझी जा सकती है.

ये दो कोआर्डिनेट सिस्टम, हमेशा एक दूसरे के बीच पड़ते रहेंगे. और इस बात को हम कोई महत्व नहीं देंगे. हर सिस्टम में हम कल्पना करेंगे कि तीन समधरातल (प्लेन्स) हैं जो एक-दूसरे पर लंबवत हैं. (देखें अध्याय 2. कड़ी 1.)  
   
अब हम इन दो कोआर्डिनेट सिस्टम्स को नाम देते हैं. रेललाइन से जुड़ा सिस्टम K है और ट्रेन से जुड़ा K'. कोई घटना दिशा (स्पेस) में कहीं हो रही हो, K में उसकी स्थिति उस बिंदु से तीन समधरातलों पर गिरते लंबवतों के मान  x, y, और z से ज्ञात हो जाएंगे. उसी घटना की स्थिति K' में उस बिंदु से K' के तीन समधरातलों पर गिरते लंबवतों के मान x', y', और z' से ज्ञात हो जाएंगे. 

हम जानते हैं कि कोई घटना सिस्टम K में काल t पर, एक ऐसे बिंदु पर घटी जिससे K के समधरातलों पर लंबवतों के मान क्रमशः x, y, और z है. हमें जानना है कि उसी जगह (बिंदु) से सिस्टम K' के तीन धरातलों पर गिरते लम्बवतों के मान क्या होंगे? यदि वे x', y', और z' हैं तो इनके x, y, और z से क्या सम्बन्ध हैं? इसी तरह,  यदि K में घटना काल t है तो K' में घटना काल t’  से t के क्या संबंध हैं? 

स्मरण रहे, इस संबंधों को हम इस तरह  हैं कि उनसे प्रकाश की गति का नियम दोनों सिस्टम में लागू होता दिखे.

टिप्पणी में कुछ चित्र  दिए गए हैं. पहला चित्र दो कोआर्डिनेट सिस्टम को दिखा रहा है - ये हमारे उदाहरण के अनुरूप हैं. यानी एक सिस्टम स्थिर है और दूसरा बस एक्स ऐक्सिस की दिशा में v रफ़्तार से बढ़ रहा है. ऐसे दो सिस्टम में दिशा-काल के किसी बिंदु को एक सिस्टम से दूसरे सिस्टम में स्थिति जानने के लिए कोऑर्डिनटस के परिवर्तित मान जानने का सूत्र लॉरेंज़ ने दिया है. वह सूत्र है: 
x’ = (x-vt)/sqrt(1-v^2/c^2). 

इसे भी एक चित्र के रूप में टिप्पणी में रखा गया है जिसे समझने में आसानी होगी. y' और z' के मान y और z के बराबर रहेंगे. (K' बस एक्स ऐक्सिस की दिशा में बढ़ रहा है.) t' के लिए सूत्र कुछ अधिक जटिल है: 
t’ = (t-x.v/c^2)/ sqrt(1-v^2/c^2). 
इसे भी टिप्पणी में चित्र के रूप में रखा गया है.

(आइंस्टीन ने परिशिष्ट में दिखाया है कि लॉरेंज़ के सूत्र निकालने की एक सरलीकृत विधि दी है. मैं उसे नहीं दे रहा हूँ. सापेक्षता, या फिर किसी जटिल विषय, को ऐब्स्ट्रैक्शन के विभिन्न स्तरों पर समझा जा सकता है.)

ये समीकरण लॉरेंज़ परिवर्तन (ट्रांसफॉर्मेशन) कहलाते हैं. यदि हम प्रकाश की गति को न लेकर, क्लासिकी मैकेनिक्स की धारणा लें  - दूरी और समय निरपेक्ष और अपने में सम्पूर्ण हैं तब हमें इन समीकरणों की जगह ये समीकरण मिलते:
x’ = x-vt
y’ = y
z’ = z 
t’ = t
इन समीकरणों को प्रायः गैलीलियन ट्रांसफॉर्मेशन कहा जाता है. ध्यातव्य है कि लॉरेंज परिवर्तन में प्रकाश की गति यदि 'अनंत' रख दी जाए तो हमें गैलीलियन ट्रांसफॉर्मेशन के समीकरण मिल जाते हैं.

लॉरेंज़ के परिवर्तन नियमों से हम देख सकते हैं कि प्रकाश की गति का नियम और सापेक्षता के सिद्धांत के बीच कोई विरोध नहीं रहा यानी प्रकाश की गति स्थिर और चलायमान कोआर्डिनेट सिस्टम्स में एक समान रहती है.    

कल्पना करिये कि K सन्दर्भ में ट्रेन की दिशा में एक टॉर्च जलाया जाता है. t समय में टॉर्च की रोशनी x दूरी तय करेगी जो ct के बराबर होगी, c प्रकाश की गति है. अब हम x' और t' के मान लॉरेंज़ केसमीकरणों से निकालते हैं:
x’ = (x-vt)/sqrt(1-v^2/c^2)          ……… (1)
t’ = (t-x.v/c^2)/ sqrt(1-v^2/c^2) ……… (2)

समीकरण (1) को (2) से विभाजित करने पर हमे मिलता है (x'/t') = c या x' = ct'. यानी K' सन्दर्भ में t के समतुल्य समय में प्रकाश कितनी दूरी तय करेगा उसे जानने के लिए हमे प्रकाश की उसी गति को t के समतुल्य समय से गुणा करना है, जिस गति को हम स्थिर सन्दर्भ (कोआर्डिनेट सिस्टम) में पाते हैं. 

इसमें कोई  आश्चर्य नहीं है, क्योंकि लॉरेंज़ ने अपने समीकरण इसी आधार पर खोजे थे कि प्रकाश की गति दोनों कोआर्डिनेट सिस्टम्स में एक समान रहे. लेकिन इसके परिणाम आश्चर्यजनक लगेंगे. अगली कड़ी में हम देखेंगे कि इसके अनुसार चलायमान वस्तु की गति की दिशा में लम्बाई कम होजाएगी! जितनी तेजी से चले, उतनी कम! 
(क्रमशः)

सच्चिदानंद सिंह 
Sachidanand Singh

आइंस्टीन के शब्दों में सापेक्षता (3) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/09/3_30.html

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