Friday 30 September 2022

सच्चिदानंद सिंह / आइंस्टीन के शब्दों में सापेक्षता - रिलेटिविटी (11)

20. गुरुत्वाकर्षी मात्रा और जड़त्वीय मात्रा का बराबर होना सामान्य सापेक्षता का एक प्रमाण ~

ब्रह्माण्ड (आकाश) के एक खंड की कल्पना करें जो किसी तारा या वैसी वस्तु से इतना दूर है कि हम निश्चिन्त हो कर मान सकते हैं कि यहाँ गैलिलिओ का वह मूलभूत नियम लागू होगा - यदि कोई वस्तु इस खंड में स्थिर है तो वह स्थिर रहेगी और यदि कोई वस्तु चलायमान है तो वह एकभाव गति से सरलरेखा में चलती रहेगी. अब कल्पना करें कि वहाँ एक बड़ा सा बक्सा है - एक कमरे के बराबर - जिसके अंदर एक व्यक्ति है. वहाँ कोई गुरुत्वाकर्षण नहीं है जो उस व्यक्ति के पैरों को बक्से की फर्श से लगाए रखे. उस मनुष्य ने अपने को फर्श से बाँध रखा है अन्यथा अपने पैरों के हल्के आघात से भी वह बक्से की छत की तरफ चला जाएगा. 

अब कल्पना करें कि बक्से की छत के केंद्र से एक रस्सी लटकी हुई है जो बक्से के बाहर, बहुत दूर,  किसी कील से लटक रही है. यह भी कि कोई प्राणी, कौन या कैसा प्राणी हमारे लिए महत्वपूर्ण नहीं है, कोई प्राणी उस रस्सी को समान, एकरूप बल से खींच रहा है. उसके खीँचने से बक्सा त्वरित (एक्सेलरेटेड) गति से ऊपर जाएगा. बक्से की गति लगातार बढ़ती जाएगी और कुछ समय बाद बक्सा बहुत तेज गति से ऊपर जाने लगेगा. 

और हम सब एक दूसरे बक्से में हैं जो स्थिर है, और जो पहले  बक्से के लिए एक स्थिर सन्दर्भ बिंदु है. अपने बक्से से हम यह सब देख रहे हैं; लेकिन ऊपर ओर भागते बक्से में खड़े उस मनुष्य को क्या लगेगा?

उसका बक्सा तेजी से ऊपर जा रहा है, उसके पैरों पर ऊपर जाते बक्से के फर्श का दबाव है.  वह बक्से में उसी तरह खड़ा है जैसे पृथ्वी पर कोई किसी कमरे में खड़ा हो. उसे लगेगा कि बक्से का फर्श उसे अपनी तरफ खीँच रहा है. उसके ओवरकोट की जेब में अनेक वस्तुएं हैं. वह किसी चीज को निकाल कर हाथ से छोड़ देता है, फेँकता नहीं,  बस उसे जाने देता है. बक्से का त्वरण अब उस चीज तक नहीं आएगा और वह चीज त्वरित सापेक्षित गति से बक्से की फर्श की तरफ जाएगी. 

वह अपनी जेब से कुछ और चीजें निकाल कर हाथ से गिरा देता है. सभी उसी तरह फर्श की ओर गिरतीं हैं. उनकी गति को देख कर उसका निष्कर्ष है: किसी ऐसी चीज का फर्श की दिशा में त्वरण एक समान रहता है. यह त्वरण उस वस्तु के किसी गुण से बदलता नहीं है.

उस व्यक्ति को गुर्त्वाकर्षी क्षेत्र (जिसे हमने पिछली कड़ी में देखा था) की समझ है और अपने उस ज्ञान के आधार पर वह इस निष्कर्ष पर पंहुचता है कि वह स्वयं और वह बक्सा किसी गुरुत्वाकर्षी क्षेत्र में है, जिसकी तीव्रता समय के साथ नहीं बदलती. उसे कुछ आश्चर्य होगा कि बक्सा नीचे क्यों नहीं जा रहा लेकिन तब तक वह उस रस्सी को देखेगा और अब उसका निष्कर्ष होगा, बक्सा गुरुत्वाकर्षी क्षेत्र में उस रस्सी से लटका हुआ है! 

क्या उसकी सोच गलत है? हमें नहीं लगता कि ऐसा सोचने में उसने तर्क की कोई गलती की है, न ही उसकी सोच मेकैनिक्स के किसी नियम की अवहेलना कर रही है. यद्यपि  बक्सा 'गैलीलियन आकाश' में त्वरित गति से ऊपर जा रहा है, फिर भी हम बक्से को स्थिर मान सकते हैं. (किसी गुरुत्वाकर्षी क्षेत्र में रस्से से लटका!)  तब सापेक्षता के सिद्धांत को अधिक व्यापक बनाते हुए हम इसमें वैसे सन्दर्भ निकायों को भी सम्मिलित  कर पा रहे हैं जो एक दूसरे से त्वरित गति की स्थिति में हों! सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत की दिशा में यह  एक जोरदार दलील है.

यह ध्यान में रखने की बात है कि उपरोक्त व्याख्या के मूल में है गुरुत्वाकर्षी क्षेत्र का हर वस्तु को, बिना उसके किसी गुणविशेष के, एक समान रूप से प्रभावित करना, एक त्वरण देना या जैसा पिछली कड़ी में दिखाया गया था जड़त्वीय द्रव्यमान और गुरुत्वाकर्षी द्रव्यमान का परस्पर बराबर होना. यदि यह प्राकृतिक नियम नहीं रहता तो ऊपर की ओर त्वरित गति से जा रहे बक्से के अंदर वह मनुष्य अपने आस-पास की वस्तुओं के व्यवहार को गुरुत्वाकर्षी क्षेत्र के प्रभाव के रूप में नहीं देख पाता. और तब अपने अनुभवों के आधार पर उसका यह निष्कर्ष अमान्य रहता कि  वह / उसका बक्सा 'स्थिर' हैं.

अब कल्पना करें कि उस मनुष्य ने बक्से की छत में अंदर की तरफ एक कील ठोंकी और उससे एक डोरी लटका कर डोर के दूसरे छोर पर कोई वस्तु बाँध दी. इसका असर यह होगा कि रस्सी तन जाएगी और बिलकुल लम्बवत लटकेगी. यदि उस व्यक्ति से हम डोरी में तनाव का कारण पूछें तो उत्तर मिलेगा, "गुरुत्वाकर्षी क्षेत्र के चलते लटकी हुई वस्तु पर नीचे की तरफ (बक्से की फर्श की दिशा में) एक बल लग रहा है वस्तु नीचे नहीं जा रही क्योंकि डोरी का तनाव उस बल को काट रहा है / निष्प्रभावित कर दे रहा है (न्यूट्रलाइज़ कर दे रहा है.) कितना तनाव डोरी में है यह इस पर निर्भर करेगा कि लटकती वस्तु का गुरुत्वाकर्षी द्रव्यमान  क्या है."

वहीँ कोई और व्यक्ति, जो उस बक्से में नहीं है, इन सारी चीजों को ऐसे समझेगा: डोरी बक्से से जुड़ी है इस लिए यह भी बक्से के साथ उसकी त्वरित गति से जा रही है. और डोरी उस गति को उस लटकी वस्तु तक प्रेषित करता (ट्रांसमिट करता) है. डोरी में तनाव कितना होगा यह इस पर निर्भर करता है कि लटकती वस्तु जड़त्वीय द्रव्यमान क्या है. इस उदाहरण से स्पष्ट है कि सापेक्षता के सिद्धांत को अधिक व्यापक बनाने के लिए यह जरूरी है कि जड़त्वीय द्रव्यमान और गुरुत्वाकर्षी द्रव्यमान बराबर हों. और इस तरह, इस (सामान्य सापेक्षता) नियम की हमें एक भौतिक विवेचना मिलती है.

त्वरित गति से ऊपर जा रहे बक्से की जो चर्चा हमने की, उससे हम देख सकते हैं कि सामान्य साक्षेपता सिद्धांत गुरुत्वाकर्षण के नियमों पर महत्वपूर्ण निष्कर्ष दे सकेगा. यह सच है कि, सामान्य साक्षेपता को सही सही समझने से हमें ऐसे नियम मिले हैं जो गुरुत्वाकर्षी क्षेत्र की शर्तों का अनुपालन करते हैं. 

आगे बढ़ने के पहले मैं पाठक को चेताना चाहूंगा. उस बक्से में खड़े आदमी के लिए एक गुरुत्वाकर्षी क्षेत्र था जब कि हमने जिस सन्दर्भ निकाय (रेफरेन्स सिस्टम) को पहले चुना था उसमें वैसा कोई क्षेत्र नहीं था. इससे हमें यह भान हो सकता है कि गुरुत्वाकर्षी क्षेत्र का अस्तित्व सदा अवास्तविक होता है. हम यह भी सोच सकते हैं कि किसी गुरुत्वाकर्षी क्षेत्र के रहने पर भी हम ऐसा सन्दर्भ निकाय चुन सकते हैं जिस के लिए कोई गुरुत्वाकर्षी क्षेत्र नहीं है. यह सभी गुरुत्वाकर्षी क्षेत्रों के लिए कतई सच नहीं है - बस उनके लिए जो कुछ विशेष रूप में होते हैं. उदाहरण के लिए ऐसा कोई सन्दर्भ निकाय खोजना असंभव है जिस पर पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षी क्षेत्र बिलकुल काम नहीं कर रहा हो.

आइंस्टीन के शब्दों में सापेक्षता (रिलेटिविटी) – 9 में हमने पुस्तिका के अठारहवे अध्याय, "विशेष और सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत", को देखा था. उसके अंतिम अनुच्छेदों में हमने देखा था कि एकभाव गति से चलती ट्रेन के डिब्बे के अंदर बैठे यात्री को गति का कोई भान नहीं होता. वह समझता है कि पटरियाँ, पूरा रास्ता पीछे की ओर भाग रहा है. और विशेष सापेक्षता का सिद्धांत के अनुसार इस तरह सोच कर भी वह अपनी गति के विषय में सही गणना कर सकता है. 

लेकिन जब ट्रेन की एकभाव गति नहीं रहती है: ट्रेन की रफ़्तार अचानक धीमी हो जाती है. तब यात्री को अचानक एक झटका लगेगा, आगे की तरफ और वह यात्री अब नहीं सोच सकता कि ट्रेन स्थिर है और रास्ता पीछे जा रहा है. स्पष्टतः गैलिलिओ का नियम उस गाड़ी पर लागू नहीं होगा जो एकभाव गति से नहीं चल रही. इस कारण से एकभाव गति से नहीं चलने वाले सन्दर्भ निकाय को अभी हम एक ऐसी भौतिक यथार्थता देने को बाध्य हो  रहे हैं जो सापेक्षता के सिद्धांत से बेमेल है. वहां हमने कहा था कि आगे हम देखेंगे कि यह निष्कर्ष सही नहीं है.

अब हम देख सकेंगे कि हमारी उपरोक्त आपत्ति क्यों सही नहीं है. यह बिलकुल सच है कि गाड़ी की गति धीमी होने के चलते डब्बे में बैठे यात्री को आगे की तरफ झटका लगता है और उसे स्पष्ट होजाता है कि उसकी गाड़ी की गति एकभाव नहीं है. लेकिन ऐसा कोई कारण नहीं है कि वह आगे की तरफ लगे उस झटके को गाडी की रफ़्तार के धीमी होने से ही जोड़े. इस अनुभव को वह इस तरह भी सोच सकता है: "मेरा सन्दर्भ निकाय (यह डब्बा) लगातार स्थिर रहा है. लेकिन इसके सन्दर्भ में एक गुरुत्वाकर्षी क्षेत्र (जब गाड़ी की रफ़्तार धीमी होने लगी) है जो मुझे आगे की ओर आकर्षित कर रहा है, और जो समय के साथ बदल रहा है. इस क्षेत्र के प्रभाव के चलते पटरियाँ और पूरे रास्ते की गति एकभाव नहीं रही और पीछे की दिशा में उनकी गति लगातार कम होती जा रही है."
(समाप्त) 

सच्चिदानंद सिंह
Sachidanand Singh 

आइंस्टीन के शब्दों में सापेक्षता - रिलेटिविटी (10) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/09/10.html 


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