Wednesday, 26 July 2023

पूरी सरकार के लिए अपरिहार्य एक अफसर और FATF / विजय शंकर सिंह

पुलिस हो या कोई भी जांच एजेंसी, इन सबमें कुछ न कुछ महत्वपूर्ण मामले हमेशा जांच, अग्रिम जांच या अदालतों के समक्ष लंबित रहेंगे ही। एक मामला निपटता है तो दूसरा केस सामने आ जाता है। अदालत से एक का फैसला होता है तो, उस केस की अपील, जो उच्चतर अदालतों में हो जाती है, आ जाती है। 

इसलिए, महत्वपूर्ण मामलों की जांच में अपरिहार्यता है, के आधार पर,  किसी भी जांच एजेंसी के विभागीय प्रमुख को सेवा विस्तार नहीं दिया जा सकता है। ऐसे तो फिर, कोई रिटायर होगा ही नही। अतः, इस तरह के विस्तार के लिए, यह तर्क कभी भी उचित आधार नहीं हो सकता है।  

अब आती है FATF की बात। कोविड महामारी के कारण भारत का FATF मूल्यांकन 2023 तक के लिए स्थगित कर दिया गया था।  नवंबर 2023 के लिए साइट पर दौरे की योजना बनाई गई थी, इसलिए यह सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष भारत सरकार इस आधार पर सेवा विस्तार के लिए तर्क दे सकती है।  

लेकिन, यही यह सवाल उठता है क्या, विभाग के अन्य वरिष्ठ अधिकारी स्पेशल डायरेक्टर या अन्य, इस समीक्षा के लिए, सक्षम नहीं हैं? इस तरह के अनावश्यक और एक विवादित अफसर के लिए सेवा विस्तार की जिद पर अड़ी सरकार का यह दृष्टिकोण, हजार संशय पैदा करता है। 

अखबारों के अनुसार, सरकार ने FATF की चल रही समीक्षा का हवाला देते हुए, केवल इसी कारण, 15 अक्टूबर तक के लिए ED प्रमुख, एसके मिश्र का सेवा विस्तार मांगा है। सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि, सेवा विस्तार केवल FATF के लिए ही हो। ED का नियमित पर्यवेक्षण, उनके बाद के वरिष्ठतम अफसर करें।

संजय मिश्र, ईडी प्रमुख का सेवा विस्तार नवंबर 2022 से ही अवैध है। यह कहना है सुप्रीम कोर्ट का। महज 15 दिन पहले के इस फैसले के खिलाफ सरकार फिर से सुप्रीम कोर्ट आ गई कि, हुजूर, ईडी प्रमुख को नौकरी में रहने दें। यदि संजय मिश्र इतने ही अपरिहार्य हैं तो, उनको मंत्री बना दे, सरकार।

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स, FATF  ~ 

प्रवर्तन निदेशालय की वेबसाइट के अनुसार, FATF, फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स का गठन जुलाई 1989 में पेरिस में हुए जी 7 समिट में किया गया था जिसका मुख्य उद्देश्य मनी लांड्रिंग से निपटने हेतु उपाय करना था । इसलिए इसे ग्लोबल फाइनेंशियल वॉचडॉग भी कहते हैं । यह संस्था, काले धन के आर्थिकी में प्रवेश को प्रतिबंधित करने के लिए गठित की गई है। भारत भी इसका एक सदस्य है। 

फिलहाल FATF का मुख्यालय पेरिस में, स्थित है और इसमें अब तक कुल 39 सदस्य देश हैं। सऊदी अरब 39 वें सदस्य के रूप में, पहला खाड़ी देश है जिसे पिछले वर्ष इस संगठन का सदस्य बनाया गया था। इसमें, ग्रे और ब्लैक लिस्ट नाम से दो सूचियां होती है, जिनमे इन प्राविधानों के उल्लंघन के मूल्यांकन के आधार पर, देशों को वर्गीकृत किया जाता है। 

ग्रे लिस्ट ~

एफ़एटीएफ़ की 'इन्क्रीज़्ड मॉनिटरिंग लिस्ट' को ही ग्रे लिस्ट कहा जाता है।
एफ़एटीएफ़ द्वारा ग्रे लिस्ट में उन देशों को शामिल किया जाता है जो कि अपने देश के फाइनेंसियल सिस्टम को टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग की गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए उपयोग होने देते हैं। इन्हें ग्रे लिस्ट में शामिल कर यह संकेत दिया जाता है कि इन गतिविधियों को ना रोकने पर वे ब्लैक लिस्ट हो सकते हैं।

जब कोई देश ग्रे लिस्ट में शामिल कर लिया जाता है तो उसे निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है:
० अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों (विश्व बैंक, आईएमएफ , एशियाई विकास बैंक इत्यादि) और देशों के आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है।
० अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों और देशों से ऋण प्राप्त करने में समस्या आती है। इसके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में कमी आती है और अर्थव्यवस्था कमजोर होती है।
० पूर्णरूप से अंतर्राष्ट्रीय बहिष्कार का सामना करना पड़ सकता है।

ब्लैक लिस्ट ~

जो देश आतंकी फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों का पूर्ण और प्रत्यक्ष रूप से समर्थन करते हैं उन्हें ब्लैक लिस्ट में सूचीबद्ध किया जाता है; अर्थात इन देशों में मौजूद फाइनेंसियल सिस्टम की मदद से आतंकी गतिविधियों के लिए फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग को बढ़ावा मिलता है। 

इसी FATF का आधार लेकर सरकार सुप्रीम कोर्ट गई है और अब यह देखना है कि, सरकार के लिए अपरिहार्य बन चुके, प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक, संजय कुमार मिश्र के पुनः सेवा विस्तार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट क्या निर्णय सुनाती है। 

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 


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