पहले यह खबर पढ़े...
"कुश्ती महासंघ के प्रमुख बृजभूषण को जमानत दी जानी चाहिए या नहीं, इस पर दिल्ली पुलिस ने कोई ठोस रुख अपनाने से इनकार कर दिया। दिल्ली पुलिस का कहना है, "हम उसकी जमानत का उचित विरोध नहीं कर रहे हैं... न ही हम इसका समर्थन कर रहे हैं। हम इसे अदालत के विवेक पर छोड़ते हैं।"
जिस यौन शौषण के मामले को लेकर, पूरे दिल्ली और जंतर मंतर में हंगामा रहा, देश विदेश से, सरकार को जलालत भरी प्रतिक्रिया सुननी पड़ी, जिस मामले में, पीड़िता की एफआईआर तब दर्ज हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया, और उस एफआईआर पर तब तक कार्यवाही नहीं हुई, जब तक, पीड़िता ने, पुलिस की निष्क्रियता से ऊब कर पॉस्को का केस वापस नहीं ले लिया, उसी मामले में, दिल्ली पुलिस, मुल्जिम के साथ खड़ी नजर आ रही है।
पुलिस ने, मुल्जिम की जमानत अर्जी का विरोध नहीं किया। वह निरपेक्ष बनी रही। ऐसी निरपेक्षता, वास्तव में, अपराध की पक्षधरता होती है। अब तक पुलिस द्वारा अभियुक्त की जमानत के पुरजोर विरोध करने की परंपरा रही है। जमानत मिलने के बाद भी, उसे रद्द कराने के लिए उच्चतर अदालतों में, अपील की जाती रही है। पुलिस का ध्येय ही यह होता है कि, मुल्जिम को किसी भी दशा में, जमानत न मिले, और जमानत स्वीकृति के बाद भी जमानतदारों के वेरीफिकेशन के बहाने कोशिश करती है कि, मुल्जिम कुछ दिन तो जेल में रहे। जमानत न देने के लिए मैजिस्ट्रेट से विशेष अनुरोध भी, अदालत में, सरकारी वकील कर रहते हैं।
पर यहां, पुलिस जमानत के न तो विरोध में है, और न ही समर्थन में। बड़ी मासूमियत से लिए गए इस स्टैंड को, सीधे सीधे डिकोड करें तो, दिल्ली पुलिस का स्टैंड यही दिख रहा है, "हुजूर जमानत दे दें, हम तो कुछ कह ही नहीं रहे हैं।" फिर हुजूर को क्या पड़ी है कि, वह जमानत न दें। क़ाज़ी, क्यों हो भला दुबला, शहर के अंदेशे से। दुबला, मोटा हो, तो कोतवाल हो। और कोतवाल तो मुल्जिम के पक्ष में खड़ा है।
कल जो, गुस्से में होकर सुभाषित बोल रहे थे कि, किसी गुनहगार को छोड़ा नहीं जाएगा, उन्ही की जेरे साया, यह मुल्जिम महोदय, माननीय सांसद जी, सेंगोल को मूर्धाभिषिक्त होते हुए, कुछ हफ्ते पहले देख रहे थे। यह न्यू इंडिया है।
विजय शंकर सिंह
Vijay Shanker Singh
No comments:
Post a Comment