कुछ मित्र कह रहे हैं कि, मणिपुर की घटना शर्मनाक है और ऐसी तथा इस तरह की घटनाओ पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। इस घटना पर, कोई एजेंडा या नैरेटिव नहीं गढ़ा जाना चाहिए। लेकिन वे मित्र यह भूल जाते हैं, मणिपुर जैसी वीभत्स घटनाएं, एक कुत्सित और विभाजनकारी राजनीति की ही देन हैं। देश में या दुनिया भर में ऐसी विभाजनकारी विचारधारा और राजनीति समाज को बांटने, जनता को प्रताड़ित करने और उनकी हत्यायें कर, नस्ली नरसंहार की भूमिका गढ़ती रही है। अपने ही देश में, अभी सौ साल भी नहीं पूरे हुए, चाहे वह, भारत विभाजन के समय मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा और आरएसएस की द्विराष्ट्रवाद से प्रेरित राजनीति हो, या पश्चिमी देशों में, रंग के आधार पर रंगभेदी राजनीति या, अपने ही समाज में, गहरे तक पैठी दलित आदिवासी विरोधी मानसिकता, जैसे उदाहरण, हर रोज आपको मिल जाएंगे। मणिपुर का भी यही पैटर्न है। यह राजनीति के ही विविध आयाम हैं।
विभाजनकारी विचारधारा पर आधारित, ऐसी राजनीति के परिष्कार के लिए, व्यापक जनहित में जवाबी राजनीतिक नैरेटिव गढ़े जाने चाहिए। वैचारिक और सैद्धांतिक आधार पर, ऐसी राजनीति अक्सर, शुचिता, संस्कृति, अतीतजीविता और गर्व के मायाजाल रचती है, पर उनका उद्देश्य न तो संस्कृति का उत्थान रहता है और न ही समाज को कोई सार्थक दिशा देना, बल्कि इनका उद्देश्य, जनहित और लोककल्याण से जुड़ी सोच और लोगों के खिलाफ लामबंद होकर एक ऐसी सत्ता की स्थापना में उत्प्रेरक का काम करना रहता है, जो जनविरोधी अर्थतंत्र और स्तरों पर आधारित वर्णवादी समाज की स्थापना के उद्देश्य से की जाने वाली राजनीति है।
याद रखिए, ऐसी कुटिल राजनीतिक सत्ता का उद्देश्य ही है, लोककल्याण, समतामूलक समाज और समानतापूर्ण समृद्धि की बात करने वाले लोगों और सोच के खिलाफ खड़ा होना, उन्हे हतोत्साहित करना और अधिकांश समाज जो विपन्नता का दंश भोग रहा है, को, उसकी विपन्नता, उसकी नियति का परिणाम है, यह उसके मन मस्तिष्क में बैठा देना है। आज जिस, विभाजनकारी राजनीति और, पूंजी को कुछ चुने हुए हाथों में लगातार केंद्रित किए जाने के उद्देश्य से, तानाशाही मनोवृत्ति वाली सत्ता के नशे में, शासित सरकार के साए तले, ऐसी अमानवीय घटनाएं घट रही है तो, ऐसी राजनीति और सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए, खड़ा हो जाना, ही इस तरह की अमानवीयता का सीधा जवाब है। जब, यह कहा जाए कि, मणिपुर टाइप घटनाओं पर, राजनीति नहीं होनी चाहिए, और इनका विरोध एक राजनीतिक नैरेटिव है तो, रक्षात्मक मुद्रा में न आइए। मणिपुर निर्वस्त्र महिला कांड, जिस राजनीति का दुष्परिणाम है, उसके खिलाफ राजनीतिक स्टैंड लेना ही होगा। भटकाव उनका स्थायी भाव है, और धर्म तथा ईश्वर, उनकी आस्था नहीं, उनके कुटिल राजनीति के आधार हैं।
विजय शंकर सिंह
Vijay Shanker Singh
No comments:
Post a Comment