Friday 7 July 2023

एक कस्टम अधिकारी को, कानून के अनुसार, एक पुलिस अधिकारी की शक्तियां प्राप्त हैं या नहीं, इसे अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा / विजय शंकर सिंह

सुप्रीम कोर्ट अब यह तय करने के लिए, एक याचिका पर सुनवाई करने जा रहा है कि, क्या कस्टम अधिकारी, कानून के अनुसार, एक पुलिस अधिकारी हैं या नहीं। साथ ही शीर्ष अदालत यह भी तय करेगी क्या, सीआरपीसी, सीमा शुल्क अधिनियम के तहत, की जा रही कार्यवाही के संबंध में लागू होगी या नहीं ?

सुप्रीम कोर्ट के दो जजों, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ, तेलंगाना उच्च न्यायालय के एक फैसले से उत्पन्न, एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें राजस्व खुफिया निदेशालय DRI डीआरआई को, आरोपी की, हिरासत में लेने की अनुमति नहीं दी गई है।

अदालत, कानून के इन सवालों पर विचार करेगी... 

1. क्या डीआरआई अधिकारी, सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 28 के प्रयोजनों के लिए एक "उचित अधिकारी" है?
 
2. क्या सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 108 के तहत प्रतिवादी को डीआरआई अधिकारी द्वारा जारी किए गए समन को अधिकार क्षेत्र के बिना जारी किया जा सकता है?
 
3. क्या सीमा शुल्क/डीआरआई अधिकारी, एक पुलिस अधिकारी हैं और इसलिए, उन्हें सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 133 से 135 के तहत अपराध के संबंध में क्रमशः एफआईआर दर्ज करना आवश्यक है?
 
4. क्या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 154 से 157 और 173(2) के प्राविधान सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 के तहत कार्यवाही के संबंध में संहिता की धारा 4(2) के मद्देनजर लागू होंगे?
 
5. क्या सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की क्रमशः धारा 133 से 135 के तहत अपराधों के संबंध में, संबंधित व्यक्ति को गिरफ्तार करने और मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने से पहले एफआईआर का पंजीकरण अनिवार्य है?
 
इस महत्वपूर्ण मामले को 19.07.2023 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

उल्लेखनीय है कि, कैनन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था और तब सीमा शुल्क आयुक्त ने माना था कि, राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 28(4) के अंतर्गत शुल्क की प्रक्रिया या वसूली करने के  अधिकार से संपन्न, सक्षम अधिकारी' नहीं हैं। 

यह मामला, ड्यूटी फ्री बुलियन (सोने) को जिसे, एफटीपी की अग्रिम खरीद योजना के अंतर्गत, खरीदने के 90 दिनों के भीतर निर्यात किया जाना था, को घरेलू बाजार में बेच दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप आरोपी को गैरकानूनी रूप से लाभ हुआ। यह सीमा शुल्क कानून का उल्लंघन हुआ जिसे उक्त एक्ट में एक दंडनीय अपराध माना गया है। 

कस्टम विभाग ने पूछताछ के लिए आरोपी की हिरासत मांगी। सत्र न्यायाधीश ने, कस्टम्स विभाग को, हिरासत में लेने के उसके अधिकार क्षेत्र को न पाते हुए, हिरासत में पूछताछ के लिए राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) के अधिकारियों के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और यह भी कहा कि, प्रतिवादी के बयान की रिकॉर्डिंग की अनुमति देने के लिए कोई वैध आधार मौजूद नहीं है।

हालांकि सीमा शुल्क विभाग ने यह भी कहा कि, अपराध का मोडस ऑपरेंडी यही कार्यप्रणाली का पता लगाने के लिए बयान दर्ज करने की आवश्यकता है और यह अधिकार, सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 108 के अंतर्गत, डीआरआई को कानून ने दिया है।

सत्र न्यायाधीश के इस फैसले के खिपाफ, याचिकाकर्ता (डीआरआई) ने यह कहते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया कि "प्रतिवादी, धोखाधड़ी से भरी इस पूरी गतिविधियों के पीछे का मास्टरमाइंड है और उससे उसकी कार्यप्रणाली का पता लगाया जाना जरूरी है। याचिका के अनुसार,  जांच को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिवादी के बयान की रिकॉर्डिंग भी आवश्यक है और सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 108 के अनुसार ऐसी शक्ति राजस्व खुफिया निदेशालय में निहित है। मामले की जांच करना और सच्चाई सामने लाना डीआरआई का दायित्व है।"

तेलंगाना उच्च न्यायालय ने माना कि सीमा शुल्क अधिकारी को आरोपी व्यक्तियों से आपत्तिजनक सामग्री एकत्र करने का अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 108 का विश्लेषण करने के बाद कहा कि “सीमा शुल्क के राजपत्रित अधिकारी के पास किसी भी व्यक्ति को बुलाने की शक्ति होगी, जिसकी उपस्थिति वह सबूत देने या किसी पूछताछ में दस्तावेज़ या किसी अन्य चीज़ को पेश करने के लिए आवश्यक समझती है।  इसका मतलब यह नहीं है कि सीमा शुल्क अधिकारी के पास ऐसी जानकारी एकत्र करने की शक्ति निहित है जिसे अन्यथा उस व्यक्ति से आपत्तिजनक सामग्री कहा जाएगा जिसके खिलाफ आरोप लगाया गया है।"

उच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद,  21 और अनुच्छेद 20 (3) को उद्धरित करते हुए, यह कहा कि, "वे यह मानते हैं कि पुलिस या अन्य अधिकारी जो किसी मामले की जांच कर रहे हैं, उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति को दोषारोपणात्मक या दोषमुक्तिपूर्ण बयान देने के लिए, मजबूर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जिसके खिलाफ आरोप लगाया गया है।"

जांच के दौरान मुल्जिम की हिरासत में पूछताछ भी जरूरी होती है। सीआरपीसी के अनुसार, पुलिस कस्टडी रिमांड का प्राविधान, पुलिस के विवेचक आईओ को कानूनन प्रदत्त भी है। पर क्या पुलिस को मिली इन शक्तियों के अनुसार, यही शक्तियां, कस्टम विभाग के डीआरआई को भी है या नहीं, और वे भी एक पुलिस विवेचक के रूप में किसी आपराधिक मामले की तफ्तीश तथा मुल्जिम की हिरासत में रिमांड लेकर पूछताछ कर सकते हैं या नहीं, इन्ही महत्वपूर्ण सवालों पर, सुप्रीम कोर्ट अब विचार करने जा रही है। 

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

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