सुप्रीम कोर्ट ने आज, 20/07/23, गुरुवार को उस भयावह वीडियो पर स्वत: संज्ञान ले लिया है, जिसमें मणिपुर में दो महिलाओं को नग्न अवस्था में घुमाने और राज्य में जातीय संघर्ष के बीच यौन हिंसा का शिकार होते दिखाया गया है। कोर्ट ने राज्य सरकार से, अपराधियों को कानून के दायरे में लाने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी तलब की है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने आज सुबह भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को अदालत में उपस्थिति होने को कहा। आज जब अदालत बैठी तो, तो एजी और एसजी को संबोधित करते हुए, सीजेआई ने कहा: "हम उन वीडियो से बहुत परेशान हैं, जो कल मणिपुर में दो महिलाओं की परेड के बारे में सामने आए हैं। हम, आपसे अपनी गहरी चिंता व्यक्त कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि सरकार वास्तव में कदम उठाए और कार्रवाई करे। यह स्थिति बिल्कुल अस्वीकार्य है।"
सीजेआई ने कहा, "सांप्रदायिक संघर्ष के क्षेत्र में लैंगिक हिंसा भड़काने के लिए महिलाओं को साधन के रूप में इस्तेमाल करना, एक बेहद परेशान करने वाला ट्रेंड है। यह मानवाधिकारों का सबसे बड़ा उल्लंघन है।"
सीजेआई ने कहा कि कोर्ट इस तथ्य से अवगत है कि वीडियो 4 मई का है लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
"हम सरकार को कार्रवाई करने के लिए थोड़ा समय देंगे अन्यथा हम हस्तक्षेप करेंगे,"सीजेआई ने अपराधियों के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए मई के बाद से अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई का विवरण पूछने के बाद चेतावनी दी और यह सुनिश्चित करने को कहा कि, "इसकी पुनरावृत्ति न हो।"
सीजेआई ने कहा, "कौन जानता है कि यह अलग-थलग या अकेला मामला था या कोई पैटर्न है।"
सीजेआई ने अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल से कहा कि, "अदालत अगले शुक्रवार को मणिपुर हिंसा से संबंधित चल रहे मामलों में विचार के लिए इस मुद्दे पर ध्यान दे रही है।"
सीजेआई ने निम्नलिखित आदेश दिया,
"न्यायालय मणिपुर में महिलाओं पर यौन उत्पीड़न और हिंसा के अपराध के बारे में कल से मीडिया में दिखाई देने वाले वीडियो के दृश्यों से बहुत परेशान है। हमारा विचार है कि न्यायालय को अपराधियों को जवाबदेह ठहराने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से अवगत कराया जाना चाहिए और यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि मणिपुर में संघर्ष में ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं। मीडिया में दिखाए गए दृश्य गंभीर संवैधानिक उल्लंघन और मानवाधिकारों के उल्लंघन को दर्शाते हैं। हिंसा को अंजाम देने के लिए महिलाओं को साधन के रूप में उपयोग करना संवैधानिक लोकतंत्र में तनावपूर्ण माहौल बिल्कुल अस्वीकार्य है। हम केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश देते हैं कि वे अदालत को यह बताने के लिए तत्काल कदम उठाएं कि क्या कार्रवाई की गई है।''
मणिपुर कैडर में आईपीएस रहे, एक वरिष्ठ सहकर्मी का कहना है कि, मणिपुर में राज्यपाल, मुख्यमंत्री, राज्यपाल के सुरक्षा सलाहकार और डीजीपी, केवल दफ्तरों में बैठ कर, हालात का जायजा ले रहे हैं और हालात, जबरन निर्वस्त्र कराए बेबस महिला की तरह, हो चुके हैं। न तो, वे ग्रामीण क्षेत्रों में घटनास्थल का दौरा करते हैं और न ही ऐसे अवसर पर सामने आ कर, सुरक्षा बल का मार्गदर्शन ही कर रहे हैं।जमीन पर, सब कुछ, कनिष्ठ अधिकारियों और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों जैसे असम राइफल्स या बीएसएफ आदि पर छोड़ दिया गया है।
इसका असर, सुरक्षा बलों की मनोदशा और उनके मनोबल पर पड़ रहा है। डीजीपी के पद पर रह चुके, उक्त आईपीएस अफसर का कहना है कि, जब तक कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, सामने आकर, आक्रामक नेतृत्व नहीं संभालते हैं, तब तक, स्थिति में कोई सुधार नहीं आएगा।
मणिपुर, अब एक सामान्य कानून व्यवस्था का मामला नहीं रहा। यह एक राज्य के लगभग पूरी तरह से अराजक हो जाने का मामला है। यह आग, आगे भी फैलेगी और इस बात की आशंका जताई जा रही है कि, नॉर्थ ईस्ट के अन्य राज्य भी इसी प्रकार की जातीय हिंसा में झुलस सकते हैं। प्रधानमंत्री जी, खामोश है। गृहमंत्री, के लिए प्राथमिकता, राजनीतिक गुणाभाग है। मुख्यमंत्री की कोई जिम्मेदारी अब कानून व्यवस्था को लेकर नहीं है, क्योंकि राज्य में अनु.355 लागू है।
अनु.355 के बाद, जिम्मेदारी भारत सरकार के गृह मंत्रालय, राज्यपाल और अन्य अफसरों की है। और जिम्मेदारी का आलम, आप एक निर्वस्त्र महिला के परेड के रूप में देख सकते है। नौकरी में अनेक वीभत्स दृश्य देखने के अनुभव के बाद भी मैं वह वीडियो यहां नहीं डाल पाऊंगा।
एक कमरे में आग लगी है, और हम सब दूसरे कमरे में आराम से पसरे हुए खबरें देख रहें हैं, सो रहे है, और यह स्थिति, दुखद है, शर्मनाक है और निंदनीय है। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री को, तत्काल इस स्थिति से निपटने के लिए मणिपुर में ही ऑल पार्टी मीटिंग करनी चाहिए और कानून व्यवस्था के मुद्दे से ऊपर उठ कर, जातीय वैमनस्यता का समाधान ढूंढना चाहिए। इस बात की भी पड़ताल होनी चाहिए कि, आखिर स्थिति इस हद तक कैसे पहुंच गई और इसके लिए जिम्मेदार कौन है?
पत्रकारिता का स्तर यह है कि, सरकार के माउथ पीस के रूप मे स्थापित हो चुका गोदी मीडिया, बोल रहा है कि, पवित्र सावन महीने में संसद का सत्र चलेगा। इसी पवित्र सावन महीने में मणिपुर में एक महिला को निर्वस्त्र कर सड़क पर घुमाये जाने की शर्मनाक खबरें आ रही है। इन खबरों पर, गोदी मीडिया मौन है। न सरकार से कोई सवाल न जवाब, न बहस न डिबेट। बस, खबरों को छिपाना और जनता को सच से दूर रखना। संविधान के अनुछेद 355 के अंतर्गत आ जाने के बाद, मणिपुर की क़ानून व्यवस्था की जिम्मेदारी, अब केंद्र के हाथों में है। क्या गृहमंत्री को, ऐसी शर्मनाक घटना के बाद, अपने पद से इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए ?
विजय शंकर सिंह
Vijay Shanker Singh
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