Thursday, 30 June 2022

खुसरो बाग, प्रयागराज - इतिहास से बैर न करें इतिहास को गंभीरता से पढ़े / विजय शंकर सिंह

उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, प्रयागराज को सूफी कवि हजरत अमीर खुसरो और मुगल शहजादा खुसरो जो जहांगीर का पुत्र था, का इतिहास नहीं पता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय, मध्यकालीन इतिहास के विद्वानों का गढ़ है और वहीं के केंद्र की यह अज्ञानता तकलीफदेह और हैरान करने वाली है। 

यह केंद्र 'शान ए खुसरो' के नाम से एक आयोजन कर रहा है और यह कार्ड छपा कर सबको बता रहा है कि इलाहाबाद जो अब प्रयागराज है का प्रसिद्ध खुसरो बाग में जो मकबरा है वह हिंदवी के कवि और कव्वाली के जन्मदाता माने जाने वाले हजरत अमीर खुसरो का है। यानी अमीर खुसरो वहीं दफ्न हैं। अमीर खुसरो का जन्म जिला एटा के पटियाली गांव में हुआ था और उनकी मृत्यु दिल्ली में अपने गुरु निजामुद्दीन के चरणों में हुई थी। 

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार अमीर खुसरो की मृत्यु-1324 ईस्वी में हुई थी। वे, चौदहवीं सदी के लगभग दिल्ली के निकट रहने वाले एक प्रमुख कवि, शायर, गायक और संगीतकार थे। उनका परिवार कई पीढ़ियों से राजदरबार से सम्बंधित था I स्वयं अमीर खुसरो ने 8 सुल्तानों का शासन देखा था I अमीर खुसरो प्रथम मुस्लिम कवि थे जिन्होंने हिंदी शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है I वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने हिंदी, हिन्दवी और फारसी में एक साथ लिखा I उन्हे खड़ी बोली के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है I वे अपनी पहेलियों और मुकरियों के लिए जाने जाते हैं। सबसे पहले उन्होंने ही अपनी भाषा के लिए 'हिन्दवी' शब्द, यानी हिंद की भाषा, का उल्लेख किया था। वे फारसी के कवि भी थे। उनको दिल्ली सल्तनत का आश्रय मिला हुआ था। उनके ग्रंथो की सूची लम्बी है। साथ ही इनका मध्यकालीन इतिहास लेखन में, एक इतिहास स्रोत रूप में भी महत्त्व है। अमीर खुसरो को हिन्द का तोता कहा जाता है।

यह सभी जानते हैं कि, हजरत अमीर खुसरो हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह जो निजामुद्दीन, दिल्ली में हैं वहां दफन हैं। लोग पहले अमीर खुसरो की दरगाह पर जाते हैं, फूल चढ़ाते हैं और तब उसके बाद हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर हाजिरी लगाते हैं। सूफी संत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह का एक आकर्षण, अमीर खुसरो की कव्वालियां भी हैं जो सूफी साहित्य और सूफी संगीत की धरोहर हैं। 

अब आइए जहांगीर के बेटे शहजादा खुसरो के इतिहास पर। खुसरो मिर्ज़ा, जहांगीर का ज्येष्ठ पुत्र था। उसने अपने पिता और वर्तमान शासक जहाँगीर के खिलाफ 1606 ईस्वी में विद्रोह कर दिया था। वह बंगाल का गवर्नर था और उसने वैसे ही विद्रोह किया जैसे कभी खुद सलीम यानी जहांगीर ने अकबर के खिलाफ किया था। जहांगीर भी असफल हुआ और खुसरो भी। शहजादा खुसरो पर प्रोफेसर Heramb Chaturvedi जी ने एक बहुत अच्छा उपन्यास लिखा है, आप उसे पढ़ सकते हैं। 

अब आइए खुसरो बाग पर। खुसरो बाग एक विशाल ऐतिहासिक बाग है, जहां जहांगीर के बेटे खुसरो और सुल्तान बेगम के मकबरे स्थित हैं। चारदीवारी के भीतर इस खूबसूरत बाग में, बलुई पत्थरों से बने तीन मक़बरे, मुग़ल वास्तुकला के बेहतरीन उदहारण हैं। इसके प्रवेश द्वार, आस-पास के बगीचों और सुल्तान बेगम के त्रि-स्तरीय मक़बरे की डिज़ाइन का श्रेय आक़ा रज़ा को जाता है, जो जहांगीर के दरबार के स्थापित आर्किटेक्ट थे।

मकबरों की श्रेणी में, अंतिम मक़बरा पड़ता है शाहजादा खुसरो का। अपने पिता जहांगीर के प्रति विद्रोह करने के बाद खुसरो को पहले इसी बाग में नज़रबंद रखा गया था। यहां से भागने के प्रयास में खुसरो मारा गया। कहते हैं यह आदेश खुसरो के भाई और जहांगीर के तीसरे बेटे खुर्रम ने दिया था। बाद में खुर्रम गद्दी पर बैठा और बादशाह शाहजहां के नाम से, इतिहास में जाना गया।

उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के अधिकारियों को यह भूल सुधार करनी चाहिए। यह गलती किसी ऐसे केंद्र से होती जो इतिहास से दूर रहता है तो क्षम्य भी थी, पर यह सरकार का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र है। इसे तत्काल सुधारा जाना चाहिए।

(विजय शंकर सिंह)

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