कोमोडस ने ग्लैडिएटर बनने की घोषणा तो कर दी, लेकिन यह खेल खूनी था। अकेले खाली मैदान में शिकार करना और बात थी, और हज़ारों की तादाद में मदमस्त जनता के सामने लड़ना दूसरी बात। आज तक किसी रोमन शहंशाह की ऐसी हिम्मत नहीं हुई थी, कोमोडस तो युद्धभूमि से भी भागने वालों में थे। वह भला क्या लड़ते?
कैसियस डियो लिखते हैं,
“जब वह मैदान में अभ्यास के लिए उतरते, तो रेशमी वस्त्र और सोने के गहने पहन कर सज-धज कर आते। हम सभी झुक कर उनका अभिनंदन करते। उसके बाद वह अपना यह वस्त्र उतार कर बैगनी रंग का दूसरा वस्त्र धारण करते। भारत (India) से मंगवाया सोने का मुकुट पहन कर वह स्वयं को मर्करी (Mercury) देवता का अवतार मान कर उतरते”
उन्होंने लिखा है कि कोमोडस भले ही अन्यथा डरपोक थे, लेकिन उस मैदान में पहुँचते ही उनमें न जाने कहाँ से ताकत आ जाती। वह सौ भालू, दस गैंडे और चार हाथी अकेले मार गिराते। इनमें ख़ास कर मोटी चमड़ी वाले विदेश से मंगवाए गए खूँखार गैंडों को भाले से मारना आसान न था। कुछ कमज़ोर ग्लैडिएटरों के कान-नाक भी वह अपने तलवार से काटते रहते, लेकिन शायद इतना काफ़ी नहीं था।
जैसे-जैसे वह दिन निकट आ रहा था, कोमोडस डरने लगे थे। उन्होंने रोम के सबसे शक्तिशाली ग्लैडिएटर नारसिसस को बुलवाया और कहा,
“नारसिसस! मैं तुम्हें आज़ाद कर दूँगा। लेकिन, पहले तुम्हें मुझे अपनी विद्या सिखानी होगी।”
“सीज़र! यह तो ग़ुलामों की विद्या है, जो अपनी आज़ादी के लिए, अपने जीवन के लिए लड़ते हैं। यह भला कोई कैसे सिखा सकता है?”
“जब तुम मुझे सिखाओ, तो यह मत सोचना कि मैं सीज़र हूँ। तुम मुझे अपने ग्लैडिएटर भाइयों में एक समझना।”
नारसिसस ने पहले तो आदर भाव से ही कुछ तलवारबाज़ी सिखायी, जिसमें जान-बूझ कर हार जाते। लेकिन, जब कोमोडस ने एक बार ललकारा तो नारसिसस ने उन्हें पटक कर तलवार की नोक गले पर लगा दी। अपनी मृत्यु को इतने करीब देख कोमोडस काँपने लगे। उन्होंने सोचा कि यह उन्होंने क्या कर दिया! अगर वह वाकई मैदान में मारे गए तो?
आखिर खेल शुरू हुआ। सभी सिनेटरों ने कोमोडस का हाथ चूम कर उन्हें शुभकामना दी। डियो ने कहा, “ईश्वर आपकी रक्षा करे”
पहले दिन जंगली जानवरों के सामने कोमोडस को उतरना था। कोमोडस एक रथ दौड़ाते हुए जब आए, तो जनता ‘सीज़र! सीज़र!’ चिल्लाने लगी, और इस जोश में वाकई कोमोडस अच्छा खेले। उन्होंने हाथी और गैंडों के अलावा एक खूँखार बाघ को भी मार गिराया।
इसके बाद उनका आत्मविश्वास बढ़ता ही गया, और वह तेरह दिनों तक ग्लैडिएटर बन कर उतरते रहे। उन्होंने कई मँजे हुए ग्लैडिएटरों का खून बहाया। यह बात सिनेटरों को चौंका रही थी कि यह आदमी इतना शक्तिशाली आखिर कैसे बन गया? नारसिसस, जो अब आज़ाद हो चुके थे, उन्हें भी शंका हुई कि उनके तमाम ग्लैडिएटर भाई कैसे इतनी आसानी से मारे जा रहे हैं?
जब उन्होंने तफ्तीश की तो मालूम पड़ा, हर ग्लैडिएटर के हाथ में जान-बूझ कर एक जंग लगी तलवार दी जा रही है; और कहा जा रहा है कि देवता के अवतार सीज़र के हाथों मर कर मुक्ति मिलेगी। आखिरी दिन एक सिंह का मुकुट पहन कर कोमोडस मैदान में उतरे, जो रोमन देवता हरक्यूलिस का भेष था। मिथक था कि हरक्यूलिस के पास अदम्य शक्ति थी, और वह अजेय थे।
उस दिन ग्लैडिएटरों का खून बहा कर कोमोडस स्वयं को संपूर्ण पृथ्वी का सबसे शक्तिशाली पुरुष मानने लगे थे। वह जब आधे दिन के खेल के बाद विश्राम-गृह पहुँचे तो सामने नारसिसस खड़े थे।
“सीज़र! आपने हम सब ग्लैडिएटरों को अपना भाई कहा। आपने मुझसे विद्या सिखी। लेकिन, यह छल तो मैंने नहीं सिखाया कि अपने भाइयों की इस तरह हत्या की जाए। आप उन्हें एक जैसी तलवार देकर हराते?”
“नारसिसस! मैं बराबर की लड़ाई लड़ सकता था। मगर रोम-वासी एक सीज़र पर हुआ वार कैसे सहते? मुझे तो जीतना ही था”
“अच्छा, तो इसलिए आपने मुझे आज़ादी दी ताकि मुझसे सामना न हो? मैं आज जंग लगी तलवार से आपको ललकारता हूँ! आप मुझे भी मार कर मुक्ति दें”
डियो के लेखन में यह स्पष्ट नहीं कि आखिर नारसिसस ने किस तरह उन्हें मारा। उनके अनुसार पहले उनकी रखैल मार्सिया और उसके पति एक्लेक्टस ने उन्हें जहर दिया। लेकिन कोमोडस ने उल्टी कर दी और नहीं मरे। उस समय नारसिसस सामने आये, ललकारा और कोमोडस को अपनी काँख में दबा कर घसीटते हुए गला घोंट दिया।
डियो लिखते हैं, “इस घटना से कुछ महीने पहले आकाश में अचानक गिद्ध और बाज चक्कर काटने लगे थे, रोम में ऐसी आग लगी थी कि उसकी लपटें राजमहल तक पहुँच चुकी थी, उल्लुओं की विचित्र आवाजें गूँज रही थी। हमें किसी अनिष्ट की आशंका थी, जो उस दिन स्पष्ट हो गयी”
रक्त की प्यासी रोमन जनता के सामने उनके सीज़र कोमोडस का शोणित बह रहा था। यह रोमन शांति का अंत था। या यूँ कहिए, यह रोम का अंत था। कई रोमवासी मानते थे कि वाकई सीज़र देवता के अवतार होते हैं। यह उनके धर्म, उनके विश्वास की हार थी, एक अजेय हरक्यूलिस की हार थी, जो 192 ई. में उस कोलोसियम में हुई।
इस रोमन धर्म के अवसान के साथ ही एक नए धर्म का मार्ग खुल रहा था।
(क्रमश:)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास - तीन (9)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/06/9.html
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