Sunday, 19 June 2022

अग्निपथ योजना सेना का प्रोफेशनल स्वरूप खत्म कर सकती है / विजय शंकर सिंह

केंद्र सरकार ने भारतीय सेना मे छोटी अवधि के लिए नियुक्तियाँ की एक नई योजना लायी है जिसे अग्निपथ योजना कहा गया हैं। इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश में बेरोज़गारी कम करने के साथ ही रक्षा बजट पर वेतन और पेंशन के बोझ को भी घटाना है, ऐसा सरकार का कहना है। सैन्य अनुभव रखने वाले कुछ जानकार लोगों के अनुसार, इस योजना ने लागू किये जाने के पहले ही, कई चिंताएं पैदा कर दी हैं। एक तो इससे समाज के 'सैन्यीकरण' का ख़तरा है दूसरे, एक बड़ी संख्या में हथियार चलाने के लिए प्रशिक्षित किए गए युवा, नौकरी की अवधि पूरी होने पर, जब वापस लौटेंगे, तब क़ानून-व्यवस्था से जुड़ी अनेक समस्याएं भी खड़ी हो सकती है।

अभी तक शारीरिक और मानसिक रूप से फ़िट जवान की ड्यूटी, 10 से 15 साल के लिए होती है। इस योजना की वजह से भारतीय सेना में 'नौसिखिए' जवानों की संख्या बढ़ जाएगी, जो शत्रु देशों की ओर से मिलने वाली चुनौतियों का सामना करने में असमर्थ भी हो सकते हैं। अभी तक प्रशिक्षण की अवधि एक साल की है। इस योजना के अंतर्गत प्रशिक्षण की अवधि 6 माह की होगी। भर्ती होने वाले अग्निवीरों को युद्ध के मोर्चे पर भी तैनात किया जाएगा और उनकी भूमिका किसी अन्य सैनिक से अलग नहीं होगी। साथ ही, इस योजना के कारण सशस्त्र बलों की सदियों पुरानी रेजिमेंटल संरचना भी बाधित हो सकती है। 

कई अख़बारों ने सरकारी सूत्रों के हवाले से खबर छापी है कि, 
"इस योजना का मक़सद लगातार बढ़ रहे वेतन और पेंशन के बोझ को कम करना है। इस योजना के तहत सरकार पेंशन के साथ ही अन्य भत्तों पर बचत करेगी. अग्निवीरों के लिए वेतन के लुभावने मोटे पैकेज, पूर्व सैनिकों का दर्जा और स्वास्थ्य स्कीम में अंशदान की ज़रूरत नहीं होगी।" 
सरकार का वित्तीय प्रबन्धन फिलहाल ठीक नहीं है। महंगाई, मुद्रास्फीति और मंदी के कारण सरकार पर आर्थिक दबाव है। यह कदम, इस आर्थिक दुरवस्था का भी एक परिणाम हो सकता है।

ले.जनरल पीआर. शंकर ने इसे 'किंडरगार्डन आर्मी' बताया. और कहा
"ये योजना बिना पर्याप्त कर्मचारी और क्षमता के शुरू की जा रही है. इसके तहत कम प्रशिक्षित युवा किसी सबयूनिट का हिस्सा बनेंगे और फिर बिना किसी भावना के ये अपनी नौकरी सुरक्षित रखने की दौड़ में शामिल हो जाएंगे। इस सैनिक से ब्रह्मोस/पिनाका/वज्र जैसे हथियार प्रणाली को चलाने की उम्मीद की जाएगी, जिसे वो संभाल नहीं सकता है और पाकिस्तान-चीनियों के सामने अपनी रक्षा करने की भी आशा की जाएगी. हम भले ही अभिमन्यु बना रहे हों लेकिन वो चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाएगा."

एक अन्य सेवानिवृत्त लेफ़्टिनेंट जनरल ने टेलिग्राफ़ को बताया, 
"ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन लोगों ने इस योजना को लाने का फ़ैसला किया है, उन्हें सेना के बारे में कोई जानकारी नहीं. न तो उन्होंने और न ही उनके बच्चों ने कभी भी सेना में सेवा दी होगी।"
देश में बेरोज़गारी को देखते हुए कहा कि हज़ारों अग्निवीर चार साल तक सशस्त्र बलों में सेवा देंगे, इन्हें हथियार चलाने की ट्रेनिंग मिलेगी और इसके बाद जब ये नौकरी से लौटेंगे तब देश में एक अलग तरह की आंतरिक सुरक्षा से संबंधित समस्या पैदा हो जाएगी.

अग्निपथ में 4 साल के लिए भर्ती होगी। 6 महीने की ट्रेनिंग फिर नौकरी। 4 साल बाद, 'जैसे थे।' पेंशन बिलकुल नहीं मिलेगी। 4 साल के बाद यह ट्रेंड फौजी लड़के जब घर वापसी करेंगे तो क्या उन्हे सरकार कोई जीवनयापन का साधन देगी या सुबह सुबह के व्हाट्सएप मेसेज पढ़ कर ही वे अपना पेट भर लेंगे ? सेना में अविवाहित युवा ही कम उम्र में भर्ती होते हैं। अग्निपथ में भी वही युवा भर्ती होंगे। घर वापसी के बाद, वे भी घर बसाने की ही सोचेंगे। हो सकता हैं, कुछ गैर जिम्मेदार अविवाहित रहें या पत्नी छोड़ कर भाग जाएं। उनको छोड़िए। जो शादी करेंगे, परिवार बढ़ाएंगे उनका जीवन कैसे बीतेगा ?

इस योजना के समर्थन में यह तर्क दिया जा रहा है कि, इजराइल में यह योजना है और वहां अनिवार्य सैनिक प्रशिक्षण सभी नागरिकों को दिया जाता है। लेकिन भारत इजराइल के विपरीत एक अत्यंत विशाल, बहुसांस्कृतिक और विविधितापूर्ण देश है। अनिवार्य सैनिक शिक्षा यदि देनी भी है तो, इसे सभी स्कूलों और कॉलेजों में, एनसीसी को अनिवार्य कर के दी जा सकती है। यह अनिवार्यता सभी, निजी शिक्षण संस्थानों में भी की जा सकती है। एनसीसी एक समय अनिवार्य थी भी। वहां अनुशासन और सैन्य परंपरा के साथ हथियारों का प्रशिक्षण भी दिया जाता था। 

यह भी कहा जा रहा है कि सेना में अधिक युवा सैनिक उपलब्ध रहेंगे। लेकिन चार साला नौकरी वाले अग्निवीर, नियमित जवानों की तरह न तो वेतन भत्ते पाएंगे और न ही उन्हें रिटायर होने के बाद पेंशन और चिकित्सा, कैंटीन की अन्य सुविधाएं ही उपलब्ध होंगी। चार साल की नौकरी पूरा कर लेने के बाद, ऐसे शस्त्र प्रशिक्षित युवा जब रिटायर होकर अपने घर वापस आएंगे तब जो एक लंबा और अनिश्चित बेरोजगारी भरा भविष्य उनके सामने होगा, उसके बारे में क्या सरकार को नही सोचना चाहिए ? इसका, न केवल उन पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ेगा बल्कि सामाजिक असर भी उनके घर परिवार पर पड़ेगा। नौकरी, विशेषकर फौज की नौकरी एक आश्वस्ति का भाव जगाती है। माता पिता ऐसे युवा सैनिकों को लेकर हजार सपने पाले रहते हैं। वे युवा अपने आसपास के युवाओं को प्रेरित भी करते रहते है। पर 4 साल की, पेंशन और अन्य सुविधा रहित अग्निवीर, सेवा के बाद की बेरोजगारी जन्य अवसाद भोगेंगे, उसका क्या परिणाम समाज और उनपर पड़ेगा, इस महत्वपूर्ण विंदु को भी ध्यान में रखा जाना होगा ? 

सरकार को 4 साल की नौकरी के बाद अग्निवीरोँ को, अनिवार्य रूप से कहीं सेवायोजित करना चाहिए। यह कोई प्रोफेशनल कोर्स नहीं है कि लोग कहीं भी एडजस्ट हो जायेंगे। सरकार को इस समस्या पर भी सोचना चाहिए। एक साल के लिए सांसद/विधायक रहने पर पेंशन मिलने लगती है तो फिर चार साल की सेवा किये सैनिक को क्यों नहीं पेंशन दी जा सकती है ?

सेना में, जनरल से लेकर जवान तक हर व्यक्ति सिर्फ सैनिक होता है। युद्ध के दौरान रैंक और बैजेस भी नहीं लगते हैं। कर्नल रैंक तक के सैनिक युद्ध में, आगे रह कर कमांड करते है। हर रेजीमेंट का अपना गौरव और इतिहास होता है जो उन्हें युद्ध में प्रेरणा देता है। 'अग्निपथ' में भर्ती अग्निवीरोँ को यदि  रेगुलर भर्ती के जवानों के समान वेतन, भत्ते, सुख सुविधाएं नहीं मिलती है तो यह न केवल समान कार्य के लिए समान वेतन के कानून का उल्लंघन होगा बल्कि असमानता की यह, कुंठा भी नए अग्निवीरो में पैदा होगी। किसी भी सैन्य बल में ऐसे असंतोष घातक हो सकते है। बात तो वन रैंक वन पेंशन की भी थी। उनका वादा भी वन रैंक वन पेंशन का था। पर वह वादा तो पूरा हुआ नहीं। पेंशन विहीन सेनाभर्ती की एक नई सौगात अब सामने आई है। सेना एक अनुशासित और जिम्मेदार संगठन है, उसे संविदा भर्ती से मत भरिए। जरूरत नही है तो, भर्तियां कम कीजिए पर नियमित कीजिए। 

( विजय शंकर सिंह )

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