Sunday 5 June 2022

प्रवीण झा / रोम का इतिहास - तीन (9)

फोरम रोमानम, 190 ई. 

“क्लिएंडर! जनता तुम्हारा सर क्यों माँग रही है?”, कोमोडस ने पूछा

“सीज़र! मैं मानता हूँ, मुझसे कुछ ग़लतियाँ हुई है। लेकिन, मैं भला क्यों जनता को भूखा मारना चाहूँगा?”, क्लिएंडर ने विनती भाव में कहा

“तुम मुझे बता तो सकते थे कि राज्य में अनाज की समस्या चल रही है?”

“मैं आपको ख़्वाह-म-ख़्वाह परेशान नहीं करना चाहता था।”

“ख़्वाह-म-ख़्वाह? जनता यहाँ बीमारी और भूख से मर रही थी, और आपने सीज़र को बताना ज़रूरी नहीं समझा?”, सिनेटर डियो ने गुस्से में कहा

“सिनेटर! आप शांत रहें। मुझे अब भी आप सभी बुद्धिजीवियों से कहीं अधिक क्लिएंडर पर भरोसा है। यूँ भी बीमारी के पीछे उसका कोई हाथ नहीं। वह तो पूरब से आयी।”

“हम कैसे शांत रहें, सीज़र? मान लिया बीमारी पूरब से आयी। जनता को अनाज मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी तो इन पर थी?”, डियो ने कहा

“तो क्या ऐसा क्लिएंडर ने जान-बूझ कर किया? संभव है अनाज किसी समुद्र लुटेरे ने लूट लिया हो?”, कोमोडस ने क्लिएंडर के बचाव में कहा

“बिल्कुल संभव है। ऐसा पहले भी होता रहा है कि अफ़्रीका से आ रहे अनाज लूट लिए गए। लेकिन, भुखमरी की स्थिति तो रोम में पहली बार आयी है।”

“सिनेटर! आप भूल रहे हैं कि क्लिएंडर पहले स्वयं एक ग़ुलाम था, जिसे हमने आज़ादी दी। यह ग़ुलामी से उठा आदमी जनता के दर्द को आप कुलीनों से बेहतर समझता है। शायद यही बात आपको चुभती है कि यह इतने बड़े ओहदे पर कैसे!”

“आप सही कह रहे हैं, सीज़र। यह गरीबी से उभर कर इस महान पद पर पहुँचे। ये गरीबों के मसीहा बने। जब जनता भूख से बिलख रही थी, यह महात्मा अपने खजाने से अनाज बाँट रहे थे। जरा पूछिए कि जब रोम में किसी के पास अनाज नहीं, इनके गोदाम में अनाज कहाँ से आया? यह आदमी मसीहा बन कर आपकी गद्दी छीन लेता, और आप खेल देखते रह जाते, सीज़र!”

“सिनेटर डियो! अपनी ज़बान संभालिए!”, कोमोडस ने अपनी गद्दी से उतर कर कहा

“सीज़र! आप जानते हैं कि डियो जैसे बुद्धिजीवी सिर्फ़ आपकी आलोचना करते रहे हैं। मुझ पर लगाए गए इल्जाम सरासर झूठ है। मैंने पिछले पाँच वर्षो में कभी शिकायत का अवसर नहीं दिया। इस बार मुझसे गणना में ग़लती हुई, लेकिन मैं जल्द सुधार करूँगा”, क्लिएंडर ने कहा

“अच्छा? हम सिनेटर आपको झूठे आलोचक नज़र आते हैं? और आप सीज़र के हितैषी हैं? क्या मैं सीज़र से आपकी प्रेमिका को यहाँ बुलाने की गुज़ारिश कर सकता हूँ?”, डियो ने मुस्कुराते हुए कहा

“प्रेमिका? उसका इस समस्या से क्या ताल्लुक?”, कोमोडस ने पूछा

“ताल्लुक है सीज़र! उसने मुझे गुप्त सूचना दी है कि यह व्यक्ति आपकी हत्या की साज़िश रच रहा था।”, डियो ने जवाब दिया

“हत्या की साज़िश? सिनेटर यह क्या कह रहे हैं? मेरे ख़िलाफ़ हर साज़िश को तो तुमने रोका है, क्लियैंडर?”, कोमोडस ने चौंक कर कहा

“यह सब झूठ है, सीज़र! इस कमीने डियो ने ज़रूर ऐसी गवाही के लिए रिश्वत दी होगी।”

“तुम मेरी आँखों में देख कर कहो कि तुमने साज़िश नहीं की, न ही किसी साज़िश की खबर थी!”, कोमोडस ने दुबारा पूछा

जैसे ही क्लियैंडर ने आँखें मिलायी, कोमोडस ने कुछ पढ़ा और अपनी म्यान से खंजर निकाल कर घोंप दिया। दरबार में शांति छा गयी। डियो अब भी भावशून्य खड़े कोमोडस को देख रहे थे। 

“आप हमारे पास लौट आइए, सीज़र! हमारे साथ अर्थशास्त्री हैं। अनुभवी प्रशासक हैं। हर क्षेत्र के विद्वान हैं।”, डियो ने कहा 

“आप सब निकम्मे हैं। रोम की जनता का रक्षक सिर्फ़ मैं हूँ।”, कोमोडस ने बाहर मैदान की तरफ़ देखते हुए कहा 

“लेकिन, आप जनता को कहेंगे क्या? वह तो खून की प्यासी है।”

“वह जिसके खून के प्यासी थी, उसका रक्त तो जमीन पर बह रहा है। अब उनकी प्यास मैं बुझाऊँगा। मैं मार्कस ऑरेलियस का पुत्र…सीज़र लुसियस कॉमॉडस जर्मैनिकस मैक्सिमस ब्रिटैनिकस!…अजेय योद्धा… देवता हरक्यूलिस का अवतार!…स्वयं ग्लैडिएटर बन कर उतरुँगा।”
(क्रमशः) 

प्रवीण झा
@ Praveen Jha

रोम का इतिहास - तीन (8) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/06/8.html 
#vss

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