धर्मनिरपेक्षता में कितने पेंच?
(1) संविधान में ‘पंथनिरपेक्ष‘ राज्य का आदर्श है। इसका मायने है कि राज्य सभी धार्मिक मतों की समान रूप से रक्षा करेगा। किसी मत को राज्य धर्म के रूप में नहीं मानेगा। बयालीसवां संशोधन अधिनियम 1976) द्वारा ’पंथनिरपेक्ष’ शब्द को शामिल किया गया है। उद्देशिका में धर्म और उपासना की स्वतंत्रता को अनुच्छेद 25 से 28 में सभी नागरिकों के मूल अधिकार के रूप में शामिल किया गया है। ये अधिकार, प्रत्येक व्यक्ति को धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार का अधिकार देते हैं।
(2) डाॅ. अम्बेडकर ने अनोखा प्रस्ताव पेश किया था। उनके मुताबिक बहुसंख्यक मतदाताओं के चुनाव से उसी उम्मीदवार को विजयी घोषित किया जाए, जो उस क्षेत्र के अल्पसंख्यक मतदाताओं के मतों का एक निर्धारित प्रतिशत प्राप्त करे। प्रस्ताव को किसी सदस्य ने समर्थन नहीं दिया। मुस्लिम लीग के सदस्य चौधरी खलीकुज्ज़मां ने अनोखा सुझाव दिया कि पूरी रिपोर्ट बहुसंख्यक वर्ग के तीन या चार चुनिंदा सदस्यों को सौंप दी जाए जिनका मनोनयन कांग्रेस उच्च कमान करे। ऐसी समिति को ट्रिब्यूनल का दर्जा भी दिया जा सके। सरदार पटेल की सदारत वाली बैठक में अल्पसंख्यकों के लिए अलग निवाचन क्षेत्र गठित करने का प्रस्ताव सिरे से खारिज कर दिया गया।
(3) धार्मिक आजा़दी की गारंटी संविधान में दी गई है। उसका ढांचा कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी और डा. अम्बेडकर ने रचा था। मुंशी के प्रारूप में सभी धर्मावलम्बियों को बराबर आज़ादी दिए जाने का प्रावधान था। आर्थिक, वित्तीय और राजनीतिक गतिविधियां यदि धर्म की आड़ में चलाई जाएं तो उन्हें संवैधानिक आजादी के तहत नहीं रखा गया था। यह भी कि कोई व्यक्ति टैक्स देने उत्तरदायी नहीं होगा, यदि उस टैक्स को किसी अन्य समुदाय की धार्मिक ज़रूरतों के लिए खर्च किया जाना हो। धार्मिक निर्देश भी दीगर धर्मावलंबियों के लिए अमल में नहीं लाए जाएंगे। डाॅ. अम्बेडकर के प्रारूप में अपने धर्म का प्रचार करने और धर्म परिवर्तन की आजा़दी दिए जाने का अधिकार शामिल था। यह भी कि राज्य का कोई धर्म नहीं होगा। संविधान में ‘पंथनिरपेक्ष‘ राज्य का आदर्श है। इसका अर्थ है कि राज्य सभी मतों की समान रूप से रक्षा करेगा और किसी मत को राज्य धर्म के रूप में नहीं मानेगा।
(4) 3 दिसम्बर 1948 तथा 6 दिसम्बर, 1948 को इसी पर जिरह करते कांग्रेस सदस्य लोकनाथ मिश्र ने कहा था कि अनुच्छेद 19 स्वतंत्रता का घोषणापत्र है, तो अनुच्छेद 25 हिन्दुओं को गुलाम बनाने का घोषणापत्र। यह बेहद अपमानजनक अनुच्छेद संविधान के मसौदे का सबसे काला दाग है। राज्य को सेक्युलर घोषित करने का अर्थ है कि हमें धर्म से कोई प्रयोजन नहीं। धर्म प्रचार के कारण ही देश को पाकिस्तान और भारत में बांटना पड़ा। इस्लाम इस देश पर अपनी इच्छा नहीं थोपता, तो भारत सेक्युलर तथा एकरूप राज्य होता। हमने धर्म को हटाकर ठीक किया। मूल अधिकार में हर व्यक्ति को अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार देना ठीक नहीं। आप धर्म को स्वीकार करते हैं, तो आपको हिन्दुइज़्म को ही स्वीकार करना पड़ेगा, क्योंकि भारत की एक बड़ी आज़ादी इसी धर्म पर चलती है।
उन्होंने आगे कहा कि, "बार बार बात दुहराया गया है कि राज्य सेक्युलर होगा। गैरहिन्दुओं पर ज़्यादा उदारता दिखाने हिन्दू प्रधान देश ने राज्य को सेक्युलर बनाना स्वीकार किया। क्या सचमुच हमारा विश्वास है जीवन से धर्म को बिलकुल अलग रखा जा सकता है? ‘‘हज़रत मोहम्मद या ईसा मसीह और उनके विचारों और कथनों से हमारा झगड़ा नहीं है। प्रत्येक विचारधारा और संस्कृति का महत्व है लेकिन धर्म का नारा लगाना खतरनाक है। समाज सम्प्रदायों में बंट जाता है। लोग अपने अपने दल बनाकर संघर्ष का रास्ता अख्तियार करते हैं। अनुच्छेद 25 में propagation’ (धर्मप्रचार) शब्द रखा गया है। इसका एकमात्र नतीजा हिन्दू संस्कृति एवं हिन्दुओं की जीवन तथा आचार पद्धति के पूरे विनाश का ही मार्ग प्रशस्त होने से है। इस्लाम ने हिन्दू विचारधारा के लिए दुश्मनी घोषित कर रखी है। ईसाइयों की नीति है हिन्दुओं के सामाजिक जीवन में दबे पांव प्रवेश किया जाय। यह इस कारण सम्भव हो सका क्योकि हिन्दू मत ने अपनी सुरक्षा के लिए दीवारें नहीं खड़ी कीं। हिन्दुओं की उदार विचारधारा का दुरुपयोग किया गया और राजनीति ने हिन्दू संस्कृति को कुचल दिया है। दुनिया के किसी भी संविधान में धर्म प्रचार को मूल अधिकार नहीं कहा गया है और न ही अदालतों में चुनौती योग्य माना गया है।"
(जारी)
कनक तिवारी
© Kanak Tiwari
हिन्दू, हिन्दुत्व, सेक्युलरिज़्म और मुसलमान (3)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/06/3.html
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