'वागर्थ' में गाँधी को समर्पित मिस्र के महान कवि अहमद शावकी (1868-1932), जो अमीर अल शूरा (प्रिंस ऑफ पोएट्स) के नाम से प्रख्यात थे, की एक कविता प्रकाशित हुई। यह कविता गाँधी के इस्तक़बाल में उस वक़्त लिखी गई जब वह बाबलमंदब और स्वेज़ के रास्ते जहाज़ से लंदन की यात्रा पर थे। भारतीय स्वाधीनता संग्राम परवान पर था उसी तरह मिस्र को औपनिवेशिक आज़ादी तो मिल चुकी थी लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य के मुदाख़लत व शर्तों से मुक्ति के लिए वह राष्ट्र फिर भी छटपटा रहा था। कविता बताती है कि गाँधी किस तरह भारत की सरहद से परे एशिया और अफ़्रिका के मुल्कों में यूरोपीय औपनिवेशिक दासता से मुक्ति के लिए चलनेवाले राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के लिए आशा-स्तंभ के दीप की तरह बल रहे थे ।
अहमद शावकी कवि के साथ-साथ एक नाटककार, भाषाविद, अनुवादक और सामाज वैज्ञानिक भी थे।
साभार: वागर्थ
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मिस्रवासियो! इस भारतीय वीर को
पहनाओ अपना उम्दा ताज
उसे सलाम करो
इस रौशन रूह को अपनी बंदगी पेश करो
मुसीबत में वह तुम्हारा भाई है
तुम्हारी ही तरह लड़ रहा अन्याय के खिलाफ
आले दरजे की अपनी शहादत के साथ
सत्य की खोज करते हुए वह
लगातार कर रहा है यात्राएं
उठो, उसके गुजरते हुए जहाज को
करो नजदीक और दूर से भी सलाम
पाट दो जमीं को फूलों से
ढक दो सागर को गुलाबों से
‘राजियोटा’ जहाज के रेलिंग पर
वह खड़ा है भव्यता की प्रतिमूर्ति बन
कनफ्यूसियस की तरह बनकर पैगंबर
अपनी कथनी और करनी में वह महदी है
जिसका करते रहे हैं हम सदा इंतजार
सत्य पर अडिग, विनम्रता में वह नबी है
सचाई और सब्र के साथ सही राह दिखाते हुए
वह सदा करता है हमारा मार्गदर्शन
बीमार आत्माएं जब भी आईं उसके पास
उसने दिया उन्हें विद्वेष से मुक्ति का संदेश
इस्लाम और हिंदुत्व के बीच
मेल-मिलाप के लिए उसने लगाई है गुहार
उसकी मजबूत रूहानी ताकत से
दोनों तलवारें म्यानों में हुई हैं जब्त
अपने अहं पर करके इख्तियार
उसने पाई है शेर को भी साधने की ताकत
खुदा की रहमत से मिला है उसे सब्र का नेमत
जो किस्मत से मिलता है किसी इनसान को
जिसे कोई छीन नहीं सकता उससे बलात
लड़कर या सैनिकों के बल पर
वह मिलता नहीं है जन्म से न नसीब से
न कोशिश से न मशक्कत से
यह है अल्लाहताला से उसके बंदे को मिला सौगात
हे गांधी! नील नदी करती है आपका वंदन
पेश हैं हमारी ओर से भी ये फूल और चंदन
ये पिरामिड ये कमक और ये पपीरस
सब करते हैं आपकी महानता को नमन
हमारी घाटी के सभी शेख और
बिना अयाल वाले छोटे-छोटे शावक
सब करते हैं आपका हार्दिक अभिनंदन
आदाब है उस इनसान को जो खुद दुहता है बकरी
खुद बुनता है कपड़ा ढकने के लिए अपनी ठठरी
नमक के लिए करता है दांडी मार्च
नंगे बदन करता है इबादत नमदे पर बैठकर
जेल के कोने में जंजीरों से बंध कर
सब करते हैं उसकी सादगी की बंदगी
हे गांधी! उनके टेबल-गेम से रहना सावधान
जिसे वे खेलते हैं सम्मेलन के दौरान
जब आप कर रहे होंगे आजादी की बात
बैठक में सामने बैठे विरोधी पिशाचों के साथ
उसने कहा है– ‘ले आओ अपना काला नाग
आया है भारत का संपेरा’
पर चाहे वे करें आपको बदनाम
उसका बुरा न मान लेना
और उनकी तारीफ से भी खुद को
व्यर्थ न होने देना
आप एक सितारा हैं जिसे
छू नहीं सकती आलोचना
आपको एक सिरे से दूसरे सिरे तक
भारत को है जोड़ना।
~ अहमद शावकी
#vss
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