बोधिसत्व ने फेसबुक पर एक ऐतिहासिक प्रसंग का उल्लेख किया है। उसे पढ़े,
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मेरा मानना है कि इतिहास को बदला नहीं जा सकता। उसे धुंधला करने की कोशिश करने में भी बहुत कुछ नष्ट करना होगा।
आज बीजेपी शिवसेना और अन्य दल अकबर और शिवाजी महाराज के विचारों को लेकर क्या सोच रखते हैं वह जग जाहिर है। लेकिन अकबर और उनकी महनता के बारे में महान शिवाजी क्या सोच रखते हैं उसे उनके एक पत्र से समझा जा सकता है। शिवाजी का यह पत्र बताता है कि अकबर को शिवाजी कहीं से भी सांप्रदायिक और भेदवाद करने वाला या फिरकापरस्त शासक नहीं मानते थे। शिवाजी ने अपनी यह भावना अकबर के ही वंशज बादशाह औरंगजेब से प्रकट की है। अब यदि कोई इतिहास से अकबर के सुकीर्ति को मिटना चाहे तो शिवाजी के कथनों को जलाना पड़ेगा। मिटाना पड़ेगा।
शिवाजी का यह पत्र यदुनाथ सरकार की किताब से उद्धृत है और लेकिन यहां प्रकाशित अंश राय आनन्द कृष्ण की किताब अकबर से लिया गया है। पत्र में शिवाजी के माध्यम से अकबर के प्रति उनकी प्रजा की भावनाएं भी उजागर होती है। अकबर की प्रजा उनको "जगतगुरु" मानती थी।
शिवाजी के पत्र का अंश-
"अकबर ने इस बड़े राज्य को बावन बरस तक ऐसी सावधानी और उत्तमता से चलाया कि सब फिरकों के लोगों ने सुख और आनन्द पाया। क्या ईसाई, क्या भुसाई, क्या दाऊदी, क्या फलकिये, क्या नसीरिए, क्या दहरिये, क्या ब्राह्मण और क्या सेवड़े, सब पर उनकी समान कृपा दृष्टि रहती थी। इसी सुलह कुल के बर्ताव के कारण सब लोगों ने उन्हें जगत गुरु की पदवी दी थी। इसी प्रभाव के कारण वे (अकबर) जिधर देखते थे, फतह उनके सामने आकर खड़ी हो जाती थी ।"
जो भावनाएं शिवाजी प्रकट कर रहे हैं उसे उनके नाम पर दल चला रहे लोग कितना मानते हैं यह देखने की बात है। लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों को दरकिनार नहीं किया जा सकता।
अकबर के देहांत पर देश की क्या प्रतिक्रिया थी उसका एक प्रमाण विख्यात हिंदी कवि बनारसी दास जैन ने अपनी पुस्तक अर्ध कथानक में लिखा है। वे लिखते हैं कि
"प्रजा मानो अनाथ हो गई। उसका स्वामी चला गया। जौनपुर के निवासी भयभीत हो गए, उनका मुख पीला पड़ गया और हृदय व्याकुल हो गया। ऐसी ही प्रीति थी अकबर के प्रति प्रजा में।"
बादशाह अकबर के देहावसान की सूचना बनारसी दास जैन को जौनपुर में मिली थी। वे लिखते हैं कि जौनपुर में दस दिन शोक मनाया गया।
कितना आपको बताया जाता है वह अपनी जगह है लेकिन आज आप का यहफर्ज बनता है कि आप अपने महान शासकों के बारे में वह जाने जो आपको नयहहीं बताया जा रहा है।
अगर महान संत तुलसीदास और सूरदास अकबर के समकालीन होकर भी उनके बारे में कोई विरोधी वाक्य नहीं बोलते तो इसमें आश्चर्य कैसा?
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यह पत्र मूल रूप से सर जदुनाथ सरकार की लिखी पुस्तक शिवाजी एंड हिज टाइम्स में उद्धृत है। सर जदुनाथ सरकार, औरंगजेब पर एक आधिकारिक विद्वान है और पांच खंडों में उन्होंने औरंगजेब पर अपनी किताब लिखी है।
यह पत्र शिवाजी ने औरंगजेब को लिखा था और औरंगजेब को उसके पुरखे अकबर की धार्मिक नीति की बात को समझाया था। औरंगजेब कट्टर धर्मांध था और अकबर एक उदार शासक था। यही बात शिवाजी अपने समकालीन औरंगजेब को पत्र में लिख रहे हैं।
शिवाजी एक महान योद्धा ही नही बल्कि वे एक कुशल कूटनीतिञ, सैन्य रणनीतिकार, उदार और विलक्षण प्रतिभा के शासक रहे हैं।
कोई भी व्यक्ति अकबर या पूरे मध्यकाल को अपने अपने दृष्टिकोण से देखने के लिये स्वतंत्र है । महाराणा प्रताप और अकबर के बीच के युद्ध मे अकबर नहीं गया था। मान सिंह को भेजा था उसने। मान सिंह ने मुग़ल साम्राज्य के लिये 22 युद्ध लड़े थे। और उधर राणा प्रताप की तरफ से, मेवाड़ का सेनापति, अफगान सरदार हकीम खान सूर था।
महाराणा प्रताप, क्षत्रपति शिवाजी, मुग़ल सम्राट, अकबर औरंगजेब आदि सबके अपने अपने चरित्र हैं और इतिहास में हम उनके बारे में, उसी के अनुसार सब पढ़ते हैं अपनी सोच के अनुसार उनके बारे में अपने अपने निष्कर्ष गढ़ते रहते हैं। अधिकतर इतिहासकार, अशोक और अकबर को महान कहते हैं। यह उनका नजरिया है। आप या हम या कोई भी यह विशेषण लगाने या न लगाने के लिये स्वतंत्र है। अकबर और औरंगजेब की नीतियों का यदि अध्ययन करेंगे तो निश्चय ही अकबर, मेरी निगाह में, औरंगजेब से बेहतर था।
अकबर और औरंगजेब के शासन से हमे यह सीख लेनी चाहिए कि, अकबर ने धार्मिक सद्भाव की नीति अपनाई और अपने साम्राज्य का विस्तार किया, और औरंगजेब ने धर्मांधता की नीति का अनुसरण किया और एक विस्तीर्ण और समृद्ध साम्राज्य भी दरकने लगा। यह इस नीति को प्रमाणित करता है कि, धर्म के आधार पर राजनीति या राजसत्ता चलाने की जो भी सोचेगा वह खुद भी बर्बाद होगा और देश भी उसके बाद छिन्नभिन्न होने लगेगा। यह ध्रुव सत्य है।
इस विषय पर जो और पढ़ना चाहते हैं, यह लिंक पढ़ सकते हैं।
http://mariam-uz-zamani.blogspot.com/2015/11/shivaji-letter-to-aurangzeb-protest-jaziya.html?m=1#.YEHcGx9N2Nx
( विजय शंकर सिंह )
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