मथुरा में एक पुलिस अफसर सहित कई अन्य पुलिसजन पर आरएसएस के गुंडों ने हमला किया और उन्हें बुरी तरह मारा पीटा। यह घटना शर्मनाक और निंदनीय तो है ही साथ ही मथुरा के वरिष्ठ पुलिस अफसरों की अपने मातहत अफसरों के प्रति इस घटना के बाद की गयी प्रतिक्रिया तो क्लीवतापूर्ण और हैरान करने वाली रही।
पुलिस, सरकार और सत्ता का प्रतीक मानी जाती है और यह बात भी बिल्कुल सही है कि अक्सर पुलिस अफसर गलतिया करते भी हैं। पर उन गलतियों के लिये उन्हें दंडित करने के प्राविधान भी हैं। पुलिस विभाग में सबसे अधिक दंड और विभागीय कार्यवाही होती है। अगर निलंबन और बर्खास्तगी के आंकड़े देखे जांय तो सबसे अधिक निलंबन और बर्खास्तगी पुलिस में ही होती है। यह बात केवल यूपी पुलिस के बारे में ही नही है, बल्कि देश भर की पुलिस के लिये है।
पुलिस मजहमत की, प्रदेश में, न तो यह पहली घटना है और न ही अंतिम। तीन साल पहले बुलंदशहर में पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की वहां के बजरंग दल के गुंडों ने पीट पीट कर हत्या कर दी थी। पर बजरंग दल का जिला संयोजक योगेश लम्बे समय तक फरार रहा और बाद में वह जेल गया। भाजपा और उसके लोगो ने खुलकर अपने पदाधिकारी का साथ दिया। सरकार भी उतनी सक्रिय नहीं हुयी जितनी होनी चाहिए थी।
ऐसी घटनाएं, पुलिस का जितना मनोबल गिराती हैं उससे अधिक, अधीनस्थ अधिकारियों के मन में अपने वरिष्ठ अधिकारियों के प्रति अविश्वास का भाव उपजाती, है जिसका असर पुलिस की आंतरिक कार्यप्रणाली, अनुशासन और रेजीमेंटेशन पर पड़ता है। मथुरा की घटना में भी हो सकता है मारपीट करने वाले आरएसएस के गुंडों को देर सबेर, अदालत में हाज़िर हो जाने दिया जाय और पुलिस के पिटे कर्मचारियों को भी समझाबुझाकर यह मामला शांत करा दिया जाय, पर इस तरह पुलिस मजहमत के मामले किसी पुलिस अफसर के निजी अधिकार और पद को चुनौती देते नहीं है, बल्कि वे सरकार, कानून और पुलिस की संस्था को चुनौती हैं। साथ ऐसे मामले बताते हैं कि, सत्तारूढ़ दल से जुड़े, आरएसएस और बजरंग दल के गुंडों को कुछ भी करने की अघोषित छूट है, और पुलिस को भी उनके आतंक के सामने बेबस और खामोश हो जाना है।
मथुरा में ही पांच साल पहले एक एडिशनल एसपी को जवाहरबाग में घेर कर, दबिश के दौरान मार डाला गया और आज तक सीबीआई उस मुकदमे में, दोषी अभियुक्तों को सज़ा नहीं दिला पायी। तब सपा का जंगल राज था, औऱ अब जब ऐसी ही घटना जगह जगह हो रही है तो इसे क्या कहा जाय ? जवाहरबाग की घटना में सपा सरकार की सांठगांठ की बात प्रकाश में आयी थी। जवाहरबाग राज्य के अंतर्गत एक राज्य की तरह हो गया था।
एक बात तय मानिये, गुंडे न तो भाजपा के होते हैं, न सपा के न बसपा के और न ही कांग्रेस के। जिस दल में उन्हें संरक्षण और भाव मिलता है वे वहां चले जाते हैं। अपराध को सदैव पनपने के लिये सत्ता के मौसम और कानून का खाद पानी चाहिए। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सत्ता तक येनकेन प्रकारेण पहुंचने और सत्ता में बने रहने का लोभ और मोह, ऐसा मौसम आसानी से उपलब्ध करा भी देता है। सत्ता बदलते ही, उनकी गाड़ियों पर लगे झंडे भी बदल जाते हैं। वे सिर्फ गुंडे हैं और अपराधी हैं चाहे वे जयश्रीराम बोलें, या जय समाजवाद या जय भीम।
( विजय शंकर सिंह )
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