Wednesday, 24 March 2021

कविता - मजबूती का तिलिस्म / विजय शंकर सिंह

जितनी ही ऊपर से 
पाशविक दिखती जाती है सत्ता, 
अंदर से 
उतनी ही लिजलिजी और भयातुर होती है,
वह डरती है, 
व्हीलचेयर पर बैठे साईंबाबा से, 
पार्किंसन से पीड़ित 
75 साल के वृद्ध, फादर स्टेन स्वामी से,
उनके एक अदद स्ट्रा से,
और बीमार पर दृढ़ 
मानसिक रूप से चैतन्य,
वरवर राव की कविताओं से !
डर, 
मज़बूत दिखती हुयी सत्ता का स्थायी भाव होता है, 
जिस दिन लोग डरना छोड़ देंगे, 
मजबूती का यह सारा तिलस्म, 
उसी दिन, भरभराकर गिर जाएगा !! 

( विजय शंकर सिंह )

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