ग़ालिब - 120.
करे है सर्फ ब ईमाए शोला किस्सा तमाम,
बतर्ज़ अहले फ़ना है, फ़सानाख़्वानीए शम्म'आ !!
Kare hai sarf ba iimaae sholaa kissaa tamaam,
Batarz ahale fanaa hai, fasaanaa'khwaanii'e shamm'aa !!
- Ghalib
प्रेम के सारे किस्से कहानियां, दीपक, अपनी प्रज्वलित लौ द्वारा ही अभिव्यक्त कर देता है। इश्क़ में फ़ना हो जाने, यानी प्रेम में मर मिटने वालों के साथ ही, उनके किस्से तो तमाम हो जाते हैं, पर वे ही नातमाम किस्से, लोगो के जेहन और दिमाग पर अमर भी हो जाते हैं। दीपक की लौ जो कहानी कह रही है, उसका अंत ही, फ़ना हो जाने पर हैं।
दुनियाभर की प्रसिद्ध प्रेम कहानियों का अंत दुःखद होता रहा है। उन कहानियों की खूबसूरती उनके दुःखान्त होने में हैं। वे कहानियां दुःख के समंदर में डूब कर दंतकथाओं की तरह फैल जाती हैं और फिर साहिल से टकराती लहरें, बार बार उन्हें दुहराती हैं। किस्सो का यूँ लब ब लब फैलते जाना ही उन कहानियों की अमरता का प्रमाण है। वे चाहे लोकगीतों या लोक कथाओं में बरबस छू लेने वाली खुनक हवाओ की तरह हों या फिल्मों में जी गयी प्रेम कथाएं, मन मे आलोड़न के कई दर्द दे कर रह जाती है। याद उनकी बनी रहती हैं।
इश्क़ में फ़ना होने की तरह, दीपक की प्रकम्पित लौ का प्रतीक और रूपक ऐसी ही अधूरी प्रेम कथाओं की बात, ग़ालिब का यह शेर करता है। दीपक की लौ, उसके इर्दगिर्द मंडराने वाले परवानों के फ़ना हो जाने की आदत को, रेखांकित करता है। शमा और परवाना, प्रेम का एक लोकप्रिय प्रतीक है। न जाने कितने गीत, कितने किस्से इस प्रतीक से बाबस्ता हैं। इस शेर में भी यही कहा गया है कि, दीपक की प्रज्वलित शिखा यानी जलती हुयी लौ, इश्क़ के किस्सों की तरह है। प्रकम्पित दीप शिखा या हिलती हुयी लौ, ये वे प्रेम कथाएं हैं जिनपर परवाने, प्रेमी या प्रेमिका, निसार हो जाते हैं।
इश्क़ के बारे में ग़ालिब की यह पंक्तियां पढ़े,
जान तुम पर निसार करते हैं,
हम नहीं जानते वफ़ा क्या है !!
यह पंक्तियां उनके एक बेहद खूबसूरत ग़ज़ल की हैं। वफ़ा यानी प्यार का कोई अर्थ होता है क्या ? होता होगा। वह तो हमें नहीं मालूम, बस यह मालूम है कि हम तुम पर अपनी जान निसार, न्योछावर करते हैं। अब यह वफ़ा है या इश्क़ या प्रेम, यह हमें नहीं पता। यह बात इश्क़ हक़ीक़ी दैविक प्रेम के बारे में है या इश्क़ मजाज़ी दैहिक प्रेम के बारे में है, इसका निर्णय तो पाठक को ही करना है, पर शमा परवाना का प्रतीक, आध्यात्मिक प्रेम या सूफियाना इश्क़ का भी सबसे चहेता रूपक और प्रतीक है।
अरब की लोककथा में लैला - मजनू, (मजनू तो कैस की दीवानगी से उसे कहा जाने लगा था) फ़ारसी की अमर प्रेम कथा, शीरी फरहाद, या पंजाब की सदाबहार लोक गाथाए सोहनी महिवाल, सस्सी पुन्नू और हीर रांझा, यह सब अधूरी पर अमर प्रेम कथाएं रही हैं। यह सच मे घटी कोई कहानियां हैं या प्रेम के प्रति सदैव निष्ठुर भाव रखने वाले समाज को एक्सपोज करने वाली कल्पना प्रसूत कहानियां, यह मुझे नहीं पता है, पर लोक मन मे बसी यह कहानिया आज भी समाज के नैतिकता के मानदंड पर कुछ कुछ खरी उतरती है। हॉनर किलिंग की घटनाओं के संदर्भ में इसे देखें। यह सारी कथाएं, ग्रीक ट्रेजडी की तरह दुःखान्त हैं। इन प्रेम कथाओं की खूबसूरती ही इनका अंजाम तक न पहुंचना यानी वियोग रहा है। यह एक टीस के साथ खत्म होती हैं और तीरे नीमकश की तरह हर पल याद आती रहती है।
अमीर खुसरो सूफी परंपरा के एक महान कवि और उन्हें क़व्वाली का जन्मदाता माना जाता है। कहते हैं, सूफी संतों की मज़ारो और खानकाहों पर कव्वाली और नात ( ईश्वर और पैगम्बर की प्रशंसा में गाया जाने वाला गीत संगीत ) गाने की परंपरा उन्होंने ही शुरू की थी। आज भी दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह में, जाते समय पहले ग़ालिब की मजार पड़ती है और अंदर दरगाह के पास अमीर खुसरो और तब हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह है। पहले अमीर खुसरो के दर पर हाज़िरी दी जाती है और तब हज़रत निज़ामुद्दीन की दरगाह पर लोग जाते हैं। उन्ही अमीर खुसरो का यह खूबसूरत दोहा है,
खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार,
जो उबरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार !!
यहां भी ग़ालिब के शेर की ही तरह, इश्क़ की पूर्णता फ़ना या समर्पित हो जाने में है। प्रेम की इसी बारीकी को, ग़ालिब ने दीपक की प्रकम्पित लौ के रूपक से व्यक्त किया है।
( विजय शंकर सिंह )
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