सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा के दर्शन हेतु मंदिर में 10 से 50 वर्ष उम्र तक की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। 2006 में सबसे पहले महिलाओं के मंदिर प्रवेश हेतु सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। यह याचिका संविधान के अंतर्गत प्रदत्त मौलिक अधिकार, समानता और धार्मिक उपासना के अधिकार के अंतर्गत दायर की गयी थी। सुप्रीम कोर्ट में इससे जुड़ी और भी याचिकाएं दायर हुयीं। पूर्व सीजेआई दीपक मिश्र की अध्यक्षता में गठित संविधान पीठ ने अक्टूबर 2018 में सभी वय के महिलाओं को मंदिर में पुरूषों के समान ही प्रवेश करने और पूजा अर्चना करने पर रोक को असंवैधानिक घोषित कर दिया। यह महिलाओं की आस्था पर ही छोड़ दिया कि वे मंदिर में जाना चाहें तो जा सकती हैं। उन्हें रोका नहीं जाएगा।
इसकी मंदिर प्रशासन में व्यापक प्रतिक्रिया हुयी। उन्होंने इस आदेश को धार्मिक आज़ादी में दखल और धर्म मे हस्तक्षेप बताया और इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया। दो महिलाओं ने जो मंदिर के अंदर जाना चाहती थीं को पुलिस ने अपनी सुरक्षा में अंदर दर्शन कराया। इसके विरोध में मंदिर दो घन्टे बंद रहा और अयप्पा की शुद्धि की गयी। राजनीति भी गरमायी। भाजपा और संघ ने इसे हिन्दू धर्म की धर्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा बनाया। प्रधानमंत्री नरेंद मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अदालत को यह नसीहत भी दे डाली कि ऐसे आदेश अदालत न करे तो लागू न किये जा सके और लोगों के विश्वास औऱ भावनाओ के विपरीत न हों।
मंदिर प्रवेश के लिये जो कानूनी लड़ाई लड़ी गयी उसका भी एक कानूनी इतिहास है। 28 साल पहले (1990 में) मंदिर परिसर में इस उम्र की महिलाओं के प्रवेश का मामला सामने आया। तब 24 साल का एक युवक एस महेंद्रन यहां महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचा था। वह कोट्टायम जिले की एक लाइब्रेरी में सचिव था और लाइब्रेरी आने वाले सभी अखबार पढ़ा करता था। तभी उसकी नजर एक तस्वीर पर पड़ी। तस्वीर केरल में मंदिरों की व्यवस्था संभालने वाले देवस्वम बोर्ड की तत्कालीन आयुक्त चंद्रिका की नातिन के पहले अन्नप्राशन संस्कार की थी। समारोह में बच्ची की मां भी मौजूद थी। इसे देखकर महेंद्रन ने हाईकोर्ट को सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर रोक के लिए पत्र लिखा। पत्र को जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार कर लिया गया।
हाईकोर्ट ने अगले साल इस याचिका पर फैसला सुनाया और सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर रोक की सदियों पुरानी परंपरा को सही ठहराया। कहा कि मंदिर में 10 से 50 वर्ष की उम्र वाली महिलाओं के प्रवेश पर रोक न संविधान का, न ही केरल के कानून का उल्लंघन है। इसलिए इसे बरकरार रहना चाहिए। मगर इस आदेश के बाद महिलाओं का प्रवेश मान्यता से नहीं, बल्कि कानूनी रूप से प्रतिबंधित हो गया।
2006 में इस रोक को चुनौती मिली। तभी से सबरीमाला बार-बार सुर्खियों में आने लगा। 2006 में कन्नड़ अभिनेत्री जयमाला ने सार्वजनिक रूप से यह दावा किया कि 1987 में वे मंदिर आई थीं और गर्भ-गृह में देवता की मूर्ति को छुआ भी था। यह सब एक फिल्म की शूटिंग का हिस्सा था। तब जयमाला की उम्र 28 साल थी। इस दावे के बाद व्यवस्थापकों ने मंदिर का ‘शुद्धिकरण’ करवाया। इस ‘शुद्धिकरण’ को भेदभाव मानते हुए 2006 में इंडियन यंग लॉयर एसोसिएशन की पांच महिला वकील सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं। याचिका दायर कर इन्होंने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध हटाने की मांग की। तर्क दिया कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक संविधान के अनुच्छेद-17 का उल्लंघन है। 2007 में केरल की लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट सरकार ने यंग लॉयर एसो. की याचिका के समर्थन में हलफनामा दाखिल किया।
2017 मे सुप्रीम कोर्ट ने मामला संविधान पीठ को सौंप दिया। 2018 की जुलाई में पांच जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई शुरू की। 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने 4-1 के बहुमत से इस पर फैसला सुनाया। कहा कि सबरीमाला में महिलाओं को गैर-धार्मिक कारणों से प्रतिबंधित किया गया है, जो सदियों से जारी भेदभाव है। पितृसत्ता के नाम पर समानता के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। पीरियड्स की आड़ लेकर लगाई गई पाबंदी महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है।
जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ ने चीफ जस्टिस के इस फैसले का समर्थन किया। मगर संविधान पीठ में शामिल एकमात्र महिला जस्टिस इन्दु मल्होत्रा का फैसला विपरीत रहा। उन्होंने कहा कि सती जैसी सामाजिक कुरीतियों से इतर यह तय करना अदालत का काम नहीं है कि कौन- सी धार्मिक परंपराएं खत्म की जाएं।
केरल सरकार इस आदेश पर अमल करने में जुट गई है। मगर कांग्रेस, बीजेपी, कुछ हिन्दू संगठन तथा भक्तों की संस्थाएं फैसले और सरकार के प्रयासों का विरोध कर रहे हैं। इनकी मांग है कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करे। मगर लेफ्ट सरकार भी स्पष्ट कर चुकी है कि वह फैसले के खिलाफ नहीं जाएगी। विरोध करने वालों का कहना है कि ‘हर धार्मिक स्थल की अपनी परंपराएं हैं। इसे अदालत के फैसलों से नहीं बदला जा सकता।
सबरीमाला मंदिर केरल स्थित पत्तनमतिट्टा जिले के पेरियार टाइगर रिजर्वक्षेत्र में है। 12वीं सदी के इस मंदिर में भगवान अय्यपा की पूजा होती है। मान्यता है कि अय्यपा, भगवान शिव और विष्णु के स्त्री रूप अवतार ‘मोहिनी’ के पुत्र हैं। इनके दर्शन के लिए हर साल यहां 4.5 से 5 करोड़ लोग आते हैं।
अदालत के इस आदेश पर एक पुनरीक्षण याचिका दायर की गयी। उसकी सुनवाई हो गयी है पर निर्णय सुरक्षित रखा गया है। तभी केरल देवस्थानम बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में यह कह दिया कि वह अदालत के आदेश को मानने के तैयार है और सभी महिलाओं के मंदिर प्रवेश के प्रतिबंध को हटाने जा रहा है। मंदिर प्रशासन के इस सूझबूझ भरे निर्णय से बात बात में धर्म की राजनीति करने वाले लोगों से केरल राज्य को मुक्ति मिली। यह भगवान अयप्पा की दी हुयी सद्बुद्धि है कि सबरीमाला की समस्या जो पिछले छह महीने से एक बड़ा मुद्दा बन रहा था, समाप्त हो गया।
© विजय शंकर सिंह
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