Wednesday, 6 February 2019

कानून - गौहत्या पर एनएसए या रासुका - एक चर्चा। / विजय शंकर सिंह

गौहत्या एक संवेदनशील अपराध है और इसके दुष्परिणाम कानून व्यवस्था पर बहुत तेज़ी से पड़ते रहे हैं, तब भी जब इसका राजनीतिकरण नहीं हुआ था और अब भी जब इसका राजनीतिकरण हो गया है । इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए ही 1857 में हुये जन विप्लव के बाद जब अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुरशाह जफर को पुनः स्वतंत्र हिंदुस्तान का बादशाह घोषित किया गया तो उसने पहला फरमान गौहत्या को एक दंडनीय अपराध, घोषित करने का जारी किया था। उसके पूर्ववर्ती मुग़ल और मुस्लिम सुल्तानों ने भी गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने के फरमान जारी किये थे। बाबर की वसीयत में भी गाय की हत्या न करने का उल्लेख है। 1857 के विप्लव का एक बड़ा कारण ही गाय और सुअर की चर्बी वाले कारतूस का प्रयोग होना था। इन कारतूसों को दांत से खोल कर बंदूकों में भरना पड़ता था। गाय की चर्बी से हिन्दू आहत थे और सुअर की चर्बी से मुस्लिम नाराज़ हो गए थे। इसी तात्कालिक कारण से बैरकपुर, जो कोलकाता के पास है में 29 मार्च 1857 में, मंगल पांडेय नामक एक सिपाही ने अंग्रेज सार्जेंट पर हमला कर दिया फिर तो  सैनिक  विद्रोह शुरू हो गया । धर्म सभी मनोवेगों के ऊपर होता है।

खबर है कि, मध्यप्रदेश की सरकार ने गौहत्या के तीन मामलों में अभियुक्तों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंगर्गत निरोधात्मक कार्यवाही की है।  मध्यप्रदेश में गौहत्या पर रासुका की कार्यवाही पहली बार हुयी है नहीं यह तो मैं नहीं बता पाऊंगा, पर उत्तरप्रदेश में इस अपराध की संवेदनशीलता को देखते हुए ही पुलिस और जिला मैजिस्ट्रेट इस मामले में रासुका, National Security Act ( NSA ) के अंतर्गत मुख्य अभियुक्त के खिलाफ कार्यवाही करते रहे हैं। खुद मैं जब जिलों में पुलिस अधीक्षक था तो गौहत्या के मामलों में कुछ पर एनएसए और कुछ पर गिरोहबंद निवारण अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाहियां कीं हैं।

ऐसे अभियुक्तों को रासुका या NSA में निरुद्ध करने का एक कारण अदालतों से इस अभियोग में जल्दी जमानतें मिलना भी रहा है। जल्दी जमानतें  मिलने से मुल्ज़िम फिर छूट जाता है और उसे खुला देख कर फिर कोई अफवाह फैल सकती है या साम्प्रदायिक तत्व दंगे करा सकते हैं। लेकिन, एनएसए लगने पर लंबे समय तक वह जेल में रह जाता है, जिससे इस अपराध में लिप्त लोगों पर नियंत्रण बना रहता है।

केवल गौहत्या हो जाय और उसे लेकर कोई बवाल न हो, आशिक उपद्रव हो तो ऐसी घटनाओं पर एनएसए नहीं लगता है। महत्वपूर्ण गौहत्या नहीं बल्कि गौहत्या से उपजे आक्रोश का परिणाम महत्वपूर्ण होता है। गौहत्या से ऐसी परिस्थिति का बन जाय कि लोक व्यवस्था ( Public Order ) के भंग हो गयी हो, या हो सकती हो,  तब  रासुका की कार्यवाही की जाती है। लोक व्यवस्था के भंग हो जाने का खतरा, थाने के दस्तावेजों और इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स से भी प्रमाणित होना चाहिये, नही तो शासन या हाईकोर्ट की समीक्षा में यह एनएसए रद्द हो जाता है। पहले शासन एनएसए का परीक्षण करता है और उसके अनुमोदन के बाद हाईकोर्ट यह तय करता है कि निरुद्धि नियमानुकूल है या नहीं। इतने अधिक चेक और बैलेंसेस इसलिए लगाए गए हैं ताकि जिस व्यक्ति के विरुद्ध यह कार्यवाही हो रही है, वह वास्तव में अपने कृत्यों द्वारा निरुद्धि के योग्य है या नहीं। 

एनएसए का हर मामला हाईकोर्ट में, अगर शासन ने अनुमोदित कर दिया है तो,  अनिवार्य रूप से भेजा जाता है। यह प्राविधान अधिनियम में ही है।  वहां वह व्यक्ति भी उपस्थित रहता है जिसके विरुद्ध रासुका की कार्यवाही की गयी है। उससे हाईकोर्ट के जज, एनएसए लगाने के आरोपों के संबंध में पूछताछ करते हैं। निरुद्ध व्यक्ति फिर अपनी सफाई प्रस्तुत करता है। उसका पक्ष सुन लेने के बाद, उस जिले के जिला मैजिस्ट्रेट और एसपी भी व्यक्तिगत रूप या उनके प्रतिनिधि के रूप में एडीएम या एडिशनल एसपी हाईकोर्ट के जज के समक्ष उपस्थित होते हैं, और अपनी बात प्रमाण के साथ रखते हैं। हाईकोर्ट को विश्वास दिलाना आवश्यक  है कि निरुद्ध व्यक्ति के विरुद्ध अगर एनएसए नहीं लगायी गयी होती तो लोक व्यवस्था भंग होने का ख़तरा था। यदि हाईकोर्ट को यह विश्वास हो जाता है कि सारी बातें जो पुलिस और प्रशासन कह रहा है सही और तार्किक है तो वह एक साल के लिये उस व्यक्ति निरुद्ध करने की सहमति दे देता है अन्यथा वह व्यक्ति छूट जाता है।

उत्तर प्रदेश में गिरोहबंद निवारण अधिनियम का भी एक प्राविधान है जिसके अंतर्गत गौहत्या करने वाले गिरोह को अलग  मुक़दमा दर्ज कर जेल भेजा जाता है। इस मामले में जमानत मुश्किल से होती है। मध्यप्रदेश में यह कानून सम्भवतः नहीं है क्योंकि यह केंद्रीय कानून नहीं है।

गौहत्या, आपराधिक कानूनों के क्रम में कोई बड़ा अपराध नहीं है पर गाय के साथ धार्मिक भावनाओं के जुड़े होने और इस अपराध राजनीतिक दुरुपयोग होने के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा कानून और गिरोहबंद निवारण अधिनियम जिसे सामान्य भाषा मे गैंगस्टर एक्ट कहते हैं, का प्रयोग किया जाता है। आज जब यह प्रकरण बेहद राजनीतिक रूप ले चुका है, तो साम्प्रदायिक सद्भाव बना रहे इसीलिए, कभी कभी, एनएसए और गैंगस्टर एक्ट का प्रयोग किया जाता है। पर यह सामान्य प्राविधान नहीं है और असामान्य परिस्थितियों में ही लगाया जाता है।

© विजय शंकर सिंह

No comments:

Post a Comment