आज सर्वदलीय बैठक सरकार ने बुलाई है। यह पहली बैठक है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में बुलायी है। इसका कारण है पुलवामा पर आतंकी हमला। कायदे से आतंकवाद के इस गम्भीर राष्ट्रीय मामले पर सरकार और विपक्ष को मिल बैठ कर समाधान ढूंढना चाहिये। विपक्ष की ओर से राहुल गांधी का यह बयान भी महत्वपूर्ण है।
" हमारे दिल को चोट पहुंची है। हमारी पूरी शक्ति आपके साथ है। इस घटना पर मैं सरकार का समर्थन करता हूं। इस देश को कोई भी शक्ति तोड़ नहीं सकती है। हिंदुस्तान की आत्मा पर हमला हुआ है। उनको मालूम होना चाहिए कि यह देश इन चीजों को भूलता नहीं है। यह समय दुखद है और इस घड़ी में हम पूरी तरह से भारत सरकार के साथ हैं’। "
ऐसे ही बयान सभी प्रमुख दलों ने दिए हैं। कल गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी ने भी इस हमले की आड़ में हिन्दू मुस्लिम सौहार्द बिगाड़ने वालो को भी चेतावनी दी और कहा कि
" इसकी ( पुलवामा हमले ) आड़ में साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिशों से सख्ती से निपटा जाएगा। "
वे पुलवामा में शहीद जवानों को कंधा दे रहे थे। दुःख आक्रोश और जिम्मेदारी का तनाव उनके चेहरे पर स्पष्ट दिखायी दे रहा था।
अगर आप दुनियाभर के आतंकवाद के उद्देश्य पर अध्ययन करें तो यह पाएंगे कि आतंकवादी संगठन, जिस कौम, धर्म और समाज के लिये आतंक का रास्ता अपनाते हैं, वे उसी कौम, धर्म और समाज को अंततः नुकसान पहुंचाते हैं । तालिबान से लेकर आईएसआईएस के आतंकियों तक सबसे अधिक इन्होंने अपनी कौम और अपने मुल्क को हानि पहुंचायी है। सीरिया, इराक़, अफगानिस्तान आदि मुल्क़ों के इतिहास को आतंक के पहले और आतंक के बाद वहां की कौम, धर्म, और समाज के जीवन स्तर का तुलनात्मक अध्ययन करें तो आप पाएंगे कि धर्मोन्माद पर आधारित आतंकवाद ने उसे तहस नहस कर दिया है। अपने देश मे ही पंजाब के आतंकी काल में देखें कि पंजाब के दहशतगर्दी काल के 15 सालों में वहां के कृषि, उद्योग और सामाजिक ताने बाने को कितना नुकसान पहुंचा था। एक समय था कि सिखों को देश के दूसरे हिस्से में संदेह से देखा जाने लगा था। उसी मे 1984 के भयंकर सिख विरोधी दंगों ने तो अलगाववाद के बीज बो ही दिये थे। पर धीरे धीरे सब ठीक हो गया और आज पंजाब को देख कर उसके आतंकी काल एक दुःस्वप्न की तरह ही लगता है।
कश्मीर में भी यही करने की साज़िश है और यही हो भी रहा है। कश्मीरी कौम स्वाभाविक रुप से सूफी इस्लाम को मानने वाली है। वह वहैदतुल वजूद को मानने वाली है। वहाबी कट्टरता उनमे नहीं थी पर वहाबी कट्टरता के रूप में अरब के इस मानसिक और धार्मिक साम्राज्यवाद ने कश्मीर को अपने गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया है। यह अफ़ग़ान और पख्तून के इलाक़ो से वहां आया है। कश्मीरी कभी भी अफगान और पख्तून लड़ाकों की तरह मार्शल नहीं रहे है। पर धर्मांधता ने उसे इस खतरनाक राह पर डाल दिया है। यह साज़िश पाकिस्तान की है जो यह समझता और मानता है कि दुनियाभर में धर्म ही राष्ट्र का आधार हो सकता है।
कश्मीर में पनप रहे इस आतंकवाद का मक़सद बिलकुल नहीं है कि इससे कश्मीर की अस्मिता और कश्मीरियत को बचाया जाय। बल्कि इसका उद्देश्य है कि कश्मीरियत को पैन इस्लामिज़म से जोड़ कर इसकी सभ्यता संस्कृति रिवायत को ही नष्ट कर दिया जाय। इसका एक राजनीतिक उद्देश्य यह है कि इतनी अधिक आतंकी हिंसा फैला दी जाय कि भारत का आम जनमानस एक सामान्य कश्मीरी को भी आतंकी मान बैठे। भारत मे रह रहे वे कश्मीरी जो देश के दीगर हिस्सों में रह रहे हैं, आतंकी समझे जांय और उनसे कश्मीर में फैले आतंकवाद का बदला लिया जाय। फिर ये कश्मीरी दंगे से पीड़ित हो अपने घर जाकर दंगो की अतिश्योक्ति पूर्ण कहानियां सुनाएं और अलगाव की बात सबके मन मे घर करने लगे। धीरे धीरे यह बदला कश्मीरी लोगों से बढ़ कर सीधे सीधे धर्म के आधार पर आ जाय। और फिर पूरा देश धर्म के नाम पर मानसिक रूप से बंट जाय। यह मानसिकता पाकिस्तान को सूट करती है और यही उसका उद्देश्य है। इसका दुष्परिणाम अभी तो हम तीन हिस्सों में बंट कर देख रहे हैं तब यह कितने हिस्सों में बंटेगा यह कहा नहीं जा सकता है।
आप को मेरी यह बात एक प्रलाप लग रही होगी पर मैं वर्तमान स्थिति नहीं बता रहा हूँ बल्कि आतंकवादी गुटों और उनके आकाओं का भावी गेम प्लान समझा रहा हूँ। यह गेम प्लान आज का नहीं है, बल्कि, यह तब का है जब यह तय हो गया था कि भारत को अब ब्रिटिश उपनिवेश बनाये रखना सम्भव नहीं है । तभी से नवसाम्राज्यवादी देशों ने सोच लिया था।
सच तो यह है कि, किसी भी धार्मिक उग्रवादी संगठन को अपने धर्म से कुछ भी लेनादेना नहीं होता है। आज जब कोई यह कहता है कि वह अपने धर्म का कट्टर समर्थक है तो समझिये कि वह अपने धर्म की मूल और दार्शनिक मान्यताओं के विपरीत जा रहा है। धर्म की सबसे हानि उसी के द्वारा होगी।
सरकार कोई मशीन नहीं है। वह आदमियों का एक समूह है। यह समूह राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वार्थों से घिरा भी है। ऐसा ही विपक्ष के लिये भी कहा जा सकता है। आज आतंकवाद से निपटने से भी बड़ी समस्या है आतंकियों के उद्देश्य से देश और समाज को आगाह किया जाय और उससे बचाये रखा जाय। आम कश्मीरी जनता और खूबसूरत कश्मीर से बिल्कुल बदला न लें, वे तो खुद ही पीड़ित हैं । बल्कि एक कुशल सर्जन की तरह उस समाज मे छुपे उन आतंकियों को पहचान कर निकालना और फिर उन्हें समाप्त करना ही उद्देश्य होना चाहिये। पाकिस्तान का कश्मीर पर अधिकार के बारे में केवल एक ही तर्क है कि वह मुस्लिम बाहुल्य इलाका है, और जो इलाका मुस्लिम बाहुल्य है वह पाकिस्तान का है। यही द्विराष्ट्रवाद का फलसफा था। मरा हुआ द्विराष्ट्रवाद । यह द्विराष्ट्रवाद अपने जन्म के दस साल के अंदर ही सड़ने लगा था जब बांग्ला भाषा और संस्कृति तथा सिंधी संस्कृति का आधार धर्म के आधार पर पाकिस्तान में ही भारी पड़ गया। बांग्लादेश के आज़ाद होने की कोशिशों और जीये सिंध आंदोलन को याद कीजिये। 1971 आते आते यह आधार टूट गया और बंटवारे का आधार ही नष्ट हो गया। आज भी जीये सिंध, बलोच मुक्ति और पख्तूनों के अलग होने की कोशिशें जारी हैं।
भारत एक बहुधार्मिक, बहुसांस्कृतिक, बहुसामाजिक देश है। इसकी विविधता हम भारतीय दर्शन और इतिहास में कदम कदम पर पाते हैं। यही विविधता ही इसकी शक्ति है। और इसी शक्ति को तोड़ने की साज़िश पाकिस्तान कर रहा है । इसका गम्भीरता से अध्ययन किया जाय तो खुद ही यह बात समझ मे आ जायेगी। आतंकवाद का जवाब तो सुरक्षा बल बेहद कारगर ढंग से देंगे ही और सरकार भी इसमें पीछे नहीं रहेगी पर जिस एकता और सौहार्द के ताने बाने को पाकिस्तान उसके आका तोड़ना चाहते हैं, उसे बनाये रखना अकेले सरकार का काम नहीं है बल्कि यह हमारा काम है। निदान आतंकवाद का ज़रूरी है न कि निदान के चक्कर मे खुद ही टूट कर बिखर जाना है।
( विजय शंकर सिंह )
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