Tuesday, 5 February 2019

अयोध्या विश्व हिंदू परिष।द ने मंदिर आंदोलन चार माह के लिये स्थगित किया / विजय शंकर सिंह

आज 6 फरवरी 2019 की एक प्रत्याशित खबर यह है कि विश्व हिंदू परिषद ने चार माह के लिये राम मंदिर आंदोलन को स्थगित कर दिया है। चार माह का अर्थ हुआ मई तक। यानी चुनाव सम्पन्न होने और नयी सरकार बनने तक। अगर सरकार भाजपा की बनी तो ये फिर सरकार को समय देंगे और अगर भाजपा की सरकार नहीं बनी तो फिर ये अपना तमाशा शुरू कर देंगे।  किसे बेवक़ूफ़ बना रहे हैं ये ? राम को या हमें आप को ?

राम तो बेवक़ूफ़ बनने से रहे। उन्हें तो अयोध्या का सारा छल याद है। वनगमन के निष्कासन से लेकर शम्बूक वध के उकसाने की कथा से होते हुये सीता के घर से निकाले जाने तक तो वे लगातार छले ही तो जाते रहे हैं। उन्हें अयोध्या की राजनीति का कटु अनुभव है। उन पर तो बीता ही सब कुछ है । उनका सरयू प्रवेश भी एक प्रकार से अयोध्या का परित्याग ही था। उनके साथ साथ सारी अयोध्या सरयू में समा गयी थी । अब आज जो अयोध्या है वह बाद में बनी है। पर अयोध्या जन्मस्थान तो उनकी है ही। वह रहेगी ही। राम तो ठहरे सर्वज्ञ । कुछ छुपा तो है नहीं उनसे और न ही कोई उनसे कुछ छुपा सकता है। न छल न बल, न दुख न सुख, न आलाप न विलाप।

अब बचे हम आप। बस कुछ सवाल उक्त मंदिर गिरा कर, मिथ्या और प्रवंचक शौर्य प्रदर्शन करने वालों से पूछियेगा कि
* क्या 6 दिसम्बर 1992 को जो खंडहर नुमा इमारत जिसे सरकारी दस्तावेजों में विवादित ढांचा कहा जाता था, को गिराने के पहले संघ परिवार ने वहां ' भव्य मंदिर ' बनाने की कोई कार्ययोजना बनाई थी या नहीं ?.
* क्या कभी यह सोचा गया था कि लाखों की भीड़ जो अयोध्या में राम के नाम पर इकठ्ठा की गयी है वह जब यह मंदिर या मस्ज़िद या विवादित ढांचा तोड़ दिया जाएगा तो रामलला कहां विराजेंगे ?
* क्या वीएचपी के फर्जी हिन्दू हृदय सम्राटों ने यह सोचा था कि रामलला की विधिवत शास्त्रोक्त रीति से होने वाली अष्टयाम पूजा कैसे संपन्न होगी ?
अगर सोचा था और कार्ययोजना बनी थी तो उसे सबके सामने लाया जाय। और नहीं सोचा था तो अर्ध कुम्भ लगा ही हुआ है, सभी संघ परिवार के जिम्मेदार लोग आगामी शिवरात्रि पर संगम में प्रायश्चित स्नान ही कर लें। आशुतोष ही इन पाखंडियों को क्षमा कर सकें तो करें।

सच तो यह है कि किसी भी प्रकार के मंदिर निर्माण की कोई योजना न तो इस आंदोलन के प्रारंभ करने के पहले आंदोलन के नेताओ ने बनायी थी और न आज बनी है। अगर कोई ऐसी योजना बनी होती तो इनका प्रचार तंत्र न तब चुप बैठता न आज चुप रहता। तब भी इनका उद्देश्य यही था कि देश मे राममंदिर के नाम पर एक उन्माद फैलाया जाय और लोग उत्तेजित हों, दंगे फैलें और साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण हो और इस परिवार का राजनीतिक मुखौटा सत्ता में आये। इनका यह उद्देश्य पूरा हुआ। रहा सवाल राम का, तो भला हो 6 दिसम्बर 1992 में अयोध्या में ड्यूटी पर रहने वाले पीएसी के जवानों और पुजारी का कि उन्होंने मलबे में गिरे रामलला को उठाया और पीएसी के ही एक अस्थायी तंबू में स्थापित किया। यह मेक शिफ्ट मंदिर, ( यह शब्द अंग्रेजी अखबार वाले लिखते हैं ) बाद में रात तक बना। इस मूर्खतापूर्ण कार्यवाही का परिणाम यह हुआ है कि रामलला आज तक टेंट में है। और कब तक वे टेंट में रहेंगे यह तो वही जानते हैं। आज बीस फुट दूर से उनके दर्शन होते हैं। तंबू तक बिना अदालत के आदेश के नहीं बदले जा सकते हैं।

आरएसएस,वीएचपी,बजरंगदल,भाजपाया एक शब्द में कहें तो संघ परिवार की नीयत अयोध्या में राम मंदिर बनाने की कभी रही ही नहीं है। नीयत साफ थी और बिल्कुल पारदर्शी, कि एक ऐसा धर्मांधता भरा उन्मादित जन आंदोलन छेड़ा जाय जिससे संघ का राजनीतिक स्वरूप भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आये । इस हेतु  जानबूझकर, भगवान राम की आड़ लेकर मर्यादा पुरुषोत्तम की सारी मर्यादायें ताक पर रख कर सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा निकाली गयी। एक उन्माद फैला। धार्मिक ध्रुवीकरण हुआ और कभी लोकसभा में 2 सदस्यों वाली भाजपा सरकार में आ गयी। 6 साल अटल जी प्रधानमंत्री रहे। फिर 2004 में भाजपा हार गयी और 10 साल 2014 तक कांग्रेस नीत यूपीए सरकार में रही। 2014 से भाजपा अपने दम पर सरकार में है, आगे 2019 का निर्णय जनता पर है। यही इनसे पूछ लीजियेे कि 1998 से 2004 और 2014 से 2019 तक केंद्र में और 2016 से अब तक राज्य में सरकार में रहते हुए राममंदिर मसला सुलझे,इस हेतु सरकार द्वारा क्या प्रयास किये गए हैं ?.
राम से मिथ्यावाचन करने वाले यह दंगाई राष्ट्रभक्ति के लबादे में राष्ट्रभजंक है। आप इन्हें पहचानिये। सरकारें मंदिर मस्जिद के निर्माण के लिये नहीं चुनी जाती हैं। वे चुनी जाती हैं बेहतर प्रशासन और जनता की बेहतर जीवन स्तर बढाने, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, और साफ सुथरा प्रशासन चलाने के लिये। इन फर्जी हिन्दू हृदय सम्राटों से बचिये, और सरकार को सरकार के लिये चुनिये।

© विजय शंकर सिंह 

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