Saturday, 2 February 2019

एक कविता - चीख / विजय शंकर सिंह

जंगल के कोलाहल में ,
हर तरफ हंगामा है ,
चीख रही है
एक नन्ही गौरैय्या !

गिद्धों के हुज़ूम में ,
गुम है ,
उस गौरैय्या की चीख,
नक्कार खाने में तूती की तरह,
आओ चलो ढूंढें ,  ,
स्वर दें उसे !!,

गिद्ध तो भीड़ जुटा ही लेंगे ,
पर ,वह नन्ही गौरैय्या ,
न जाने किस कोटर में बैठी ,
अपनी चीख से ही ,
अन्याय के विरुद्ध मुखर है !!!

© विजय शंकर सिंह

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