2012 में डॉ मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। तब भी अमेरिका ने ईरान से तेल आयात न करने का संकेत भारत को दिया था। लेकिन सरकार ने नहीं माना और ईरान से तेल का आयात जारी रहा। यह कमज़ोर कहे जाने वाले पीएम का इनकार था।
आज 2018 में भी करीब 6 साल बाद अमेरिका ने भारत को पुनः ईरान से तेल आयात न करने का निर्देश दिया और आज मज़बूत कहे जाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हुंकारी भरते हुये अमेरिका की बात मान ली, और ईरान से तेल आयात न करने की घोषणा कर दी।
भारत का ईरान से कोई विवाद नहीं है। ईरान ने बराबर हमारा साथ दिया है। यहां तक कि 1962 के चीन और 1965, 71, 2000 के भारत पाक युद्धों में भी वह हमारे साथ खड़ा रहा। ईरान तेल का बड़ा निर्यातक है। उससे सबसे अधिक तेल चीन और भारत खरीदता है। 1979 की अयोतोल्लाह खोमैनी की इस्लामिक क्रांति के पहले ईरान का शासन पहलवी राजवंश के पास था। यह राजवंश तब अमेरिका के साथ था। लेकिन खोमैनी की क्रांति ने राजवंश का शासन खत्म कर इस्लामी शासन की नींव रखी। अमेरिका का ईरान से तभी का बैर है। उधर सऊदी अरब जो पूरी तरह से अमेरिकी और ब्रिटिश उपनिवेश की तरह है का भी ईरान से विरोध है। इसका कारण, अमेरिकी वर्चस्व तो है ही, एक और कारण, धार्मिक मतभेद शिया बनाम सुन्नी का होना भी है। अफगानिस्तान, इराक़, सीरिया, लीबिया, एक एक कर के मध्य एशिया के मुल्क़ों को अस्थिर और आतंकवाद का शिकार बनाने के बाद अमेरिका की नज़र ईरान पर है। अमेरिका नहीं चाहता कि ईरान आर्थिक रूप से स्थिर हो और उसके तेल का निर्यात हो सके। अभी हाल में ईरान के प्रति ट्रम्प की नीति की आलोचना यूरोपीय देश भी कर रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प की ईरान के प्रति नीति की आलोचना खुद अमेरिका में भी हो रही है। अगर ईरान के तेल का निर्यात कम हो जाएगा तो ईरान की अर्थ व्यवस्था पर इसका बुरा असर पड़ेगा। अमेरिका ईरान को आर्थिक रूप से तोड़ना चाहता है।
लेकिन चीन के बाद, भारत ही ईरान से भारी मात्रा में तेल आयात करने वाला देश है। चीन न तो अमेरिका की बात मानेगा और न ही अमेरिका की इतनी हिम्मत है कि वह चीन के वैदेशिक व्यापार को निर्देशित कर सके। अब बचता है भारत। भारत ने शुरू में तो थोड़ी ना नुकुर की पर अचानक जब अमेरिका ने विदेश और रक्षा मंत्रियों की वार्ता रद्द कर दी और निकी हेली को भेज कर यह बात मानने के लिये दबाव दिया तो, भारत ने यह निर्णय कर लिया कि वह ईरान से तेल का आयात नहीं करेगा।
इस फैसले का क्या असर हमारे तेल आयात के बिल, पेट्रोल , डीजल, गैस की घरेलू कीमतों, और सुरक्षित तेल के भण्डार पर पड़ेगा, इसका आकलन एक्सपर्ट विद्वान कर रहे होंगे। कल एक खबर के अनुसार, इसका एक बड़ा असर हमारी रिफाइनरियों पर पड़ेगा । जब ईरान पूरी तरह से प्रतिबन्धों की गिरफ्त में था, तब भी भारत ने ईरान से तेल का आयात जारी रखा। हमारी रिफायनारियाँ संभवतः तकनीकी रूप से ईरान से आयात किये जाने वाले तेल के शोधन हेतु अधिक उपयुक्त है। आज इस फैसले के बाद पेट्रोल और गैस मंत्रालय में कुछ अफरातफरी भी मची है। यह फैसला, तेल की घरेलू और वैश्विक राजनीति में दूरगामी प्रभाव डालेगा।
फिलहाल विदेश नीति में ऐसी स्थिति 70 सालों में पहली बार आयी है कि, जब अमेरिका ने हमारी विदेश नीति को प्रभावित ही नहीं निर्देशित भी किया है। अमेरिका भारत को एक उपनिवेश की तरह समझ कर व्यवहार कर रहा है। और हम भी, जो हुक़्म है मेरे आका के मोड में आ रहे हैं।
© विजय शंकर सिंह
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