Saturday 23 June 2018

आतंकवादियों के शव का अंतिम संस्कार - एक व्यवहारिक और वैधानिक पक्ष / विजय शंकर सिंह

किसी भी आतंकवादी की मुठभेड़ में मृत्यु के बाद उसके शव के पंचायतनामा और पोस्टमार्टम की कार्यवाही होती है और फिर उसके शव का उसके धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार किया जाता है। अगर शव का कोई वैध दावेदार है तो उसे शव सौंप दिया जाता है अन्यथा उसका अंतिम सरकार पुलिस ही करती है।
यह एक कानूनी प्रावधान है। अब इसका व्यावहारिक पक्ष भी देखिये।

अगर, पुलिस और जिला प्रशासन को यह आशंका और उनके पास ऐसी खबरें हैं कि उसकी शव यात्रा को लेकर लोगों को भड़काया जा सकता है और इससे कानून व्यवस्था की और भी जटिल समस्या उत्पन्न हो सकती है तो, ऐसे शव का अंतिम संस्कार अपने सामने और अपनी देखरेख में पुलिस कराती है और उसे कराना भी चाहिये । घर के लोगों को बुलाया जा सकता है । अगर घर के लोग नहीं आते हैं तो अंतिम संस्कार उसके धर्म के आधार पर पुलिस ही कर देती है। इस हेतु बजट में धन की व्यवस्था भी सरकार करती है।

पर दुर्दांत आतंकवादियों के शव को लेने के लिये उसके घरवाले अक्सर नहीं आते हैं। वे नज़रंदाज़ करते हैं। तब पुलिस का यह दायित्व है कि वह अंतिम संस्कार कर दे । लावारिस और लदावा आतंकियों के शव का अंतिम संस्कार पुलिस करती ही है।

आज एक खबर बहुत तेज़ी से फैल रही है कि सरकार ने यह निर्णय लिया है कि आतंकवादियों के शव परिजनों को नहीं सौंपे जाएंगे। ऐसे निर्णय न तो सरकार लेती है और न ही लिया गया होगा। यह निर्णय स्थानीय परिस्थितियों के अंतर्गत स्थानीय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी लेते हैं।  शव के अंतिम संस्कार का काम परिजनों का है या विशेष परिस्थितियों में पुलिस का,  इसका निर्णय, उनहीँ पर छोड़ दिया जाना चाहिये। 

मानवाधिकार और संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों के प्राविधान में शव का कुछ अधिकार होता है । संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या में कहा गया है, जिसका सम्मान और पालन करना संवैधानिक दायित्व है।

" The fundamental right to life and personal liberty guaranteed under Article 21 of the Constitution has been given an expanded meaning by judicial pronouncements. The right to life has been held to include the right to live with human dignity. By our tradition and culture, the same human dignity (if not more), with which a living human being is expected to be treated, should also be extended to a person who is dead. The right to accord a decent burial or cremation to the dead body of a person, should be taken to be part of the right to such human dignity. "

लेकिन इन सारे मानवाधिकार और मौलिक अधिकारों के प्रावधानों से ऊपर है, समाज मे शांति और व्यवस्था का बना रहना। अगर आतंकी का शव परिजनों को सौंप दिया जाय और इससे वे जुलूस निकाल, सभा कर या अन्य उपद्रव करें जिससे अराजकता फैले और जनजीवन प्रभावित हो तो उचित यही है कि उसका अंतिम संस्कार पुलिस खुद ही कर दे। यह सब पहलीं बार नहीं हो रहा है और पहले भी इसके उदाहरण हैं। कानून और व्यवस्था का बने रहना किसी भी सरकार और प्रशासन की प्रथम प्राथमिकता है।

इस मुद्दे को स्थानीय अफसरों को ही स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार हल करना है और यह दायित्व भी उनके विवेक पर छोड़ देना चाहिये।  समाज और इलाके में शान्ति व्यवस्था बनी रहे और जनजीवन सामान्य रहे, यह ज़रूरी है न कि शव के अंतिम संस्कार पर बहस कि, परिजन करें या पुलिस ।

सरकार के पुलिस मुठभेड़ों के बारे में भी स्पष्ट दिशा निर्देश हैं। यह दिशा निर्देश मानवाधिकार आयोगों के निर्देशों के अनुरूप दिये गये हैं। सेना का मुझे पता नहीं लेकिन हर पुलिस मुठभेड़ की मैजिस्ट्रेट द्वारा जांच कराए जाने और मुक़दमा कायम कर तफ़्तीश कराए जाने का प्राविधान है। राज्य और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी मुठभेड़ों पर संज्ञान लेकर जांच करता है। इसी लिये पोस्टमार्टम और पंचायतनामा भरा जाता है। यह प्राविधान इस लिये हैं कि किसी निर्दोष व्यक्ति को मुठभेड़ के नाम पर मार न दिया जाय। मानवाधिकार आयोगों के अधिकार क्षेत्र में, सेना द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के मामले भी आते हैं। उनकी भी कोर्ट ऑफ इंक्वायरी होती है और दोषी पाए जाने पर दंडित भी होते हैं।

© विजय शंकर सिंह

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