ग़ालिब - 98.
क़तरा ए मय, बस की हैरत से नफ़्स परवर हुआ,
खत्त ए जाम ए मय सरासर, रिश्ता ए गौहर हुआ !!
Qatraa e may, bas kii hairat se nafs parawar huaa,
Khatt e jaam e may saraasar, rishtaa e gauhar huaa !!
- Ghalib
नफ़्स परवर - प्राण दायनी.
गौहर - मोती.
मदिरा की बूंद, मदिरा पान करते ही मेरे लिए प्राणदायिनी बन गयी। मधु पात्र पर खिंची हुई रेख ने मोती की तरह मेरे अंदर छुपी वास्तविकता को खोल कर रख दिया।
शराब ने आत्म विस्मृत कर के मेरे अंदर छिपा मेरा वास्तविक रूप उजागर कर दिया। शराब ने मुझे अनावृत्त कर दिया।
शराब पीने के बाद लोग सच बोलते हैं। शराबियों के बारे में यह एक आम धारणा है। लेकिन लोग सच बोलें, केवल इसीलिये तो शराबखोरी को जायज नहीं ठहराया जा सकता है। ग़ालिब ने शराब को तो बुरा माना है पर उन्होंने इसकी प्रशंसा भी खूब की है। वे मदिरा को प्राणदायिनी भी इस शेर में मानते हैं। उनके अनुसार, मदिरा, मद्यपी को एक अलग प्रकार का तोष प्रदान करती है। ग़ालिब बेहद आलंकारिक भाषा मे कहते हैं कि मदिरा की बूंदे जब उनके हलक से नीचे उतरती हैं तो उन्हें प्राणदायिनी सुख मिलता है। कोई पाखंड का आवरण नहीं रहता है और जो भी है, जैसा भी हैं, वह खुल कर सामने आ जाता है।
मदिरा सच क्यों उगलवा देती है ? इसका कारण है कि सत्य बोलने के लिये मनुष्य को कुछ तार्किक या कुछ जोड़ घटा कर सोचना नहीं पड़ता है, जब कि मिथ्यावाचन के लिये झूठ के कई घुमावदार और पेंचदार राहें सोचनी और उन पर चलता पड़ता है। झूठ के खुल जाने का भय सदैव रहता है। इसका एक आंतरिक अपराध बोध भी सदैव रहता है। मदिरा, मस्तिष्क की सोचने समझने और तर्क करने की शक्ति को कुछ समय के लिये थोड़ा बहुत निष्क्रिय कर देती है। इस कारण, जो मन मस्तिष्क में रहता है, मनुष्य उसे लगभग जस का तस उगल देता है। ग़ालिब इस शेर में यही बात कह रहे हैं।
© विजय शंकर सिंह
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