Friday 3 June 2022

प्रवीण झा / रोम का इतिहास - तीन (7)

               चित्र - मारकस ओरेलियस

राजधर्म में परिवार अक्सर पीछे छूट जाता है। मार्कस ऑरेलियस युद्धभूमि पर अपने दर्शन में डूबे रहने के कारण परिवार और उत्तराधिकार पर ध्यान कम दे सके। उनकी पत्नी फॉस्टिना उनसे पूर्ववर्ती राजा पायस की पुत्री और उनकी चचेरी बहन थी। आधा जीवन राजकुमारी और आधा जीवन महारानी की तरह बिता कर उन्हें राजमहल के वैभव की आदत हो गयी थी।

एक समय ऐसा आया कि मार्कस ऑरेलियस ने युद्ध के खर्च निकालने के लिए अपनी और महारानी की संपत्ति नीलाम कर दी। महारानी को अपनी इच्छा के विरुद्ध गहने उतार कर देने पड़े। यह मोह तो किसी भी स्त्री से अपेक्षित हो सकता है, लेकिन राजधर्म में यह मोह त्यागने की स्थिति पहले आयी नहीं थी। अमूमन जनता पर ही कर का बोझ डाला जाता। लेकिन, मार्कस ऑरेलियस अपने सिद्धांतों और आदर्शों से एक तरह से आसक्त थे। यह भी एक तरह का मोह ही है, जब मनुष्य स्वयं को महान साबित करने के यथासंभव प्रयास करता है।

इसकी एक और मिसाल देखिए।

महारानी फॉस्टिना ने यह निर्णय लिया कि अब इस महान राजा से मुक्ति पायी जाए। माना जाता है कि जब मार्कस ऑरेलियस जर्मनों से लड़ने में व्यस्त थे, उन्होंने अपने प्रेमी कैसियस के साथ षडयंत्र रचा। कैसियस यूनान और यूदाया प्रांतों के गवर्नर थे। उन्होंने यह अफ़वाह फैला दी कि सीज़र युद्धभूमि में शहीद हो गए, और अब वही रोम के राजा हैं। उन्हें यूनान और अन्य प्रांतों में राजा मान भी लिया गया।

मार्कस ऑरेलियस उस वक्त डैन्यूब नदी के किनारे छावनी में रणनीति बना रहे थे, जब यह बेतुकी खबर मिली। उन्होंने कैसियस के पास अपने संदेश-वाहक भेजे कि अभी तो मैं ज़िंदा हूँ। लेकिन, संदेश-वाहक के पहुँचने से पहले ही किसी ने कैसियस की हत्या कर दी। 

मार्कस ऑरेलियस को जब इस षडयंत्र की जानकारी मिली कि महारानी भी इसमें लिप्त थी, और कैसियस की हत्या हो गयी, तो वह खुश होने के बजाय रोने लगे। वह अपने शासनकाल में किसी सिनेटर या गवर्नर का खून नहीं बहाना चाहते थे। उनका दु:ख यह था कि इस हत्या के दाग़ के साथ उनकी महानता खत्म हो गयी और स्वर्ग में रिज़र्व सीट हाथ से निकल गयी!

दाग़ तो अभी और भी लगने थे।

मार्कस ऑरेलियस अपने पुत्र वेरस को उत्तराधिकारी रूप में देख रहे थे, जिनकी किसी बीमारी से मृत्यु हो गयी। फॉस्टिना से उनके दूसरे पुत्र कोमोडस एक अय्याश राजकुमार थे। उनका नवयौवन मदिरा और सुंदरियों में डूबा हुआ था। हालाँकि उनकी माँ ने उन्हें ज़बरदस्ती पिता के पास युद्धभूमि में भेजा, और उन्होंने मात्र सत्रह वर्ष में जर्मनों पर जीत का श्रेय भी लिया। उन्हें ‘जर्मैनिकस’ की पदवी मिली।

मार्कस ऑरेलियस भी अपने इस पुत्र में नया राजा देखने का मन बनाने लगे। अपने आदर्शों की किताब पढ़ने के लिए थमायी, जिसमें कोमोडस की कोई रुचि थी नहीं। जर्मनों पर जीत लगभग पक्की हो रही थी, जब 180 ई. में युद्धभूमि में मार्कस ऑरेलियस चल बसे। ‘ग्लैडिएटर’ जैसी हॉलीवुड फ़िल्मों में यह दिखाया गया कि कॉमोडस ने ही उनकी हत्या कर दी, जो किसी इतिहास में दर्ज नहीं। वह बीमार होकर ही मरे।

उनके मरते ही नए सीज़र कॉमोडस ने युद्ध-समाप्ति और जर्मन बर्बरों से संधि की घोषणा कर दी। कॉमोडस के नेतृत्व में रोम युद्धों से मुक्त हुआ और अपेक्षाकृत शांति की तरफ़ बढ़ा। लेकिन, मार्कस ऑरेलियस का राजधर्म और उनके आदर्श ताक पर रख दिए गए। 

कभी रोमवासियों ने सत्रह वर्ष के नीरो को गद्दी पर बैठे देखा था। उन्नीस वर्ष के कोमोडस में उन्हें कई नीरो एक साथ दिखने वाले थे।
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

रोम का इतिहास - तीन (6) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/06/6.html 
#vss 

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