Wednesday 29 June 2022

हिन्दू, हिन्दुत्व, सेक्युलरिज़्म और मुसलमान (3)

(11) बाद में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने अभिराज सिंह और नारायण सिंह के मुकदमे में 2 जनवरी 2017 के अहम फैसले में कहा कि उम्मीदवार या उसके समर्थकों द्वारा धर्म, जाति, समुदाय, भाषा के नाम पर वोट मांगना गैरकानूनी है। चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष पद्धति है। धर्म के आधार पर वोट मांगना संविधान के खिलाफ है। जन प्रतिनिधियों को अपने कामकाज धर्मनिरपेक्ष आधार पर ही करने चाहिए।
 
भाजपा की दलील थी कि धर्म के नाम पर वोट मांगने का मतलब उम्मीदवार के धर्म से ही होना चाहिए। राजनीतिक पार्टी अकाली दल का गठन सिक्खों के लिए काम करने बना है। आईयूएमएल मुस्लिमों के कल्याण की बात करता है। डीएमके भाषा के आधार पर काम करने की बात करता है। ऐसे में धर्म के नाम पर वोट मांगने को पूरी तरह से कैसे रोका जा सकता है?              

कांग्रेस की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल की दलील थी कि किसी भी उम्मीदवार, एजेंट या अन्य पक्ष द्वारा भी धर्म के नाम पर वोट मांगना भ्रष्ट आचरण है। राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा गुजरात की ओर से एडीशनल साॅलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि धर्म को चुनावी प्रक्रिया से अलग नहीं किया जा सकता। उम्मीदवार धर्म के नाम पर वोट मांगे तो उसे भ्रष्ट आचरण माना जाए।                               

मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि धर्म के नाम पर इसकी इजाज़त क्यों दी जाए। सुनवाई के दौरान माकपा ने मामले में दलील दी कि धर्म के नाम पर वोट मांगने पर चुनाव रद्द हो। सात जजों की बेंच ने लेकिन यह भी साफ किया कि वह हिंदुत्व के मामले में दिए गए 1995 के फैसले की दोबारा समीक्षा नहीं कर रही है। सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड, सेवानिवृत्त प्रोफेसर शमसुल इस्लाम और पत्रकार दिलीप मंडल ने आवेदन दाखिल कर धर्म और राजनीति को अलग करने की गुहार लगाई थी। 
 
(12) हिन्दू धर्म को लेकर पहला उल्लेखनीय फैसला सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यों की पूर्ण पीठ ने 1966 की मकर संक्रांति के दिन दिया। कोर्ट ने कई आनुषंगिक सवालों के संविधान के संदर्भ में उठ खड़े होने से धर्म की उत्पत्ति, व्युत्पत्ति और निष्पत्ति को लेकर मानक/शास्त्रीय संवैधानिक शब्दावली में धर्म मीमांसा की। मुख्य न्यायाधीश पी.बी. गजेन्द्र गड़कर ने फैसला लिखने में मोनियर विलियम्स की कृति ‘हिंदुइज़्म एंड रिलीजस थाॅट्स एंड लाइफ इन इंडिया‘, डाॅ. राधाकृष्णन की पुस्तकों ‘दी हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ‘ और ‘इंडियन फिलाॅसफी‘ तथा मैक्समूलर की ‘सिक्स सिस्टम्स ऑफ इंडियन फिलासफी , बाल गंगाधर तिलक की ‘गीता रहस्य‘ और ऑर्नल्ड टॅायनबी के ग्रंथ ‘दी प्रेजेंट डे एक्सपेरिमेंट इन वेस्टर्न सिविलिजेशन‘ पर अपनी तार्किकता को निर्भर किया।                हिन्दुओं की परिभाषा तथा हिन्दू धर्म के स्त्रोतों को लेकर कोर्ट ने उसी पारंपरिक थ्योरी पर विश्वास किया जो ‘हिन्दू‘ शब्द की पैदाइश सिंधु (नदी) से बताती है। यही मत ‘एन्सायक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन और एथिक्स‘ का है। डाॅ. राधाकृष्णन भी इसी मतवाद का समर्थन करते हैं। कहते हैं इस शब्द का ऋग्वेद में भी उसी भौगोलिक आधार पर उल्लेख है।       


सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हिन्दू धर्म की परिभाषा में उसके सभी तरह के मतावलंबियों , विश्वासों, उपासना पद्धति और वर्गों को सहसा समेटा नहीं जा सकता। यह आम फहम तर्क भी कोर्ट ने किया कि हिन्दू धर्म अकेला है जिसका एक ईश्वर, धर्मपुस्तक, पैगंबर या देवता नहीं है। यह धर्म ऐसा समुच्चय है जिसमें असहमति बल्कि नास्तिकता के साथ तक की इजाजत है शब्दों, तर्कों, व्याख्याओं और शास्त्रीय नस्ल के चश्मों से हिन्दू धर्म को देखने की कोशिश की जाये तो आंखें चुंधियाने लगती हैं। 

(13) सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि जिन चश्मों या औजारों से दुनिया के बाकी धर्मों को जांचने कोशिश की जा सकती है, वह हिन्दू धर्म के लिए मुमकिन नहीं।              हिन्दू दर्शन के तमाम आचार्यों में एक दूसरे से विसंगत लेकिन देवी देवताओं और ढेरों ढेर दार्शनिक कृतियों के बावजूद ऐसा कोई समानधर्मी आंतरिक तत्व अलबत्ता है, जो हिन्दू धर्म की पहचान मुकम्मिल करता है। न्यायिक धर्म यात्रा में कोर्ट ने हिन्दू, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के इतिहास सहित बासव, ध्यानेश्वर, तुकाराम, गुरुनानक, दयानंद, चैतन्य, रामकृष्ण और विवेकानंद तक का हिन्दू धर्म की पारस्परिक/पारस्परिक अभिव्यक्तियों को समझने में हवाला दिया।              

इस ऐतिहासिक फैसले का सबसे छोटा पैरा खुद सुप्रीम कोर्ट ने बाद में भुला दिया।  
पहला यह कि, संत या धार्मिक सुधारक वही है , जो विद्रोह करे अन्यथा वह सुधार क्या खा़क करेगा। 
दूसरा यह कि, रूढ़ियां या पुरोहित वर्ग धर्म वृक्ष पर लिपटी अमर बेलें हैं। उनकी कोई जड़ नहीं है लेकिन वे पेड़ का खून चूसे बिना जी नहीं सकतीं। 
तीसरा यह कि, धर्म रूढ़ियों के मकड़जाल और पुरोहितों के पंजों में जकड़ा जा सकता बल्कि जकड़ लिया गया है। 
चौथा यह कि, धर्म के जनपक्ष की भाषा सत्ता की अभिव्यक्ति की भाषा नहीं होती। 
पांचवां यह कि, जनपदीय और लोक बोलियों में धर्म की गति और गूंज है, वरना ऐसी लोक भाषाएं केवल दैनिक व्यवहार की कामचलाऊ भाषाएं भर बनकर रह जाएंगी।

(14) सुप्रीम कोर्ट ने इस पहले ऐतिहासिक फैसले में मोटे तौर पर दो सवालों पर संक्षेप में लेकिन सारवान विचार किया। 
पहला यह कि हिन्दू कौन हैं? हिन्दू धर्म के मुख्य अवयव क्या हैं? 
दूसरा यह कि हिन्दू धर्म के अनुसार इन्सानियत की मंजि़ल क्या है? 
सुप्रीम कोर्ट ने मोक्ष या निर्वाण को हिन्दू धर्म का अंतिम सत्य माना। इस मकसद को पाने तरह तरह के मार्ग और विचार हैं। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार संविधान निर्माता भी इस स्थिति से वाकिफ थे। मूल अधिकारों की रचना करते प्राचीन हिन्दू विश्वासों का फैलाव और असर देखकर संविधान निर्माताओं ने अनेक कारणों से सिक्ख, जैन और बुद्ध मतावलम्बियों को हिन्दू धर्म के दायरे से बाहर नहीं रखा था।
(जारी)

कनक तिवारी
© Kanak Tiwari

हिन्दू, हिन्दुत्व, सेक्युलरिज़्म और मुसलमान (2)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/06/2_26.html

No comments:

Post a Comment