Tuesday 7 June 2022

प्रवीण झा / रोम का इतिहास - तीन (11)

         चित्र: राजा तिरिदेतस का बपतिस्मा

ईसाइयों ने धीरे-धीरे यहूदियों से अलग होने के रास्ते तैयार किए। इसके लिए उन्होंने स्वयं को लचीला बनाया। जैसे उन्होंने तर्क सहित यह कहा कि ईसाई बनने के लिए खतना (circumcision) कराने की ज़रूरत नहीं (ऐक्ट 15, बाइबल), जबकि यहूदी इस मामले में कट्टर थे कि यह तो अत्यावश्यक है। जेरुसलम पर फ़तह के बाद जब यहूदियों पर जबरन ‘यहूदी कर’ लगाया गया, तो कई यहूदियों ने खतना कराना बंद कर दिया ताकि इस कर से बच जाएँ। बिना खतना के वे वापस यहूदी तो बन नहीं सकते थे, मगर ईसाइयों ने उनका स्वागत किया। आज भी अगर किसी को ईसाई बनना है, तो खतना वैकल्पिक है। इस कारण ‘ईसाई धर्म परिवर्तन’ कई मामलों में सबसे सुलभ था, और आज भी है। 

अब पुन: मैं उस बात पर लौटता हूँ, जिसे मैंने ही पहले ख़ारिज कर दिया था। कैसियस डियो ने लिखा कि रोमन शहंशाह कोमोडस की रखैल मार्सिया ईसाई धर्म से प्रभावित थी। अगर कहानी का क्लाईमेक्स देखें, तो उन्होंने ही कोमोडस को जहर दिया। उसके बाद रोम के धर्म का पतन, और ईसाई धर्म का उदय शुरू हुआ। तो क्या मार्सिया यह सब किसी ईसाई धर्म-प्रचारक के इशारों पर कर रही थी?

इन विषयों पर कुछ भी स्पष्ट लिखित मिलना कठिन है, इसलिए मैं प्रश्न को अनुत्तरित रख कर आगे की कहानी कहता हूँ। शायद उत्तर स्वत: ही आगे मिल जाए। 

कोमोडस की हत्या के बाद गृह-युद्ध की स्थिति बनती जा रही थी। प्रिटोरियन गार्ड (रोमन सेनापति) की ताकत बढ़ गयी थी। एक सिनेटर पर्टिनैक्स को राजा बनाया गया, जिनकी सेनापति से कुछ ही महीनों बाद अन-बन हुई, तो मार डाला गया। हद तो यह हो गयी कि अगले राजा के लिए नीलामी रखी गयी। सबसे अधिक दाम लगा कर यूलियानस राजा बने, मगर उनको भी दो महीने बाद मार दिया गया। यानी, एक साल के अंदर दो राजा साफ़! 

हालाँकि उनके बाद बने राजा सेवेरस और पुत्र एंटोनियस ने पच्चीस साल तक रोम की गाड़ी ठीक-ठाक चलायी। 217 ई. में एंटोनियस को भी मार डाला गया। उसके बाद यह सिलसिला चलता रहा, कि एक राजा की हत्या होती, दूसरा बनता, और वह भी मारा जाता। 

ज़ाहिर है रोमन साम्राज्य की इस डाँवा-डोल स्थिति के बाद सारे जीते हुए राज्य एक-एक कर हाथ से निकलते चले गए। जर्मन अब बहुत शक्तिशाली होते जा रहे थे, और यूरोप का बड़ा हिस्सा झपट चुके थे। एशिया में पहलवी साम्राज्य ने कई हिस्से पुन: अर्जित कर लिए। 260 ई. में पहलवियों ने रोमन राजा वैलेरियन को ही बंदी बना कर मार डाला!

आखिर 284 ई. में रोमन राजा डायोक्लेशियन ने इस डूबती नैया को पार लगाने का एक हल निकाला। 

उन्होंने साम्राज्य के दो टुकड़े कर दिए। पूर्वी और पश्चिमी। जैसे अब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री होते हैं, उसी तरह से दोनों हिस्सों के एक ‘ऑगस्तस’ (राजा) और एक ‘सीज़र’ (प्रधान) बनाए गए। यानी अब चार लोग मिल कर रोम संभाल रहे थे, जिसे कहा गया चतुर्भुज (tetrarchy) व्यवस्था।

इस मध्य आर्मीनिया में एक निर्णायक घटना हो रही थी। आप मानचित्र में इस देश को बड़ी मुश्किल ढूँढ पाएँगे। यह तुर्की, इरान, इराक के पड़ोस में मामूली सा देश है। यहाँ के राजा खुसरो की हत्या अनग नामक व्यक्ति ने की। अनग को फाँसी हुई, और उनके पुत्र ग्रेगरी को एक ईसाई पादरी ने पाला। आर्मीनिया के नए राजा तिरिदेतस को पता लगा कि उनके पिता के हत्यारे का पुत्र जिंदा है और ईसाई बन गया है। 

उन्होंने ग्रेगरी को कारागार में बंद कर ईसाई धर्म त्यागने कहा। क़िस्सा है कि तेरह वर्ष तक कैद में रह कर भी ग्रेगरी ने ईसाई धर्म नहीं त्यागा। इसके उलट जेल में बैठे-बैठे ही राजा तिरिदेतस पर प्रभाव डाल दिया। एक ईसाई नन के प्रेम में भी राजा पड़ गए। आखिर राजा पहले पागल हुए, और फिर उनका बपतिस्मा हुआ। उन्होंने पूरे राज्य को ईसाईयत स्वीकारने का आदेश दे दिया। 

इस तरह 301 ई. में आर्मीनिया दुनिया का पहला ईसाई देश बन गया। अब बारी थी रोम की। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
Praveen Jha 

रोम का इतिहास (10) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/06/10.html
#vss 

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