Wednesday 1 June 2022

प्रवीण झा / रोम का इतिहास - तीन (5)


चित्र: इंग्लैंड में हैड्रियन की दीवाल के अवशेष

बड़े साम्राज्य के साथ बड़ी ज़िम्मेदारी भी आती है। ट्राजन ने रोम को इतना विस्तार दे दिया कि उनके बाद आए राजा हाड्रियन उसे संभालते ही रह गए। वह आज के प्रधानमंत्रियों की तरह हर समय दौरे पर ही रहते। कभी ब्रिटेन के दौरे पर तो कभी गॉल के। कभी मिस्र के, तो कभी यूनान के। और कभी ईरान के। 

उन्होंने अंत में यही हल निकाला कि हर सुदूर जगह उन प्रांतों के एक राजा बिठा दिए जाएँ, जो प्रशासन संभाल कर रोम तक कुछ मामूली कर पहुँचा देते। उन्होंने ही इंग्लैंड में एक 128 किलोमीटर लंबी दीवाल बना कर स्कॉटलैंड के हमलों से उन्हें सुरक्षित किया। उस दीवाल के अवशेष अब तक मौजूद हैं।

ऐसा माना जाता है कि हाड्रियन ने ईसाइयों और यहूदियों के प्रति सहिष्णुता दिखाई, और उनके काल में बाइबल (न्यू टेस्टामेंट) लिखा जाना शुरू हुआ जिसमें यीशु का पूरा जीवन और दर्शन लिखा गया। हाड्रियन इस पंथ को एक मामूली समुदाय मानते थे, जिससे उन्हें कोई खतरा नहीं नज़र आ रहा था। जबकि यहूदियों के विपरीत यह पंथ धर्म-परिवर्तन में सक्रिय था। यह मूर्तिपूजकों से लेकर गुलामों को अपने पंथ में मिला रहे थे। अगर बौद्ध पंथ के ‘धर्मचक्रप्रवर्तन’ को अलग रख दें, तो ‘धर्म परिवर्तन’ को दुनिया में लाने वाले ईसाई कहे जा सकते हैं।

हाड्रियन की सहिष्णुता इस कदर थी कि जब उन पर एक गुलाम ने तलवार से हमला किया, उन्होंने पहले अपने कौशल से उसकी तलवार छीन ली, और उसके बाद उसे क्षमा कर दिया। वह नीरो से बेहतर लायर (वाद्ययंत्र) बजाते  और कविताएँ रचते। लेकिन, वह किसी प्रतियोगिता में इसलिए भाग नहीं लेते क्योंकि वह स्वयं विजेता चुना जाना पसंद नहीं करते।

जब इक्कीस वर्ष राज कर वह बूढ़े हुए तो उन्हें भी भय होने लगा। अपनी कुर्सी छीने जाने का भय। उन्हें किसी ने बताया कि एक नब्बे वर्ष के कुलीन सर्वियानस उनकी गद्दी छीनना चाहते हैं। उन्होंने सर्वियानस को मृत्युदंड दे दिया। अपने शासनकाल में लगभग बेदाग़ रहे हाड्रियन पर इस हत्या का पाप तो चढ़ ही गया। सर्वियानस ने मरते हुए कहा, 

“सीज़र! आप एक मृत्यशय्या पर लेटे इस बुजुर्ग को मृत्युदंड दे रहे हैं। ईश्वर आपको ऐसी मृत्य दे कि आप मौत की भीख माँगो, तो भी मौत न मिले।”

इस घटना के अगले ही वर्ष हाड्रियन को ऐसा रक्तस्राव हुआ कि वह दर्द से तड़पने लगे। उन्होंने अपने एक गुलाम को कहा, “मुझे मार डालो, मैं इस प्राणांतक दर्द में नहीं जी सकता।”

गुलाम ने कहा, “सीज़र! यह पाप मैं कैसे कर सकता हूँ। आपके जैसे महान शासक का रक्त बहा कर मुझे मुक्ति कैसे मिलेगी?”

उन्होंने अपने चिकित्सक को बुला कर कहा कि वह उन्हें जहर दे दें। लेकिन, चिकित्सक ने कहा कि मेरा प्रशिक्षण तो जान बचाने में है, लेने में नहीं। वह ऐसे रोमन राजा हुए जो मौत माँगते रह गए, मगर मौत न मिली। पूरे एक साल तक तड़पने के बाद 138 ई. में वह चल बसे।

उनके बाद आए राजा ऑरेलियस एंटोनियस उनसे भी अधिक दानवीर और सहिष्णु हुए। उन्होंने ईसाइयों को अपने धर्म-प्रचार में मदद देनी भी शुरू कर दी। बाइबल की किताबें मोटी होती गयी, और एक पूरे धर्म का खाका तैयार होने लगा। रोम में पहले भी छुप-छुपा कर पोप की परंपरा चल रही थी, जो अब खुल कर सामने आने लगी। संत पीटर की परंपरा में दसवें पोप (बिशप) पायस प्रथम ने संभवत: दुनिया का पहला गिरजाघर भी बना दिया। रोमन भव्य मंदिरों के मध्य यह नयी इमारत गौण ही रही होगी, लेकिन ईंट तो डल गयी थी।

तेईस वर्ष के शासन के बाद एंटोनियस चल बसे। उसके बाद 161 ई. में रोम के सबसे आध्यात्मिक मिज़ाज के माने जाने वाले और आखिरी शक्तिशाली राजा आए। वह रोमन शांति (पैक्स रोमाना) के आखिरी दीपक भी कहे जाते हैं, जिनके बाद रोम की उल्टी गिनती शुरू हो गयी।

ऑस्कर पुरस्कृत हॉलीवुड फ़िल्म ‘ग्लैडिएटर’ में उन्हें पुत्र-मोह और राजधर्म से जूझते एक बूढ़े शासक के रूप में चित्रित किया गया है, जिनका नाम था मार्कस ऑरेलियस। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

रोम का इतिहास - तीन (4) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/4_31.html 
#vss 

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