Sunday 26 June 2022

कनक तिवारी / हिन्दुत्व, सेक्युलरिज़्म और मुसलमान (2)

           (विनायक दामोदर सावरकर) 

(6) विनायक दामोदर सावरकर ने कहा है हिन्दू वह है जो सिंधु नदी से लेकर सिंधु अर्थात समुद्र तक फैले भू भाग को पितृभूमि मानता है और उनके रक्त का वंशज है। जो उस जाति या समुदाय की भाषा संस्कृत का उत्तराधिकारी है और अपनी धरती को पुण्य भूमि समझता है।   हिन्दुत्व के प्रमुख लक्षण हैं एक जाति और एक संस्कृति। गोलवलकर ने अपनी पुस्तक ‘‘वीः अवर नेशनहुड डिफाइंड‘‘ में यहां तक कहा कि हमारा इकलौता मकसद हिन्दू राष्ट्र के जीवन को ऊंचाई और उज्जवलता के शिखर पर बिठाना है। वे ही राष्ट्रवादी और देशभक्त हैं जो हिन्दू जाति को गौरव प्रदान करने के मकसद से अपनी गतिविधियों में संलग्न हैं। इस लिहाज से हिन्दुस्तान के गैरहिन्दुओं को हिन्दू संस्कृति और भाषा स्वीकार करनी होगी। उन्हें हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धावान होना होगा। वे देश में हिन्दू राष्ट्र के मातहत बिना कोई मांग या सुविधा के रह सकते हैं। उन्हें कोई प्राथमिकता यहां तक कि नागरिक के भी अधिकार नहीं मिलेंगे।    अचरज है सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दुत्व की परिभाषा समझाने में इस बौद्धिक जद्दोजहद की पृष्ठभूमि का खुलासा नहीं किया है। जिसमें यहां तक कहा गया था कि पहला हिन्दू राज्य महाराष्ट्र में स्थापित होगा।   हिन्दुत्व शब्द का उल्लेख विनायक दामोदर सावरकर के पहले लाला लाजपत राय ने भी किया था। नास्तिक सावरकर ईश्वर को नहीं मानते थे। संघ परिवार हिन्दुत्व और ईश्वर दोनों को मानता है। हिन्दुत्व के नाम पर वोट मांगने को कुछ मुकदमों में सुप्रीम कोर्ट ने जायज़ ठहराया है, लेकिन अन्य फैसलों में हिन्दुत्व और हिन्दुइज़्म (हिन्दू धर्म) को अलग भी करार दिया है। रामकृष्ण मिशन ने भी एक मुकदमें में मांग की थी कि वह प्रचलित अर्थ में हिन्दू धर्म का अनुयायी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह दलील नहीं मानी।   कई आदिवासी समूह हिन्दू घोषित किया जाने पर कहते हैं कि वे हिन्दू धर्म के अनुयायी नहीं हैं। हिन्दू धर्म के अनेक मत, विभाजन, संप्रदाय जातिभेद और वर्गविभेद का पूरा ज्ञान किसी धर्माचार्य को भी नहीं हो सकता।

(7) ‘‘हम यह चुनाव हिन्दुत्व की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं इसलिए हम मुस्लिम वोटों की कोई फिक्र नहीं करते। यह देश हिन्दुओं का है और आगे भी रहेगा।..........।‘‘ ‘‘यदि तुम मस्जिदें खोदोेगे तो उन सबके नीचे हिन्दू मन्दिरों के अवशेष पाओगे। जो कोई हिन्दुओं के खिलाफ खड़ा होगा उसे उसकी जगह बता दी जानी चाहिए या उसकी पूजा जूतों से करनी चाहिए। प्रभु (उम्मीदवार) को हिन्दू के नाम पर जिताना है। यद्यपि यह देश हिन्दुओं का है फिर भी यहां राम और कृष्ण का अपमान होता है। हमें मुसलमानों के वोट नहीं चाहिए। शहाबुद्दीन जैसा सांप जनता पार्टी में बैठा है। मतदाताओं को उस पार्टी को दफना देना चाहिए।‘‘।         ये उन भाषणों के अंश हैं। जोे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में रमेश प्रभु नामक निर्दलीय उम्मीदवार के समर्थन में शिवसेना की ओर से बाल ठाकरे द्वारा दिए गए थे। बम्बई हाईकोर्ट ने प्रभु का चुनाव लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत दो समुदायों के बीच धार्मिक घृणा फैलाने के आरोप में रद्द कर दिया। ठाकरे और प्रभु ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। उनका कहना था उन्होंने हिन्दू धर्म के आधार पर वोट नहीं मांगा है, क्योंकि उनके अनुसार ‘हिन्दुत्व‘ धर्म नहीं भारतीय संस्कृति की शैली है। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपील स्वीकार कर बम्बई हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया। 

(8) हिन्दुत्व और हिन्दुइज़्म में ज़मीन आसमान का फर्क है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे. एस. वर्मा के अनुसार हिन्दुत्व एक जीवन शैली और बहुसंख्यक समाज का अक्स तथा प्राण तत्व है।    हिन्दुइज़्म हिन्दू धर्म के अनुयायियों का संगठन समाज है। 1995 के इस फैसले में जस्टिस वर्मा ने दोनों को गड्डमगड्ड कर दिया। हिन्दुइज़्म और हिन्दुत्व का अंतर बारीक या पेचीदा नहीं है। लेकिन न्यायमूर्ति वर्मा ने उलझा दिया। हिन्दुत्व शब्द के आविष्कारक सावरकर ने खुद अचरज किया था कि दोनों शब्दों को एक ही अर्थ में क्यों समझा जाता है। (1969)। मुमकिन है न्यायमूर्ति वर्मा ने फैसला नीयतन नहीं किया होगा।   फैसले की बौद्धिक क्षेत्रों में तीखी आलोचना हुई कि हिन्दुइज़्म पुरानी अभिव्यक्ति है लेकिन हिन्दुत्व आधुनिक। हिन्दुइज़्म धार्मिक विश्वास का प्रतीक है। लेकिन हिन्दुत्व नई परिस्थितियों का तकाज़ा है। हिन्दुइज़्म धर्म है, लेकिन हिन्दुत्व नहीं। हिन्दुइज़्म निजी मुक्ति का साधन हो सकता है लेकिन हिन्दुत्व जातीय, राष्ट्रीय और सांस्कृतिक फलक का राज्य और समाज के स्तर पर सियासत का भी अहसास है। हिन्दुइज़्म विचार के सभी आयामों का समुच्चय है। हिन्दुत्व को उसके एक धार्मिक वैश्वासिक हिस्से की हैसियत एक मजहब की संकीर्णता द्वारा स्वीकार किया जाता है।

                  (बाला साहेब ठाकरे) 

(9) भारतीय जनता पार्टी के 1999 के चुनाव घोषणा पत्र में जस्टिस वर्मा की बेंच द्वारा दिए गए फैसलों का लाभ लिया गया। शुरुआत में ही सुप्रीम कोर्ट को भारतीय जनता के साथ इस समझ का श्रेय दिया गया कि हिंदुत्व को एक सेक्टर का बहिष्कृत विचार नहीं माना गया। ऐसे सैद्धांतिक तर्को को भाजपा ने अपने उन राजनीतिक कृतियों की वैचारिक नींव  की तरह रेखांकित किया जिनके कारण राम जन्मभूमि आंदोलन को तर्क सिद्ध किया गया।

16 जनवरी 1999 को श्रीमती सोनिया गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस कार्यसमिति ने अपने प्रस्ताव में हिंदुइज़्म को भारत में सेकुलर वाद का प्रभावशाली जमानतदार करार दिया। श्रीमती गांधी ने उसके पहले भी अपने भाषण में हिंदुओं को लेकर इसी तरह के विचार व्यक्त किए थे। भाजपा ने बिल्ली के भाग से छींका टूटा जैसी शैली में जानबूझकर यह बयान जारी किया कि कांग्रेस ने हिंदुत्व संबंधी भारतीय जनता पार्टी की अवधारणा को भारतीय राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय तादात्म्य  के प्रतीक के रूप में स्वीकार कर लिया है । ऐसा ही भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि हिंदुत्व एक जीवन शैली है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने हिंदुत्व संबंधी अवधारणा के कारण श्रीमती गांधी की प्रशंसा की। यहां संघ परिवार ने जानबूझकर कांग्रेस की सद्भावनाजन्य  भूल के कारण हिंदुत्व और हिंदू शब्दों को गड्मडड्ड किया और राजनीतिक फलितार्थ निकाले।

 (10 )कई बार अदालतों ने संविधान निर्माताओं की समझ से परे जाकर ‘हिन्दू‘, ‘हिन्दी‘, ‘हिन्दुस्तान‘, ‘हिन्दूधर्म‘ जैसे शब्दों की अपनी व्याख्याएं कीं। ये दार्शनिक, नीतिशास्त्रीय, धार्मिक और ऐतिहासिक तथा भाषायी आधारों पर भी सही प्रतीत नहीं होतीं। न्यायालयों को अधिकार दिए गए हैं कि वे कानूनों की व्याख्या करने के अलावा राष्ट्रीय जीवन के हर प्रश्न का विवेचन करें जो उनके दायरे में पहुंचता है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं को समझने में जजों ने कई बार निजी समझ और मान्यताओं पर भी भरोसा किया है। संविधानसम्मत तथा परंपरापोषित धार्मिक प्रथाओं का सांस्कृतिक स्पेस हिन्दू तथा मुस्लिम कठमुल्लापन ने प्रदूषित कर दिया है। इसलिए सेक्युलरवाद सही अर्थ खोकर संकुचित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में बदला जाता रहा है। संविधान के लिए लेकिन पेचीदी मुश्किलें केवल हिन्दुओं ने ही पैदा नहीं कीं। वैसे मुसलमान बेरोजगार, गरीब, हिंसक, ‘अपराधी‘ (?) और अलग थलग भी दिखलाये जाते रहे हैं। हालांकि उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन , साहित्य , संस्कृति , सेना , फिल्मों और खेलकूद आदि में भारतीय रहने का अहसास जिया है। राष्ट्रीय जीवन संविधान की पोथी बांच कर रोज ब रोज नहीं चलता। संविधान की आयतें घर के बड़े बूढ़ों की समझाइशों की तरह हो जाती हैं जिनके मानने या न मानने की मजबूरी नहीं महसूस होती।
(जारी)

कनक तिवारी
© Kanak Tiwari

हिन्दू, हिन्दुत्व, सेक्युलरिज़्म और मुसलमान (1) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/06/1_26.html 

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