Friday 22 October 2021

प्रवीण झा - रूस का इतिहास - दो (7)

     ( चित्र: ज़ार अलेक्सांद्र द्वितीय पर हमला )

सर्वहारा के लिए आंदोलन मूलत: सर्वहारा द्वारा नहीं था। रूस इतना विशाल था कि गाँव-गाँव तक पहुँच कर किसानों को जागृत कर उन्हें आंदोलित करना कठिन था। कार्ल मार्क्स या हर्ज़न के लेख पढ़ने की उनमें क्षमता भी नहीं थी। काफ़ी हद तक किसान धर्मनिष्ठ, परंपरावादी और यहाँ तक कि राजशाही के समर्थक भी थे। वे भले ही शोषित थे, उन्हें उनका समुचित मेहनताना नहीं मिलता था, लेकिन यह समझ बुद्धिजीवी वर्ग को ही थी। कमो-बेश यह स्थिति दुनिया भर में रही है कि खेतों में हल जोतते किसान को यह नहीं मालूम होता कि उसके ऊपर लंबे लेख लिखे जा रहे हैं, आंदोलन चल रहे हैं, क्रांति हो रही है। एक तरह से कहा जा सकता है कि सर्वहारा की क्रांति भी पढ़े-लिखे बुर्जुआ ब्रीड के ही जिम्मे है।

पहले प्रयास जो रूस में हुए, उनका उद्देश्य था- ‘जनता तक पहुँचो’। इसमें तमाम बुद्धिजीवी युवक और युवतियों कॉलेज से पढ़ कर गाँव के लोगों तक पहुँचे। लेकिन, उनमें संवाद-दोष हो गया। जब वे समझाते कि ज़ारशाही उन किसानों का शोषण कर रही है, तो किसान उल्टे उनकी मुखबिरी कर देते कि ये लोग उन्हें भड़का रहे हैं। वे उन्हें पकड़वा देते, और इस तरह यह स्कीम कामयाब नहीं रही। 

दूसरा प्रयास अधिक प्रायोगिक था। उसमें गाँव की बजाय शहरों में बुद्धिजीवियों और शिक्षित युवाओं का संगठन बना, जो कहलाया ‘ज़मीन और आज़ादी’ (लैंड ऐन्ड फ्रीडम)। यह संगठन सत्याग्रह में विश्वास करती थी, जिसमें सामंतवाद और निरंकुश राजशाही के ख़िलाफ़ विरोध दर्ज़ किए जाते। वे हिंसक नहीं थे, और पत्रिका में लेखों या कविताओं से अपनी बात रखते थे। उनमें से कई लोग पकड़ कर जेल भेज दिए गए। यह स्कीम भी ख़ास नहीं चल पायी। 

तीसरा प्रयास सबसे आक्रामक और हिंसक था। वे क्रांतिकारी थे, जिनका किसी सत्याग्रह में भरोसा नहीं था। वे ज़ाऱशाही को जड़ से उखाड़ना चाहते थे। उनकी योजना कुलीन मंत्रियों, सरकारी भवनों और यहाँ तक कि ज़ार पर हमला था। वे बंदूक लेकर घूमने, बम बनाने, सरकारी संपत्ति लूटने, और राजनैतिक हत्यायें करने में विश्वास करते थे। युवाओं का आकर्षण इस समूह से सबसे अधिक था। अगर उन्हें पकड़ कर जेल भेजा जाता और फाँसी दी जाती, तो वे ‘शहीद’ कहलाते। वे कहलाए- ‘जनता की इच्छा’ (पीपल्स विल)! यही अपने मंसूबों में सफल रहे।

1878 में सेंट पीटर्सबर्ग के गवर्नर जनरल ने एक क्रांतिकारी को कठोर शारीरिक यातना दिए जाने के लिए कहा। उस समय ज़ार ने ऐसी यातना पर रोक लगा दी थी, लेकिन कैदी को बेरहमी से पीटा गया। वेरा जासुलिच नामक एक युवती उन गवर्नर जनरल के चैम्बर में दाखिल हुई, उनके ऊपर बंदूक तान दी और दना-दन गोलियाँ चला दी। यह अभूतपूर्व था। हद तो तब हो गयी जब एक लंबी जिरह के बाद न्यायपालिका ने युवती के कदम को सही ठहरा दिया। उसे बरी कर दिया गया, और वह विदेश भाग गयी। यह ज़ार द्वारा स्वतंत्र किए गए न्यायपालिका का नतीजा था। ये क्रांतिकारी युवा अब रूस के नायक बनते जा रहे थे, और छात्र उनकी ही तरह क्रांति करना चाहते थे। 

ज़ार अलेक्सांद्र को इस क्रांति की खबर थी, और हमले का अंदेशा भी था, लेकिन वह धार्मिक व्यक्ति थे। वह कहते कि सब ईश्वर के हाथ में है, और उन्हें अतिरिक्त सुरक्षा की ज़रूरत नहीं। 1880 में एक क्रांतिकारी बढ़ई बन कर उनके महल में घुस गए, और बम विस्फोट कर दिया। ज़ार के अंगरक्षक मारे गए, लेकिन ज़ार बच गए। 

अगले वर्ष 1 मार्च, 1881 को ज़ार अलेक्सांद्र पीटर्सबर्ग में एक बग्घी पर अपने महल की ओर बढ़ रहे थे। उसी समय ‘पीपल्स विल’ के एक क्रांतिकारी ने उनके ऊपर बम फेंक दिया। वहाँ भी ज़ार के अंगरक्षक मारे गए, और ज़ार बच गए। लेकिन, उन्होंने एक ग़लती कर दी। वह बग्घी से उतर कर क्रांतिकारी से बात-चीत करने निकल आए। उसी वक्त उन पर एक और बम फेंका गया, और उनके दोनों पैर धड़ से अलग हो गये। वह ज़ार जिन्होंने कृषि-दास प्रथा खत्म की, कुछ समय बाद स्वयं खत्म हो गए।

रूस के किसानों को यह लगा कि यह हत्या किसी सामंत ने की होगी, जो उनकी आज़ादी से चिढ़ा हुआ था। उन्हें क्या मालूम था कि ज़ार की हत्या उनके अधिकारों के लिए ही की गयी है। 

ज़ार अलेक्सांद्र द्वितीय की हत्या के बाद अलेक्सांद्र तृतीय आए, जो उनके ठीक विपरीत थे। वह एक कठोर और बलशाली ज़ार थे। उनका एक क़िस्सा मशहूर है कि जब ऑस्ट्रिया के राजदूत ने उनको आक्रमण की धमकी दी, तो उन्होंने थाली से चम्मच उठाया और उसे अपने हाथों से ही मरोड़ कर राजदूत के थाली में फेंकते कहा कि तुम्हारे ऑस्ट्रिया का यही हश्र करूँगा। 

वह अपने पिता के हत्या के पीछे यहूदियों की साजिश मानते थे और उन्हें खत्म कर देना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए एक रूसी शब्द का प्रयोग किया, जो इतिहास का सबसे बदनाम शब्द बना- पोग्रोम (pogrom)! 
(क्रमश:)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

रूस का इतिहास - दो (6)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/10/6.html 
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