Friday 8 October 2021

प्रवीण झा - रूस का इतिहास (12)

           ( चित्र: ‘दाढ़ी टैक्स’ का सिक्का )

राजशाही में सनकी राजा तो कई हुए, मगर कुछ राजाओं की सनक इतिहास में छाप छोड़ गयी। ज़ार पीटर जैसे ही गद्दी पर बैठे, उन्होंने मन में दो निर्णय लिए। दोनों ही परंपरा के विपरीत थे। पहला यह कि उन्होंने राज-दरबार की बैठक बंद कर दी। दूसरा कि उन्होंने चर्च का कद घटा दिया यानी धर्म का प्रशासन में हस्तक्षेप बंद कर दिया।

वह महल में रहना पसंद नहीं करते थे। उनको गाँव-देहात में बैठ कर अपने सैनिकों के साथ शराब पीने में आनंद आता था। रूस में सैनिक अक्सर खेतिहर ही होते थे, जो सर्वहारा वर्ग से थे। ऐसा आज तक किसी राजा ने नहीं किया था कि उनके साथ घंटो बैठ शराब पीते हुए ठहाके लगाए हों। 

शराब पीने की कैपेसिटी उनकी बहुत थी। ख़ास कर वह ब्रांडी में काली मिर्च डाल कर पीने के शौकीन थे, जो बाद में संस्कृति का हिस्सा बनी। वह अपने कुछ चेलों के साथ जहाज लेकर अकेले समंदर में निकल जाते और महीनों तक गायब रहते। इस मध्य उन्हें कुछ आइडिया आता, वह जहाज को बेहतर बनाने लगते। 

वह ऐसे राजा भी हुए, जिन्होंने राज-पाट से छुट्टी लेकर नीदरलैंड में जहाज के विज्ञान का कोर्स किया। उन्होंने वहाँ किसी को बताया ही नहीं कि वह रूस के राजा हैं। वह एक आम विद्यार्थी की तरह बढ़ईगिरी करते हुए जहाज बनाना सीख रहे थे। उन्हें जब मालूम पड़ा कि इंग्लैंड में बेहतर शिक्षा होती है, तो वहाँ जाकर भी कोर्स कर आए।

उनके कुलीन मंत्रियों को लगा कि यह राजा क्या ‘टाइम-पास’ कर रहे हैं, राज-पाट छोड़ कर विद्यार्थी बन गए है। लेकिन, पीटर की योजना अभूतपूर्व थी। उन्होंने लौट कर एक नौसेना बनायी, जिसके कप्तान वह स्वयं बन गए। वाइकिंग युग के बाद पहली बार रूस की जहाज़ी सेना ने दोन नदी के रास्ते तुर्की को शिकस्त दी। ज़ार पीटर विजय-पताका लहराते हुए मॉस्को लौटे। उनके झंडे पर जूलियस सीज़र का मशहूर कथन लिखा था- ‘हम आए, हमने देखा, हमने जीता!’

मॉस्को से दूर रहने के कारण उनके ख़िलाफ़ षड्यंत्र भी हो रहे थे। उन्हें मालूम पड़ा कि उनकी बहन और पूर्व महारानी सोफ़िया एक नन बनने के बाद भी कुछ विद्रोहियों का साथ दे रही हैं। उन्होंने न सिर्फ विद्रोहियों को मरवाया बल्कि सोफ़िया की खिड़कियों पर उनकी लाशें टाँग आए। ऐसी वीभत्स योजना तो एक सनकी राजा की ही हो सकती है। 

पूरा यूरोप करीब से देख कर पीटर अब रूस को बाकी यूरोप की तरह बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले कैलेंडर बदल कर अंग्रेज़ी कैलेंडर अपनाया। उसके बाद उन्होंने शाही परिधान बदलवा दिए। उनका कहना था कि रूस को बाकी यूरोप जैसा ही दिखना चाहिए। इसके लिए अगले आदेश और भी अजीब थे।

रूसियों को अपने दाढ़ी से बहुत प्यार था। उनका मानना था कि दाढ़ी के बिना पुरुष नंगा है। पीटर ने अपनी दाढ़ी तो पहले ही साफ कर ली थी, बाकी कुलीनों की दाढ़ी भी साफ करवा दी। वे अब सिर्फ़ मूँछ रख सकते थे। सर्वहारा वर्ग के लिए दाढ़ी की इजाज़त थी, लेकिन उन्हें इसका ‘दाढ़ी टैक्स’ भरना पड़ता और गले में एक सिक्का पहनना होता जिस पर यह अंकित होता कि टैक्स भरा है।

अब उनके बचपन के स्वप्न को पूरा करने का वक्त था। समुद्र किनारे अपनी राजधानी बनाने का। इसके लिए उन्हें स्वीडन से लड़ना था, जो उनके लिए ऐसी लड़ाई बनी जिसे लड़ते-लड़ते उनका जीवन निकल गया। 

यह टक्कर एक ऐसे राजा से थी, जो युद्ध के कमांडर रहे थे और गोलियाँ चलाते हुए स्वयं डेनमार्क को धूल चटाई थी। अगर पीटर नौसेना को लीड करते थे, तो स्वीडन के राजा चार्ल्स भी स्वयं कमान संभालते थे। यूरोप में ऐसी लड़ाई लंबे समय से नहीं हुई थी, जब एक राजा दूसरे राजा के यूँ आमने-सामने हो। 
(क्रमश:)

प्रवीण झा 
© Praveen Jha 

रूस का इतिहास (11)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/10/11_7.html 
#vss 

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