Wednesday 13 October 2021

प्रवीण झा - रूस का इतिहास (18)

   ( चित्र: मॉस्को से लौटती नेपोलियन की सेना )

नेपोलियन का अंत वाटरलू कहा जाता है, लेकिन नेपोलियन की उल्टी गिनती तो रूस से ही शुरू हो गयी थी।  यह बात इतिहास में दर्ज है, मगर पढ़ाया जाने वाला इतिहास अक्सर ब्रिटेन को विजेता सिद्ध करता है। बिना रूस के नेपोलियन की कहानी पूरी ही नहीं हो सकती।

ज़ार अलेक्सांद्र रूस के आखिरी शक्तिशाली ज़ार कहे जा सकते हैं। उनके पास विकल्प भी कम थे। नेपोलियन यूरोप में जीत पर जीत दर्ज़ किए जा रहे थे। नीदरलैंड, ऑस्ट्रिया, जर्मनी और प्रशिया की सेनाओं ने घुटने टेक दिए थे। अब रूस पर ही इस विजय-रथ को रोकने की ज़िम्मेदारी थी। 

अलेक्सांद्र ने अपनी राजशाही का स्वरूप बदल दिया था। उन्होंने भिन्न-भिन्न मंत्रालय बना दिए थे। अब प्रशासन सिर्फ़ राजा के हाथ में नहीं, बल्कि मंत्रियों के हाथ में भी था। राजा हर फैसले पर उनसे विमर्श करते। इन्हीं मंत्रालयों में एक युद्ध मंत्रालय भी बना था। 

1807 में ज़ार अलेक्सांद्र स्वयं घोड़े पर सवार होकर नेपोलियन की सेना से लड़ने युद्घ-भूमि में गए। लेकिन, वह भूल गए थे कि वह सेनापति नहीं हैं, राजा हैं। जबकि नेपोलियन एक काबिल सेनापति थे। रूस को शुरुआती जीत अवश्य मिली, लेकिन उसके बाद ज़ार की ग़लत रणनीति के कारण रूसियों को हार मिली। रूस ने संधि-प्रस्ताव रखा और नेपोलियन ने भी उन्हें बेइज्जत करने में कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने एक नाव पर ज़ार अलेक्सांद्र को बुलाया, और वहीं ज़ार को सर झुका कर संधि करनी पड़ी। रूस को ब्रिटेन से सभी व्यापारिक संबंध तोड़ने का आदेश दिया गया। 

लेकिन, अलेक्सांद्र अपनी शर्त से मुकर गए। ब्रिटेन से जहाज़ भर-भर कर सामान रूस आते रहे। नेपोलियन तक यह खबर पहुँची, वह भड़क उठे। 1812 में एक विशाल सेना लेकर उन्होंने रूस पर आक्रमण कर दिया। लाखों की तादाद में घुड़सवार और पैदल सेना रूस के अंदर घुस गयी। रूस ने वही किया, जो वह करते आ रहे थे। उन्होंने नेपोलियन की सेना को अंदर आने दिया!

नेपोलियन ने अब तक इतने विशाल देश में प्रवेश नहीं किया था, जहाँ जनसंख्या इतनी कम हो। सेना को रूस की वीरान सड़कों पर भोजन भी नसीब नहीं होता। न ही सड़कें बनी थी कि फ्रांस से सामान जल्दी पहुँच सके। 7 सितंबर को फ्रांसीसी सेना मॉस्को के निकट बोरोडिनो तक पहुँच गयी, जहाँ रूसी सेना से उनका मुक़ाबला हुआ। वहाँ पहुँच कर उन्हें अंदाज़ा हुआ कि रूस की सेना तो विशाल है। वहाँ बराबरी की टक्कर हुई, और दोनों पक्षों के हज़ारों सैनिक मारे जा रहे थे। इतिहासकारों के अनुसार मात्र एक दिन में दोनों पक्षों के लगभग एक लाख सैनिक मारे गए। यह अभूतपूर्व था। 

जब रूस को लगने लगा कि अब क्षति अधिक हो रही है, उन्होंने मॉस्को खाली करा दिया। वहाँ एक नागरिक नहीं बचा। तमाम शाही महल, विश्वविद्यालय, सड़कें वीरान हो गयी। जब नेपोलियन की सेना वहाँ पहुँची, न वहाँ कोई मारने के लिए बचा, न लूटने के लिए। मॉस्को एक चक्रव्यूह बन गया था। फ्रांस की सेना अब असमंजस में थी कि आगे क्या करे? नेपोलियन स्वयं मॉस्को में इंतज़ार करते रहे कि ज़ार आत्मसमर्पण करेंगे, लेकिन वे आए ही नहीं। 

ठंड बढ़ती जा रही थी, और फ्रांसीसी सेना के वापस घर लौटने के अलावा चारा नहीं था। उस समय थकी-हारी लौटती फ्रांसीसी सेना को रूसियों ने खदेड़ना शुरू किया। हालत यह हो गयी कि लाखों की तादाद में आयी सेना में कुछ हज़ार ही वापस लौट सके। इतना ही नहीं, रूस की सेना ने पोलैंड के रास्ते फ्रांस की ओर बढ़ना शुरू कर दिया।

नेपोलियन, जो यूरोप विजय करते हुए मॉस्को जीत चुके थे, उन्हें अपनी पेरिस बचाने के लिए आना पड़ा। रूसी सेना पूरे जोश के साथ फ्रांस तक पहुँच गयी। 31 मार्च, 1814 को पेरिस के बाहर आखिर नेपोलियन की सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा। रूसियों ने अपनी हार को जीत में तब्दील कर दिया था। अगले वर्ष नेपोलियन ने वाटरलू में ‘कम-बैक’ की कोशिश की, लेकिन विफल रहे। 

रूसी सेना पहली बार पेरिस पहुँची थी। उन्होंने यहाँ एक ‘बिस्त्रो’ संस्कृति की शुरुआत की, जिसका अर्थ होता है ‘जल्दी-जल्दी’। यह ऐसी खाने की जगह थी जहाँ वह जल्दी से खाकर युद्ध में जा सकें। भले आज फ्रेंच इसे अपनी भोजन-संस्कृति कहते हैं, मगर है यह शब्द रूसी। 

फ्रांस पहुँच कर रूसियों को एक और चीज दिखी। वहाँ की आज़ादी। उन्होंने देखा कि वहाँ किसान और नागरिक किसी सामंत की चाकरी नहीं करते। वे अपने खेत खुद संभालते हैं। सदियों से कृषि-दास रहे रूसी अपनी आज़ादी के स्वप्न देखने लगे। वे रूसी सैनिक जब युद्ध के बाद अपने गाँव लौटे, तो उन्होंने गाँव वालों से कहा कि क्या हमारे देश में ऐसा नहीं हो सकता? क्या हम आज़ाद नहीं हो सकते? उन्हें लगने लगा कि देश में एक जन-क्रांति की ज़रूरत है। 

नेपोलियन की हार के तीन वर्ष बाद प्रशिया के गाँव त्रिएर में एक शिशु का जन्म हुआ, नाम रखा गया कार्ल मार्क्स। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

रूस का इतिहास (17)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/10/17.html
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