Thursday 14 October 2021

शंभूनाथ सिंह - कोस कोस का पानी (19) कांग्रेस नेता की विनम्रता!

अभी झाँसी वाली यात्रा कथा से थोड़ा हट कर सफ़र करते हैं। लेकिन चिंता न करें, मूल कथा बरकरार रहेगी। इसके पीछे वाला पार्ट दादू लोगों की धमकियों के चलते हटा लिया था। परंतु वह पार्ट भी मेरे ब्लॉग पर रहेगा और जब मेरा ट्रैवलॉग प्रकाशित होगा तो फिर उसमें पढ़ने को मिलेगा। ध्यान रखिये, ‘सब दिन जात न एक समाना!’ कभी तो इन जातिगर्व में आकंठ डूबे और ब्लू ब्लड के स्वयंभू ठेकेदारों का वर्चस्व ख़त्म होगा। इस देश में किसी एक जाति का प्रभुत्त्व कभी भी स्थायी नहीं रहा है। ख़ैर, आप लोग 19वाँ पार्ट पढ़िए-

यह 1988-89 की बात है। तब शताब्दी एक्सप्रेस में एक्जीक्यूटिव क्लास नहीं होता था। बस एसी चेयर कार की आगे वाली सीटें वीआईपी मान ली जाती थीं। मुझे झाँसी जाना था, यह ट्रेन सुबह छह बजे नई दिल्ली से चलती थी। मेरी सीट भी सबसे आगे दो नम्बर थी, खिड़की वाली एक नम्बर, जो किसी डीवी सिंह को अलॉट थी। पौने छह पर ही जाकर मैं खिड़की वाली सीट पर जम गया। ट्रेन चलने के एक मिनट पहले शुभ्र-श्वेत कुरता-पायजामा पहने एक सुदर्शन सज्जन आए और दो नम्बर पर बैठ गए। उन्होंने यह भी नहीं कहा, कि यह खिड़की वाली सीट मेरी है। पहला स्टॉप आगरा था। जब वह निकल गया, तब मैंने उनसे पूछा, नेता जी आप कहाँ जहां रहे हो? बोले- भोपाल। मैंने आगे बात शुरू की, और कहा, आप किसी पोलेटिकल पार्टी में हैं? उन्होंने कहा, जी हाँ, कांग्रेस में। अब मैं चौंका क्योंकि गंजे सिर वाले ऐसे ही एक व्यक्ति की फ़ोटो मैंने मध्य प्रदेश वाले कालम में लगवाई थी। अचानक याद आया, कि वह खबर थी दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने। फिर दिमाग़ में क्लिक किया, कि हो न हो, बाहर सूची में चस्पाँ डीवी सिंह दिग्विजय सिंह ही हैं। मैंने कहा, क्या आप एमपीसीसी के अध्यक्ष हो? वे सिर झुका कर बोले, जी। मैंने अपना परिचय दिया। फिर आया, ग्वालियर। कुछ कांग्रेसी फूल-मालाएँ लेकर आए। उन्होंने कहा शुक्ला जी को पहनाओ। और श्रीखंड मँगवाई तथा हम लोगों ने उसे खाया। इसके बाद आया झाँसी। मैं उनका आभार व्यक्त कर उतर गया। मुझे लगा, अर्जुन सिंह के बाद मध्य प्रदेश को यही नेता उबारेगा। और हुआ भी यही, वे दो बार सूबे के लगातार पूर्णकालिक मुख्यमंत्री रहे। 

इसके बाद 2011 में जब वे कांग्रेस महासचिव थे, और यूपी के प्रभारी भी। तब वे कुछ खिन्न थे, क्योंकि उन्हें मध्य प्रदेश से हटा दिया गया था। एक दिन मैंने उन्हें भट्टा-पारसौल से जुड़ी कुछ अहम जानकारियाँ देने के लिए उनके सहायक पाठक जी को देर रात फ़ोन किया। उन्होंने फ़ोन डीवी सिंह को दिया। वे बोले, अरे, सो जाइए शुक्ला जी, यूपी में कुछ नहीं होगा। मालूम हो, कि तब भट्टा-पारसौल में राहुल गांधी इतनी दिलचस्पी ले रहे थे, कि लगता था मायावती घिर गईं। किंतु कांग्रेस के अंदर के दुश्चक्र को भेदना उनके वश में नहीं था।
(ज़ारी)

© शंभूनाथ शुक्ल

कोस कोस का पानी (18)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/10/18.html 
#vss

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