Wednesday 27 October 2021

कानून - धारा 67 एनडीपीएस के अंतर्गत इकबालिया बयान अदालत में स्वीकार्य नहीं हैं / विजय शंकर सिंह

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में 628 किलोग्राम गांजा की कथित बरामदगी से जुड़े एक मामले में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) के तहत अभियुक्त बनाए गए एक व्यक्ति को जमानत दे दी है।

अदालत ने कहा कि अभियुक्त के खिलाफ मामला, केवल उसके सह-अभियुक्त द्वारा दिए गए बयान पर आधारित था और एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के अंतर्गत, आरोपी द्वारा दिए गए बयान पर भी न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह की खंडपीठ ने उसे जमानत दे दी थी। 

चूंकि एनसीबी ने एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के अंतर्गत दिए गए उनके बयान पर भरोसा किया, इसलिए हाईकोर्ट ने तूफान सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य के फैसले इस मामले में उल्लेख किया ।  तमिलनाडु राज्य, के इस मामले में, यह माना गया था कि, 
" एनडीपीएस अधिनियम के तहत नियुक्त केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के अधिकारी पुलिस अधिकारी हैं, और इसलिए धारा 67 के तहत उनके द्वारा दर्ज किए गए 'इकबालिया' बयान स्वीकार्य नहीं हैं।" 

तूफान सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य (2020) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट के, फैसले के अनुसार, एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के अंतर्गत, आरोपी द्वारा दिए गए बयान मुकदमे के दौरान सबूत के रूप में, अदालत में स्वीकार्य नहीं हैं, क्योंकि यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 के अनुसार, ऐडमिसिबिल नहीं है। 

● Sec 25 IEA.
Confession to police officer not to be proved.
No confession made to a police officer1, shall be proved as against a person accused of any offence.
No confession made to a police officer1, shall be proved as against a person accused of any offence.

● Sec 67 NDPS act,
67 of the NDPS Act have any evidentiary value and whether they can be relied upon to deny an application for bail. Whether statements recorded under S. 67 of the NDPS Act can be treated as confessional statements depends in turn on the question whether officers of NCB are 'police officers'?

एनडीपीएस एक्ट के आधीन कोई भी अधिकारी यदि बरामदगी करता है और उसके सामने कोई कन्फेशन, मुल्जिम करता है तो उक्त अधिकारी के समक्ष किया गया, ऐसा इकबालिया बयान, इंडियन एविडेंस एक्ट की धारा 25 के अनुसार अदालत में स्वीकार्य नहीं है। 

( विजय शंकर सिंह )

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