Monday 30 November 2020

काशी में मिथ्यावाचन / विजय शंकर सिंह

काशी नरेश राजा दिवोदास के समय से ही कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर समस्त देवगण एक दिन के लिये शिव से मिलने काशी आते हैं। दीपोत्सव से काशी के लोग उनका स्वागत करते है। आज तो लेजर रोशनी में सद्यःस्नाता काशी को निरखते हुए देवताओं ने कितना झूठ सुना होगा, यह तो देवगण ही जानें। पर एक वैदिक कथा के अनुसार, काशी में एक बार ब्रह्मा ने भी झूठ बोल दिया था तो, शिव ने उन्हें अपूज्य घोषित कर दिया और कहते हैं तब से ब्रह्मा की पूजा नहीं होती है। सरस्वती से जुड़े दुराचार की कथा भी ब्रह्मा की अपूज्यता का एक काऱण है। पर यह संदर्भ जो मैं बता रहा हूँ, वह काशी से ही जुड़ा है। 

ब्रह्मा से जुड़े मिथ्यावाचन की कथा
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एक बार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा और उसके पालनकर्ता विष्णु को काशी में एक विशाल अग्नि स्तंभ दिखा। इस अंतहीन चमकीले स्तंभ से ऊँ ध्वनि निकल रही थी। उन्होंने आश्चर्यचकित  होकर इसके आदि और अंत का पता लगाने की सोची। ब्रह्मा हंस का रूप धारण कर  उसके शीर्ष (सिरे) की खोज में आसमान की ओर ऊपर उड़ने लगे। विष्णु वाराह (सूअर) का रूप धारण कर उसके आधार की तलाश में धरती के नीचे पाताल में काफी नीचे चले गए। 

दोनों ही भटकते रहे, पर दोनो में से किसी को भी न ओर मिला न छोर।क्योंकि यह स्तंभ खुद शिव थे। जिसे मापा ही नहीं जा सकता है, उसे कोई कैसे माप सकता है? विष्णु ने लौट कर अपनी हार मान ली कि उन्हें पाताल के काफी अंदर तक जाने पर भी आधार नही मिला । 

मगर असफलता को स्वीकार न करने की इच्छा से ब्रह्मा ने झूठ बोला और शेखी बघारते हुए विष्णु से कहा कि, वह तो स्तंभ के शीर्ष तक पहुंच गए थे। उन्हें वहां केतकी का एक पुष्प भी स्तंभ शीर्ष पर रखा मिला। प्रमाण के तौर पर उन्होंने एक सफेद केतकी का फूल भी विष्णु को दिखाया। उनका कहना था यह पुष्प उनके स्तंभ शीर्ष तक पहुंचने का प्रमाण है। 

ब्रह्मा को झूठ बोलते ही शिव आदियोगी के रूप में प्रकट हो गए, और उन्होंने तीक्ष्ण दृष्टि से ब्रह्मा को देखा। ब्रह्मा का झूठ पकड़ा गया और वह नतमस्तक थे। फिर दोनों देवता शिव के चरणों में गिर पड़े। शिव ने कहा कि ब्रह्मा के इस झूठ के कारण अब से उन्हें पूजा नहीं जाएगा। इस झूठ में शामिल होने के कारण केतकी के पुष्प को भी शिव ने अपनी अर्चना में अर्पित करने का निषेध कर दिया।

लेकिन, बाद में विष्णु के यह कहने पर झूठ तो ब्रह्मा ने बोला है। वे अपूज्य हो गए है। पर केतकी पुष्प को तो अनायास ही शिव अर्चना से वंचित किया जा रहा है। तब शिव ने केवल महाशिवरात्रि की पावन रात के लिए केतकी पुष्प की अर्चना स्वीकार करने की अनुमति दी।इसलिए महाशिवरात्रि की रात्रि में, सफेद केतकी का फूल, शिव को पूजा में समर्पित किया जाता है। ऐसा सिर्फ साल के इस सबसे अंधकारपूर्ण रात को ही किया जा सकता है, जो गहनतम आध्यात्मिक संभावना की रात मानी जाती है। केतकी पुष्प को भी ब्रह्मा की कुटिलता औऱ मिथ्यवाचन में साथ देने के लिए दंडित किया गया ।

( विजय शंकर सिंह )

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