Thursday 8 August 2019

गुजरात और जम्मू कश्मीर के विकास के तुलनात्मक आंकड़े / विजय शंकर सिंह  

संसद में गृह मंत्री ने अनु. 370 के हटाये जाने के सन्दर्भ में एक तर्क यह दिया कि यह धारा जम्मू कश्मीर के विकास में बाधक है। पर यह तर्क आंकडो के संदर्भ में सही नहीं है। अनु. 370 के बने रहने के बावजूद जम्मू कश्मीर राज्य में विकास की गति कई राज्यों से बेहतर है। 

गुजरात एक आदर्श विकसित राज्य माना जाता है। 2014 का लोकसभा चुनाव गुजरात मॉडल के आधार पर ही भाजपा ने लड़ा था, और जीत कर सरकार बनायी थी। यह अलग बात है कि सरकार चुनाव जीतने के बाद विकास के उस मॉडल से अलग हट गयी। 

ज्यां द्रेज एक अर्थशास्त्री हैं। वे नीचे की फ़ोटो में आंकडो से भरा एक पोस्टर लेकर खड़े है। यह पोस्टर गुजरात और जम्मू कश्मीर के विकास से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों के आंकड़े बता रहा है। इसे आप देख सकते हैं। 

इन आंकड़ों के अनुसार, गुजरात कश्मीर से हर मामले में पीछे हैं और कश्मीर गुजरात से मानव विकास सूचकांक में हर मामले में आगे है
● गुजरात में प्रति व्यक्ति औसत आयु 69 है जबकि कश्मीर में 74 वर्ष है ।

●  सल तक के बच्चों की मृत्यु दर गुजरात में 1000 बच्चों में 33 है जबकि कश्मीर में 26 है

● गुजरात में प्रति महिला जन्म दर 2.2 है जबकि कश्मीर में यह 1.7 है

● 15 से 19 साल के बीच की बच्चियों की संख्या  जिन्होंने आठवीं तक की शिक्षा प्राप्त करी है, उनका प्रतिशत गुजरात में 75 है जबकि कश्मीर में ऐसी लड़कियों का प्रतिशत 87 है

● कम वजन के बच्चों का प्रतिशत गुजरात में 39 है जबकि कश्मीर में 17 है 

● बीएमआई वाली महिलाओं का प्रतिशत गुजरात में 27 है जबकि कश्मीर में 12 है ।
( बीएमआई -- बॉडी मास इंडेक्स यानी वजन और कद के हिसाब से स्वास्थ्य नापने का पैमाना )

● गुजरात में ग्रामीण मजदूरों की औसत मजदूरी ₹ 116 है जबकि कश्मीर में यह ₹ 209 है।

विकासवादी अर्थशास्त्री और कार्यकर्ता ज्यां द्रेज के अनुसार, इस बात के कोई साक्ष्य नहीं हैं कि तथाकथित गुजरात मॉडल किसी भी तरीके से कोई मॉडल है। उन्होंने सामाजिक सूचकों पर राज्य के पिछड़ेपन के संदर्भ में यह बातें  दिल्ली में टाइम्स साहित्योत्सव में कहा था । विकास सूचकों की किसी भी रैंकिंग को देखिए, चाहे वह सामाजिक सूचक हों, मानव विकास सूचकांक हों, बाल विकास सूचकांक हों, बहुआयामी गरीबी सूचकांक हों या फिर योजना आयोग के सभी मानक गरीबी सूचकांक- गुजरात लगभग हमेशा बीच के आसपास ही रहा है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम नरेगा, जिसे अब मनरेगा कहा जाता है कि पहले संस्करण का मसौदा तैयार करने में मदद करने वाले द्रेज ने कहा कि यह स्थिति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने से काफी पहले से थी और उसके बाद भी स्थिति यही रही.।

गुजरात मडल शीर्षक से एक बार लेख लिखने वाले द्रेज याद करते हैं कि ‘गुजरात मॉडल’ नाम पिछले लोकसभा चुनाव 2014 के आसपास गढ़ा गया. उन्होंने कहा कि आर्थिक सूचक मानकों के लिहाज से स्थिति अच्छी है लेकिन इसके बावजूद सामाजिक विकास के संकेतकों को देखें तो यह मॉडल एक विरोधाभासी उदाहरण है.


© विजय शंकर सिंह

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