Tuesday 20 August 2019

पी चिदंबरम को आत्मसमर्पण कर देना चाहिये / विजय शंकर सिंह

अपनी एंटीसिपेटरी जमानत के हाईकोर्ट द्वारा रद्द किये जाने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम, एक घोटाले के आरोप में फरार हो गए हैं। ईडी उनकी तलाश कर रही है।

अब अगर ईडी जल्द उनकी तलाश नहीं कर पाती है और वह फरार रहते हैं तो यह ईडी की कार्यक्षमता पर भी एक प्रश्न चिह्न है। उनके पास सुरक्षा कवर है। वे कोई भूमिगत जीवन नहीं जी रहे हैं कि उनका पता न लग सके।

वैसे भी चिदम्बरम को चाहिए कि अपनी जमानत के मंजूर न होने की दशा में खुद को ईडी या सीबीआई के सुपुर्द कर दें। वे कानून जानते हैं और कानून यही कहता है।

घोटाले में उनकी क्या भूमिका है, यह तो ईडी जाने या वे, हमसब तो बस कयास लगा सकते हैं। अखबारों से तो यह पता चल रहा है कि वे सुप्रीम कोर्ट से अपनी अग्रिम जमानत के लिये फिर एक बार प्रयासरत हैं।

अगर वह वहां से भी असफल हो जाते हैं तो उनको एक कानून का पालन करने वाले नागरिक की तरह खुद को ईडी के समक्ष प्रस्तुत कर देना चाहिये। चिदम्बरम एक सामान्य व्यक्ति नहीं है, वे खुद सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े एडवोकेट और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं।

तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी, सर्च सीजर और अरेस्ट, पुलिस का मूल और विशिष्ट अधिकार है। यह अधिकार, पुलिस को इसलिए प्राप्त है कि वह समय रहते किसी भी अपराध को रोक सके और अगर अपराध हो गया है तो उस अपराधी को पकड़ कर कानून के दायरे में अदालत में पेश कर सके।

किस मुल्ज़िम की गिरफ्तारी कब, क्यों और किसलिए हो यह पुलिस या जांच एजेंसी का  विवेचक ही तय करता है। मुल्ज़िम अपनी गिरफ्तारी को अदालत में चुनौती दे सकता है, यह उसका विधिक अधिकार है।

इस मामले में भी पी चिंदम्बरम की गिरफ्तारी ईडी के लिये क्यों जरूरी है यह ईडी ही बता सकती है और ईडी ने जब चिंदम्बरम की अग्रिम जमानत की याचिका दायर हुयी होगी तो यह कारण भी विस्तार से ईडी के समक्ष रखे भीं होंगे। मैंने एक कानूनी स्थिति बतायी है। घोटाले के केस के बारे में मुझे बहुत अधिक पता नही है।

यह भी एक अज़ीब संयोग है कि एक शख्श, जो कभी अदालत के  आदेश से सूबाबदर, तड़ीपार, और हत्या के आरोप में फंस कर भी, वक़्त बदला तो आज, गृहमंत्री बन गया है। और एक गृहमंत्री रहा व्यक्ति अब घोटाले में फरार हो कानून से बचने की आज हजार जुगत लगा रहा है। पर कानून की गिरफ्त से वह भी नहीं बच पाया, और बच यह भी नहीं पायेगा। यही नियति है । वक़्त वक़्त की बात है।  लोकतंत्र के इस अंदाज का भी जवाब नहीं !!

© विजय शंकर सिंह

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