Sunday 18 August 2019

पूर्व नौकरशाहों ने सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 के बारे में याचिका दायर की / विजय शंकर सिंह

5 अगस्त को सरकार ने अनुच्छेद 370 के कुछ अंश को संशोधित किया है जिससे इस अनुच्छेद के अंतर्गत जम्मूकश्मीर को प्राप्त विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हो गया है। जम्मूकश्मीर राज्य पुनर्गठन बिल 2019 के द्वारा इस राज्य को लदाख और जम्मूकश्मीर,  दो केंद्र शासित क्षेत्रो में बांट दिया गया है। सरकार के इस कदम पर अलग अलग दृष्टिकोण से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। संविधान संशोधन, संसद के अधिकार क्षेत्र में है, इस पर कोई विवाद नहीं है, पर इस संशोधन हेतु, जिन प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिये, उसका पालन नहीं किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में अब तक कुल सात याचिकाएं दायर की गयी हैं उनमे यही कानूनी विंदु उठाया गया है कि, क्या अनुच्छेद 370 के निराकरण के लिये जिन संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिये था, उन्हें किया गया है या नही।

सबसे पहली याचिका मोहनलाल शर्मा एडवोकेट ने दायर किया था पर अदालत ने उस याचिका की ड्राफ्टिंग को लेकर सवाल उठाए है।  एक याचिका नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भी दायर की है। सबसे महत्वपूर्ण याचिका जम्मूकश्मीर से जुड़े कुछ पूर्व सैन्य अधिकारियों और नौकरशाहों ने दायर की है। यह याचिका, 2010 - 11 में भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा गठित वार्ता दल की सदस्य राधा कुमार, जम्मूकश्मीर कैडर के आईएएस हिन्दाल हैदर तैयबजी, डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के डिप्टी डायरेक्टर और रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल कपिल काक, पंजाब कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी अमिताभ पांडेय, केरल कैडर के आईएएस अधिकारी और पूर्व गृह सचिव गृह सचिव गोपाल पिल्लई ने दायर की है।

इस याचिका में याचिकाकर्ता ने यह दलील दी है कि,
● जम्मू कश्मीर, भारत का एक अभिन्न अंग है और इसे संविधान के अनुच्छेद 370 के अंतर्गत विशेष दर्जा प्राप्त है। याचिका के अनुसार यह प्राविधान, केवल राष्ट्रपति के एक आदेश से कार्यरूप में नहीं रह जाएगा। लेकिन अनु 370 (3) के अंगर्गत दिये गए प्राविधान के अनुसार, जब तक जम्मूकश्मीर की राज्य संविधान सभा ऐसी अनुमति ना दे तब तक इसमे कोई भी संशोधन संभव नहीं है।

● संविधान सभा, विधानसभा से अलग होती है। लेकिन यदि यह मान भी लिया जाय कि विधानसभा, संविधान सभा का स्थान ले सकती है, तो विधानसभा का तात्पर्य चुने हुये विधायको के समूह से है जो विधानसभा का गठन करते हैं। यह तभी संभव है जब विधानसभा, संविधान सम्मत चुनाव के बाद गठित हो। फिलहाल विधानसभा भंग है और राज्य में राज्यपाल का शासन है।

● अभी हाल ही में जम्मूकश्मीर राज्य में जब लोकसभा और पंचायत के चुनाव हुये तो विधानसभा का भी चुनाव करा कर नवगठित विधानसभा में यह प्रस्ताव रखा जा सकता था, और आज जम्मूकश्मीर राज्य के लिये इस अनुच्छेद के निराकरण के बाद जो लाभ गिनाये जा रहे हैं उन लाभों को गिना कर जम्मूकश्मीर के विधायकों को भी आश्वस्त किया जा सकता था । लेकिन ऐसा नहीं किया गया । क्यों ?

● भारत सरकार का यह कदम, बिना राज्य की जनता की राय, उस राज्य की विधानसभा से जाने बगैर उठाया गया है जो लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।

इसके अतिरिक्त, याचिका में इसे संघीय ढांचे पर भी आघात बताते हुये, संघवाद के विपरीत बताया गया है।

● राष्ट्रपति के आदेश ने अनुच्छेद 370 (1)(D) को गलत तरह से समाप्त करने के लिय अनुच्छेद 370 (3) को संशोधित कर दिया है। अनुच्छेद 370(1)(d) पर विचार किया जाय तो यह निष्कर्ष निकलता है कि यह अनुच्छेद, संविधान की सभी अनुच्छेदों के संदर्भ में राष्ट्रपति को कोई अधिकार नहीं देता है, बल्कि केवल जम्मूकश्मीर के संदर्भ में ही अधिकार देता है।

● फिर भी यदि यह मान भी लिया जाय कि अनुच्छेद 370(1)(d) के अंतर्गत दिया गया यह आदेश सही है तो भी यह इस आधार पर असंवैधानिक है कि, जम्मूकश्मीर राज्य की विधानसभा को जम्मूकश्मीर के संविधान के अंतर्गत कोई अधिकार ही नहीं है कि वह भारत के संविधान के किसी अंश को संशोधित कर दे। यह आदेश वही काम घुमाफिरा कर करता है, जो सीधे भी नहीं किया जा सकता है।

● संविधान का अनुच्छेद 367, किसी प्राविधान की व्याख्या के संदर्भ में है। अनुच्छेद 370 में वर्णित संविधान सभा और विधानसभा दोनों अलग अलग चीजें हैं। संविधान सभा ने जम्मूकश्मीर का संविधान बनाया था और विधानसभा राज्य की नियमित विधायिका थी। इसलिए अनुच्छेद 367 के आधार पर 370 की व्याख्या करके उसमें फेरबदल करना, संविधान के साथ धोखा है।
ऐसा याचिकाकर्ता का मानना है।

उपरोक्त कानूूूनी विन्दुओं के आधार पर याचिकाकर्ता ने जम्मूकश्मीर राज्य पुनर्गठन बिल 2019 को असंवैधानिक बताया है और अदालत से इसे रद्द करने का अनुरोध किया है।
संविधान में अनुच्छेद 370 है क्या इसे आप यहां पढ़ सकते हैं।

(क) अनुच्छेद 238 के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में लागू नहीं होंगे ;-
(ख) उक्त राज्य के लिए विधि बनाने की संसद की शक्ति,---
(i) संघ सूची और समवर्ती सूची के उन विषयों तक सीमित होगी जिनको राष्ट्रपति, उस राज्य की सरकार से परामर्श करके, उन विषयों के तत्स्थानी विषय घोषित कर दे जो भारत डोमिनियन में उस राज्य के अधिमिलन को शासित करने वाले अधिमिलन पत्र में ऐसे विषयों के रूप में विनिर्दिष्ट हैं जिनके संबंध में डोमिनियन विधान-मंडल उस राज्य के लिए विधि बना सकता है; और-
(ii) उक्त सूचियों के उन अन्य विषयों तक सीमित होगी जो राष्ट्रपति, उस राज्य की सरकार की सहमति से, आदेश द्वारा, विनिर्दिष्ट करे। -
स्पष्टीकरण--इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, उस राज्य की सरकार से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे राष्ट्रपति से, जम्मू-कश्मीर के महाराजा की 5 मार्च, 1948 की उद्घोषणा के अधीन तत्समय पदस्थ मंत्रि-परिषद की सलाह पर कार्य करने वाले जम्मू-कश्मीर के महाराजा के रूप में तत्समय मान्यता प्राप्त थी;-
(ग) अनुच्छेद 1 और इस अनुच्छेद के उपबंध उस राज्य के संबंध में लागू होंगे;-
(घ) इस संविधान के ऐसे अन्य उपबंध ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे, उस राज्य के संबंध में लागू होंगे:-
परंतु ऐसा कोई आदेश जो उपखंड (ख) के पैरा (i) में निर्दिष्ट राज्य के अधिमिलन पत्र में विनिर्दिष्ट विषयों से संबंधित है, उस राज्य की सरकार से परामर्श करके ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं:
परंतु यह और कि ऐसा कोई आदेश जो अंतिम पूर्ववर्ती परंतुक में निर्दिष्ट विषयों से भिन्न विषयों से संबंधित है, उस सरकार की सहमति से ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं।

(2) यदि खंड (1) के उपखंड (ख) के पैरा (i) में या उस खंड के उपखंड (घ) के दूसरे परंतुक में निर्दिष्ट उस राज्य की सरकार की सहमति, उस राज्य का संविधान बनाने के प्रयोजन के लिए संविधान सभा के बुलाए जाने से पहले दी जाए तो उसे ऐसी संविधान सभा के समक्ष ऐसे विनिश्चय के लिए रखा जाएगा जो वह उस पर विचार करे।

(3) इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा कि यह अनुच्छेद प्रवर्तन में नहीं रहेगा या ऐसे अपवादों और उपांतरणों सहित ही और ऐसी तारीख से, प्रवर्तन में रहेगा, जो वह विनिर्दिष्ट करे:
परंतु राष्ट्रपति द्वारा ऐसी अधिसूचना निकाले जाने से पहले खंड (2) में निर्दिष्ट उस राज्य की संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक होगी।

* इस अनुच्छेद द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति ने जम्मू और कश्मीर राज्य की संविधान सभा की सिफारिश पर यह घोषणा की कि 17 नवंबर, 1952 से उक्त अनुच्छेद 370 इस उपांतरण के साथ प्रवर्तनीय होगा कि उसके खंड (1) में स्पष्टीकरण के स्थान पर निम्नलिखित स्पष्टीकरण रख दिया गया है, अर्थात्: -- स्पष्टीकरण-- इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए राज्य की सरकार से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे राज्य की विधान सभा की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने राज्य की तत्समय पदारूढ़ मंत्रि-परिषद की सलाह पर कार्य करने वाले जम्मू-कश्मीर के सदरे रियासत। के रूप में मान्यता प्रदान की हो। अब राज्यपाल (विधि मंत्रालय आदेश सं. आ. 44, दिनांक 15 नवंबर, 1952)।

सुप्रीम कोर्ट में दायर यह सातवी याचिका है जो इस बिल के संदर्भ में संविधान के प्राविधानों के पालन न करने के पक्ष में तर्क दे रही है। अभी इन याचिकाओं पर सुनवायी शुरू नहीं हुयी है।

© विजय शंकर सिंह

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