Tuesday 6 August 2019

जम्मू कश्मीर - अनु 370 और धारा 35 A हटने और केंद्र शासित राज्य बनने के बाद / विजय शंकर सिंह

उम्मीद है, सत्तर साल से बनी हुई कश्मीर समस्या अब हल हो गयी है। अब आतंकी घटनाओं में कमी आनी शुरू हो जाएगी। अब वहां दो राज्य हो गए हैं, जम्मू कश्मीर और लदाख। अब वहां गवर्नर नहीं लेफ्टिनेंट गवर्नर रहेंगे। यह पद अधिकतर नौकरशाहों और पूर्व जनरलों को ही मिलते रहे हैं। वहां की विधानसभा दिल्ली और पुड्डुचेरी की तरह रहेंगी। लदाख की स्थिति चंडीगढ़ की तरह होगी।

कश्मीर के लिये यह ऐतिहासिक क्षण है। कश्मीरी युवा अब मुख्य धारा में आ जाएंगे। देश मे जश्न का माहौल है। कश्मीरी युवकों को भी इस जश्न में शामिल कीजिये। अब उनकी तकदीर बदलेगी । कश्मीर का विकास होगा। उनकी तरक़्क़ी होगी। पूरा कश्मीर इस जश्न में शामिल हो। थोपी हुयी शांति डराती है। अब उन्हें उस डर से निजात मिली है। उन्हें भी सत्तर साल बाद मिली आज़ादी के इस मुक्त पवन में झूमने देना चाहिये। जब कश्मीर में सुरक्षा प्रबंध सामान्य हों और कश्मीरी युवा सरकार के इन कदमो के सनर्थन में उठ खड़े हों तो तभी इन कदमों की असल परीक्षा होगी। फिलहाल तो कश्मीर में अंधेरा तथा सन्नाटा पसरा है और शेष देश मे दीवाली और जश्न का माहौल है। उत्सव और खामोशी का यह अलगाव ही कश्मीर समस्या की प्रतीकात्मकता है।

अभी वहां भारी सुरक्षा बल और सेना का बंदोबस्त है। इतनी अधिक सुरक्षा बराबर नहीं रह सकती है । यह धीरे धीरे कम होगी। कब से कम होगी यह तो वहां के हालात पर निर्भर करता है। जब सुरक्षा बल सामान्यता की ओर लौटेंगे तभी यह कहा जा सकेगा कि इस क़दम का आतंकवाद और कानून व्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा।

संविधान के जानकार सरकार के इस कदम को कानूनी नज़रिए से देख रहे हैं। संविधान में कोई भी संशोधन, जो उसके मूल ढांचे को भंग नहीं करता हो, करने का अधिकार संसद को है। इस संशोधन को कैसे किया जाय, इसकी प्रक्रिया भी संविधान में दी गई है, और अब तक डेढ़ सौ से अधिक संशोधन किये भी जा चुके हैं। अब 370 और 35 A के खत्म करने की प्रक्रिया क्या संविधान में प्रदत्त संविधान संशोधन की प्रक्रिया के अनुसार है या नहीं यह भी कानून के जानकारों के बीच चर्चा का विंदु है।

हर कानून की न्यायिक समीक्षा हो सकती है। यहां तक कि शेड्यूल नौ में भी जो विषय हैं, उनकी भी न्यायिक समीक्षा हो सकती है, ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में कहा है। यह मसला सुप्रीम कोर्ट में ज़रूर जाएगा। वहां इसकी कानूनी समीक्षा होगी और तभी हम जान सकेंगे कि यह कार्यवाही संवैधानिक मान्यताओं के विपरीत है या अनुसार।

फिलहाल, संविधान विशेषज्ञ  सुभाष कश्यप के अनुसार,
" प्रस्ताव में अनुच्छेद 370 को पूरी तरह से नहीं हटाया गया है. उनका कहना है कि अनुच्छेद 370 तीन भागों में बंटा हुआ है. जम्मू-कश्मीर के बारे में अस्थाई प्रावधान है जिसको या तो बदला जा सकता है या फिर हटाया जा सकता है. अमित शाह के बयान के मुताबिक 370(1) बाकायदा कायम है सिर्फ 370 (2) और (3) को हटाया गया है. 370(1) में प्रावधान के मुताबिक जम्मू और कश्मीर की सरकार से सलाह करके राष्ट्रपति आदेश द्वारा संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को जम्मू और कश्मीर पर लागू कर सकते हैं. 370(3) में प्रावधान था कि 370 को बदलने के लिए जम्मू और कश्मीर संविधान सभा की सहमति चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि 35A के बारे में यह तय नहीं है कि वह खुद खत्म हो जाएगा या फिर उसके लिए संशोधन करना पड़ेगा.

विशेष दर्जा, नागरिकता का मुद्दा और कश्मीर में आतंकवाद, तीनों मुद्दे अलग अलग होते हुये भी एक दूसरे से जुड़े हुये हैं। 370 और 35 A तो अब खत्म हो गयी है और राज्य का स्वरूप भी बदल गया है, अब देखना है कि आतंकवाद पर इस बदलाव का क्या असर पड़ता है।

किसी भी राज्य का पुनर्गठन उस राज्य की विधानसभा से पारित होकर ही केंद्र सरकार के पास उस राज्य के पुनर्गठन के लिये जाता है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से कट कर जब उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ बना था तो यही प्रक्रिया अपनायी गई थी। यही प्रक्रिया आंध्र प्रदेश से कट कर नए राज्य तेलंगाना में भी अपनायी गयी थी। वहां भी तेलंगाना बिल आंध्र प्रदेश विधानसभा ने पास किया था।

पर जम्मू कश्मीर राज्य के पुनर्गठन के समय जम्मू कश्मीर की विधानसभा भंग है अतः वहाँ से इस तरह का प्रस्ताव आ भी नहीं सकता है। संसद को नए राज्य बनाने, पुराने राज्य तोड़ने, या केंद शासित राज्य बनाने और केंद्र शासित राज्य को पूर्ण राज्य बनाने का अधिकार है, पर यह सब एक विधिक प्रक्रिया के अनुसार जो संविधान में दिया गया है के ही अनुसार किया जा सकता है। राज्यपाल, सरकार तो है पर वह जनता का प्रतिनिधि नहीं है। वह केंद्र का प्रतिनिधि है। राज्यपाल ने ही 35 A के मामले में जिसकी सुनवायी सुप्रीम कोर्ट में चल रही है यह कहा है कि। चुनी हुयी सरकार ही इसे हटाने या बनाये रखने में कोई निर्णय ले सकती है।  जम्मू कश्मीर राज्य के पुनर्गठन के मामले में संविधान के निर्धारित प्रक्रिया की अनदेखी की गयी है। ऐसा संविधान के जानकारों का कहना है।

क्या संकल्प में जम्मू कश्मीर और लदाख जो दोनों नए नए केंद्र शासित राज्य बने हैं में जो क्षेत्र अधिसूचित राष्ट्रपति द्वारा किये गए हैं, में, अब पाक के कब्जे वाले कश्मीर और अक्साई चीन को इन दोनों नए केंद शासित राज्यों में जोड़ा गया है या नहीं ?

अगर ऐसा नहीं किया गया है तो उनके साथ तुरन्त पाक अधिकृत कश्मीर और चीन द्वारा कब्ज़ा किये गये अक्साई चीन को भी जम्मू कश्मीर या लदाख के नए केंद्र शासित राज्य में, जहां भी भौगोलिक स्थित सहायक हो, जोड़ देना चाहिये। यह भी लिख देना चाहिये कि ये इलाके, पाकिस्तान और चीन द्वारा अनधिकृत रूप से कब्ज़ा किये गये हैं।

जब राज्य का विलय हुआ था तो पूरा राज्य एक था, उसी का कुछ हिस्सा लगभग एक तिहाई पाक ने अनधिकृत रूप से कबायलियों द्वारा 1947 - 48 में, कब्ज़ा कर लिया था और वह सीमा लाइन ऑफ कंट्रोल बनी है। यह लाइन ऑफ कंट्रोल एक अस्थायी बैरियर है जिसके पार हमारा इलाका है पर दूसरों ने जबरन कब्ज़ा कर रखा है। एलओसी, अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं है। एलओसी शांति बनाए रखने और यथास्थिति बनी रहे, इसलिए है।

आज भी पीओके के लिये जम्मू कश्मीर विधानसभा में सीटें हैं पर वहां चुनाव भारत नहीं करा सकता, है इसलिए वे रिक्त रहती हैं।

अब अगर हम उनका उल्लेख इस नए संकल्प में नहीं करेंगे तो, यह भ्रम बना रह सकता है कि हम उस अवैध कब्जे पर मौन हैं। पाकिस्तान की यह पुरानी चाल है कि एलओसी, को लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल भारत स्वीकार कर ले। ऐसा करते ही एलओसी अंतरराष्ट्रीय सीमा में बदल जाएगी और पीओके पाकिस्तान का भाग रहे या न रहे उस पर हमारा दावा कमज़ोर पड़ जायेगा।

अगर आप को जनरल परवेज़ मुशर्रफ और अटल बिहारी वाजपेयी के बीच होने वाली आगरा शिखर वार्ता याद हो तो यह भी याद दिला दूँ कि वह वार्ता अचानक ही रात में खत्म हो गई और जनरल मुशर्रफ आगरा से सीधे इस्लामाबाद चले गए थे। उनके इस अचानक रुखसती के कई कारण और अफवाहें तब सक्रिय हुयी थीं। उनमे एक यह भी थी कि हम एलोसी को एलएसी में बदलने के लिये राजी नहीँ थे।

हालांकि संसद में गृह मंत्री ने यह कहा है कि जब वे जम्मू कश्मीर की बात कहते हैं तो पीओके और अक्साई चीन उसमे शामिल है। यह वे सही कह रहे हैं। जब हम या वे या कोई भी जम्मू कश्मीर की बात कहते हैं तो उसमे पीओके शामिल रहता है। लेकिन हम राज्य की बात करते थे। कल से दो केंद्र शासित राज्यों की बात अब हो रही है। इसमे यह स्पष्ट होना चाहिये कि पीओके और अक्साई चीन किस यूटी के इलाके में हैं।

पर अब पुराना, जम्मू कश्मीर राज्य नहीं रहा । केंद्र के अधीन दो केंद्र शासित राज्यो में बंट गया। अब इस नए केंद्र शासित राज्य का जो नक़्शा जारी हो या भूभाग नोटिफाई हो, उसमे इन कब्ज़ियाये गये इलाके का उल्लेख होना चाहिये।

कश्मीर की जनता का सरकार के इस फैसले के साथ आना ही इस फैसले की असल समीक्षा होगी।जब तक कश्मीर की जनता सरकार के इस नए फैसले का स्वागत नहीं करती है, और वह इस जश्न में शामिल नहीं होती है तब तक यह उत्सव एक विजेता के उत्सव की तरह है। एकतरफा जश्न तो विजेता मनाते हैं। केंद्रीय मंत्री कहते हैं कश्मीर में लोग में खुश हैं, सरकार के इस फैसले पर। लोग इस फैसले पर खुश हैं तो वह खुशी दिखनी भी चाहिये।

जब तक कश्मीर में सुरक्षा व्यवस्था सामान्य नही होती है और जब सारी बंदिशें, नेट, फोन, और संचार माध्यम पहले की तरह खुल नहीं जाते हैं तब तक यह नहीं कहा जा सकता है कि यह कदम अभूतपूर्व है। कश्मीर की जनता को बिना विश्वास में लिये, उन्हें बिना इन कदमों के लाभ हानि समझाए  कोई भी कदम वैसे ही बैकफायर कर जाएगा जैसे नोटबंदी में कर गया है। अब सरकार का कोई भी आदमी नोटबंदी के पक्ष में विरुदावली नहीं गाता है।

कश्मीर की भौगोलिक स्थिति बेहद रणनीतिक है। अमेरिका, चीन दोनों के सामरिक महत्वाकांक्षा को यह उत्प्रेरित करता है। सरकार कश्मीर की जनता, नेतृत्व और वहां के लोगों को अगर दरकिनार करके कोई कदम उठाती है तो वह आत्मघाती होगा। कश्मीर कुछ महीनों, कुछ सालों के लिये पुलिस की घेरेबंदी में तो रह सकता है पर सदैव के लिये नहीं।

अब सरकार ऐसे कदम उठाए जिससे वहां की जनता खुद को अलग थलग न समझे। जिस तरह से पूरे राज्य में कर्फ्यू है, इस माहौल में अभी यह नहीं कहा जा सकता है कि वहां की जनता सरकार के इस फैसले के साथ है। सरकार का एक दायित्व यह भी है कि वह जनता को जीने के लिये सामान्य स्थिति उपलब्ध कराए। कश्मीरी जनता के साथ शेष भारत का फिलहाल संवाद बंद है। यह संवादहीनता की स्थिति खत्म हो और कश्मीर में लोग सामान्य स्थिति में अपना अपना काम करें।

इस जश्न के माहौल में अगर कश्मीर की सुंदरियां और चिनार से सजे भूखंड जिनको दिख रहे हैं और पिछले एक हफ्ते से कर्फ्यू में फंसे कश्मीरी जन की व्यथाएँ जिनको नहीं दिख रही हैं तो यह इकतरफा दर्शन भी एक प्रकार का अलगाववाद ही है। यह जश्न से अधिक कश्मीर की जनता को बांहे फैला कर समेट लेने का अवसर है, न कि विजेता की तरह उन्मादित उत्सव मनाने का।

© विजय शंकर सिंह

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