(चित्र: करुणानिधि लिखित फ़िल्म ‘राजकुमारी’ में एम जी आर और अभिनेत्री राजकुमारी)
मद्रास की राजनीति भी फ़िल्मी थी। हम एक बार सिलसिलेवार याद करें। ब्राह्मण-विरोधी पेरियार और आचार्य राजगोपालाचारी की वह दोस्ती, जब पेरियार गांधी के पथ पर चले थे। खादी पहन घूमते थे।
मगर, एक दिन वह इस प्रण लेकर कांग्रेस से निकले कि उसका अंत कर देंगे। उन्होंने युवा अन्नादुरइ को अपना शिष्य बनाया और ब्राह्मणवाद के साथ-साथ कांग्रेस-विरोध में भी मज़बूती से खड़े रहे। राजाजी की सरकार के नाकों दम कर दिया।
वही आचार्य राजागोपालाचारी जब देश के गवर्नर जनरल बन गए, तो उन्होंने पेरियार को विवाह का सुझाव दिया ताकि उत्तराधिकार सुरक्षित रहे। इस कारण पेरियार के पट-शिष्य अन्नादुरइ उनसे अलग हो गए। यह राजाजी का मास्टर-स्ट्रोक कहा जा सकता था।
लेकिन, अगली ही बाज़ी में पेरियार राजाजी के लिए ऐसी मुसीबत बने कि उनको दूसरा मुख्यमंत्री काल बीच में ही छोड़ना पड़ा। राजाजी के हटते ही, पेरियार कांग्रेस-विरोध का अटल प्रण त्याग कर कामराज का समर्थन करने लगे। कांचीपुरम में उन्होंने अन्नादुरइ के ख़िलाफ़ एक ब्राह्मण कांग्रेस प्रत्याशी का चुनाव प्रचार किया!
अपने इन द्वंद्वों के बावजूद निजी जीवन में पेरियार और आचार्य आजीवन मित्र रहे। अन्नादुरइ भी पेरियार से मनमुटाव के बावजूद उनकी खड़ाऊँ लेकर ही दल चलाते रहे। उनकी ही तरह ब्राह्मण-विरोध, हिंदी-विरोध और द्रविड़नाडु का झंडा उठाए रहे। यह कैसा रिश्ता था?
अब इस रिश्ते के ‘फ़ेज-2’ में चलते हैं।
एक संघर्षशील सहायक अभिनेता एम जी रामचंद्रन को कुछ अच्छे काम की तलाश थी। 1946 में उनको एक मित्र नारायणस्वामी ने कहा, “अन्ना आज-कल फ़िल्म बनाने की सोच रहे हैं। तुम उनसे क्यों नहीं मिलते?”
“कौन? अन्नादुरइ? ये लोग राजनेता हैं। अपना एजेंडा चलाते हैं।”
तभी एक 22 वर्षीय युवक बीच में बोले, “इसमें बुराई क्या है? हमें सिर्फ़ वीर-रस वाले ऐतिहासिक नाटक ही करने हैं, या समाज भी बदलना है?”
“आप? आपको कभी यहाँ देखा नहीं।”, रामचंद्रन ने पूछा
नारायणस्वामी ने कहा, “यह करुणानिधि है। बहुत प्रतिभाशाली लेखक है। पंद्रह साल की उम्र से नाटक लिख रहा है। अन्ना का फैन है।”
“करुणानिधि! तुम मेरे लिए भी कोई कहानी सुझाओ। इतना बता दूँ कि मैं अन्ना या पेरियार का नहीं, अभी तो मैं गांधी का फैन हूँ।”
“हा हा! कहानी तो समझो यहीं बन गयी। एक सफ़ेद कुर्ते वाला आदमी जब एक काले कुर्ते वाले आदमी की कहानी का नायक बनेगा।”
यह बेमेल जोड़ी कोयम्बतूर के एक मकान में बारह रुपए भाड़े देकर एक ही छत के नीचे रहे। करुणानिधि ने अपने एक संस्मरण में कहा है,
“वह आस्तिक था। गांधीवादी था। मुझसे सात साल बड़ा था। स्वदेशी कपड़े पहनता, और गले में कमल के फूल की माला डालता।
मैं तो बचपन से ही पेरियार के विचारों से बड़ा हुआ था। मैं उसे अन्ना के भाषण सुनाने ले जाता, और वह मुझे गांधी का लिखा पढ़ाता। हमारे मध्य कई दोस्ताना विवाद होते, लेकिन शायद अंत में मैं ही जीता। वह हमारे द्रविड़ कड़गम से जुड़ गया।”
करुणानिधि से जुड़ते ही एम जी रामचंद्रन का फ़िल्मी करियर ऊपर चढ़ता गया। करुणानिधि की भाव-प्रधान कहानियाँ और एमजीआर के दमदार अभिनय ने तमिल फ़िल्मों में जान ला दी। रात भर बैठ कर करुणानिधि कहानी लिखते, और सुबह एमजीआर को पढ़ा कर, उनके सुझाव लेकर ही सोने जाते।
फ़िल्मी दुनिया से बाहर करुणानिधि एक क्रांतिकारी थे। वह काले कुर्ते पहन कर आंदोलन करते, जेल भी जाते। एमजीआर अपने फ़िल्मी दुनिया में रहते, लेकिन दोस्ती खूब निभाते। 1953 में जब करुणानिधि जेल से छूट कर आए, तो एगमोर स्टेशन पर एमजीआर उन्हें लगभग कंधे पर बिठा कर लाए। जबकि, उस समय तक जाने-माने अभिनेता बन चुके थे। उम्र में बड़े होने के बावजूद वह करुणानिधि को आदर से औरों की तरह ‘कलइनार’ (कलाविद्) ही बुलाते।
यह रिश्ता मणिरत्नम ने अपनी फ़िल्म ‘इरुवर’ में अधिक नाटकीयता से दिखाया है, जहाँ श्वेत वस्त्र में अभिनेता मोहनलाल और काले वस्त्र में अभिनेता प्रकाश राज इनके पात्र निभाते हैं। ऐश्वर्या राय जयललिता के किरदार में हैं।
क्या यह फ़िल्मी जोड़ी तमिल राजनीति का रुख सदा के लिए मोड़ देगी? कांग्रेस को सदा के लिए मद्रास से रिटायर कर देगी?
एक कुशल मुख्यमंत्री कामराज और बूढ़े शेर पेरियार की अजेय जोड़ी को हराना तो असंभव था। प्रतीक्षा उस मौके की करनी थी जब ये स्तंभ स्वयं ही समय के थपेड़ों से गिर जाएँ। उसके बाद क्लाइमैक्स में ये दो यार भी अलग हो जाएँ।
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
दक्षिण भारत का इतिहास - तीन (6)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/02/6.html
#vss
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