Monday 14 February 2022

प्रवीण झा - दक्षिण भारत का इतिहास - तीन (17)


(चित्र: रुमाल लिए जानकी, सर के पास जयललिता)

राजाओं के साथ समस्या होती है कि उनके बाद कौन? यह लोकतंत्र में होकर भी वंश परंपरा से चलती है। 

एन टी रामाराव के उत्तराधिकारी उनके दामाद चंद्रबाबू नायडु बने, भले ही लड़ कर बने। लेकिन, एमजीआर तीन विवाहों के बाद भी नि:संतान थे। वह अपने आखिरी पाँच वर्ष बीमार रहे, लेकिन उत्तराधिकारी नहीं चुना। माना जाता है कि वह अपने बाद दल को खत्म कर करुणानिधि से विलय चाहते थे। दो उदाहरण देता हूँ। 

एक बार एमजीआर ने अपने सहयोगी कलंडवेलु को सिर्फ इसलिए थप्पड़ मार दिया था कि उन्होंने करुणानिधि को नाम लेकर संबोधित किया था। 

उन्होंने कहा, “तुम्हारी औकात क्या है? वह आज भी मेरे थलैवार (नेता) हैं। उन्हें कलइनार कहो।”

इसी तरह एक दफ़े जेप्पियार के साथ वह जीप में बैठ कर जा रहे थे। जेप्पियार ने करुणानिधि को गाली दे दी। एमजीआर ने जीप रुकवायी, और वहीं वीराने में उन्हें उतारते हुए कहा, “कलइनार के लिए ऐसे शब्द कहने की हिम्मत कैसे हुई? अब पैदल मद्रास पहुँचो।”

खैर, एमजीआर तो दिसंबर, 1987 में चल बसे। उनकी लाश अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि सत्ता-संघर्ष शुरू हो गया। 

उनकी 62 वर्षीय पत्नी जानकी ने 44 वर्ष उनके साथ फ़िल्मों में कार्य किया था। वहीं, 39 वर्षीय जयललिता जयराम ने उनके साथ आखिरी तेईस फ़िल्में की थी, और अविवाहित रही। अफ़सरों के लिए उनका कोड नाम J1 और J2 था। दोनों का खूब दबदबा था। 

तमिलनाडु में जाति की बात भी करनी ही होगी। एमजीआर स्वयं श्रीलंकाई मलयाली मेनन (नायर की उपजाति) परिवार से थे। उनकी पत्नी जानकी केरल की अय्यर ब्राह्मण (शंकराचार्य अद्वैत पंथ) थी, जबकि जयललिता एक तमिल आयंगार (वैष्णव) ब्राह्मण थी। दोनों एक दूसरे से नफ़रत करते थे। 

एमजीआर की मृत्यु की खबर सुनते ही जयललिता भागी हुई आयी, मगर जानकी ने उन्हें अंदर आने से मना कर दिया। मगर जयललिता लाइमलाइट लेना खूब जानती थी। जैसे ही एमजीआर की शव-यात्रा निकलने के लिए आयी, जयललिता एक अच्छी काले बॉर्डर की सफेद साड़ी में उनके सर के पास बैठ गयी। जब भी कैमरा उनके चेहरे पर आता, जयललिता उनका सर पोछने लगती। बूढ़ी जानकी एक साधारण साड़ी में उनके किनारे बैठ कर रुमाल लिए रो रही थी, तो उन पर ख़ास फोकस नहीं था। 

उसके बाद जब सेना तोपों से सलामी देने आए, तो जयललिता ऊपर चढ़ गयी, और जनता को हाथ दिखाने लगी। उन्हें पहले सेना के अधिकारियों ने रोका। उसके बाद जानकी के एक भतीजे और छुटभैये ऐक्टर दीपन ने जयललिता को धक्का देकर नीचे गिरा दिया।

यह खेल अभी और भी घिनौना होना था। दल दो भागों में विभक्त होने लगा। उस समय कार्यकारी मुख्यमंत्री नदनचेजियन थे। वही, जिनको पहले धकिया कर करुणानिधि मुख्यमंत्री बने थे। अब वह मौका हाथ से जाने देना नहीं चाहते थे। उन्होंने जानकी के ख़िलाफ़ मोर्चा तैयार किया, मगर उन्हें लगा कि यह काम अब जयललिता को ही सौंपा जाए।

जयललिता अपने बंगले पर समर्थक विधायकों का दरबार आयोजित करने लगी। यह शुरुआत थी उनके ‘अम्मा’ बनने की। उन्होंने एक पाँच सितारा होटल में समर्थकों के रहने का इंतज़ाम कराया। जानकी ने विधायकों को तीन सितारा होटल में रखा था, तो कुछ विधायक यूँ ही खिसक कर जयललिता की ओर आ गए। 

28 जनवरी, 1988 को जानकी को विश्वास-मत सिद्ध करना था। उस दिन जयललिता के समर्थकों ने माइक तोड़ कर, पेपरवेट और कुर्सी उठा कर फेंकना शुरू किया। दोनों गुटों में खूब लात-मुक्के चले। आखिर पुलिस को आकर लाठीचार्ज करना पड़ा। 

ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ कि विधानसभा में दंगे के कारण राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। सरकार बर्खास्त कर दी गयी। 

एक साल बाद जब चुनाव हुआ, एम करुणानिधि ने इस दो ‘J’ में बँटे हुए AIADMK पर आसान जीत हासिल की। एमजीआर के कलइनार पुन: मुख्यमंत्री बने, लेकिन अपने दल में ऐसी मुर्ग-लड़ाई तो एमजीआर ने भी नहीं सोची होगी।

सोचा तो यह भी नहीं होगा कि इस एक वर्ष में उनका ‘छोटा भाई’ प्रभाकरण भारत और राजीव गांधी का दुश्मन बन जाएगा। या यह कि विश्वनाथ प्रताप सिंह नामक एक नया ‘मसीहा’ प्रधानमंत्री की कुर्सी की ओर बढ़ रहा होगा। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

दक्षिण भारत का इतिहास - तीन (16)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/02/16.html
#vss 

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