Wednesday 2 February 2022

प्रवीण झा - दक्षिण भारत का इतिहास - तीन (6)

एक दिन मुख्यमंत्री कामराज चेरन्महादेवी स्थान पर धान के खेतों से गुजर रहे थे, तो देखा कि वहाँ कुछ नंग-धड़ंग बच्चे घूम रहे हैं। उन्होंने पूछा कि इन्हें विद्यालय क्यों नहीं भेजते। जवाब मिला कि यहाँ दोपहर को जमींदार मुफ्त खाने देते हैं, इस कारण बच्चों को भी ले आते हैं। कार्यालय लौट कर कामराज ने ऐसी स्कीम बनाने को कहा, कि ज़रूरतमंद बच्चों को दोपहर का भोजन स्कूल में मिल जाए। बाद में ऐसी ही स्कीम भारत में ‘मिड डे मील स्कीम’ नाम से लोकप्रिय हुई। भले उसे ‘कामराज स्कीम’ नाम नहीं मिला। 

स्वयं पिता के देहांत के कारण छठी कक्षा में स्कूल छोड़ देने वाले कामराज यह चाहते थे कि मद्रास में उनकी तरह कोई बच्चा न हो। उन्होंने बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई की ज़िम्मेदारी राज्य द्वारा उठाए जाने की ठान ली।

वह तमिल भाषा को भी एक हिंदी-विरोधी झंडा नहीं, एक वैज्ञानिक तर्क की तरह देख रहे थे। उन्हें लगा कि इन ग्रामीण, पिछड़े बच्चों को उनकी मातृभाषा में ही प्राथमिक शिक्षा दी जाए तो बेहतर समझेंगे। उन्होंने अपने शिक्षा मंत्री के माध्यम से अंग्रेज़ी किताबों के तमिल अनुवाद करवाने शुरू किए। 

कम पढ़े-लिखे होने के कारण कामराज की यह ख़ासियत थी कि वह समस्याओं के हल किताबों में नहीं ढूँढते थे। जमीन पर ढूँढते थे। वह बोलते बहुत कम, सुनते बहुत अधिक था। राजमोहन गांधी ने उनके विषय में लिखा है कि वह हर बात में एक टूक कहते- ‘पारकलाम’ (देखते हैं), और आगे बढ़ कर काम पर लग जाते। 

एक बार ग्रामीण पिछड़ी बस्ती में बच्चियों ने कहा कि वे स्कूल नहीं जाती, क्योंकि पहनने को पूरे कपड़े ही नहीं। उन्हें यह लगा कि स्कूल में अमीर-गरीब के मध्य कपड़ों का भी भेद है, और ख़ास कर लड़कियाँ इस कारण नहीं आती। उन्होंने सभी विद्यार्थियों के लिए एक यूनिफ़ॉर्म की घोषणा कर दी, और यथासंभव मुफ्त दिए गए। अब वेश-भूषा से कोई नहीं कह सकता था कि किसकी जाति क्या है, संपत्ति क्या है।

इन सबका नतीजा? 

पिछड़ी जातियों के बच्चे भारी मात्रा में सिर्फ़ इसलिए स्कूल आने लगे कि भोजन मिल जाएगा। मद्रास राज्य की साक्षरता जो पहले 7 प्रतिशत थी, कामराज के समय 37 प्रतिशत पहुँच गयी। प्राथमिक और उच्च विद्यालयों की संख्या दोगुनी हो गयी। पड़ोसी राज्य केरल की तरह मद्रास भी शिक्षित राज्य होने की ओर बढ़ते चला गया। 

मगर प्रश्न तो यह है कि कामराज के पास इतना धन आया कहाँ से कि बच्चों को मुफ्त भोजन मिले, कपड़े मिलें, स्कूल खुलें। समाजवाद की गाड़ी में तेल कौन डाल रहा था? प्रधानमंत्री नेहरू? उनके पास कहाँ से धन आया? 

धन तो होता है, उसके समुचित उपयोग और निवेश की बात है। कामराज ने मद्रास के निकट अवाडी में 1955 का कांग्रेस अधिवेशन आयोजित किया। यही वह बिंदु था, जहाँ से नेहरू और कामराज के मध्य बॉन्डिंग बढ़ी और कांग्रेस ने समाजवादी रुख अपनाना शुरू किया। 

नेहरू ने द्वितीय पंचवर्षीय योजना की घोषणा की। कामराज ने इसका पूरा लाभ उठाते हुए मद्रास में औद्योगिक क्रांति ला दी। 

त्रिचि में BHEL कंपनी के लिए जमीन तय कर दी गयी। पेरम्बूर में भारतीय रेल के कोच बनाने की फ़ैक्ट्री लग गयी। गुंडी और ऊटी में औद्योगिक केंद्र खुल गए। निजी कंपनियाँ जैसे अशोक लेलेंड, टी वी एस, सिम्पसन, इंडिया पिस्टन आदि स्थापित होते गए। पहले से चल रहे कपड़ा और चीनी मिलों की संख्या दुगुनी हो गयी। सीमेंट उत्पादन का तो केंद्र ही मद्रास राज्य बनता चला गया।

इस पूँजीवाद ने समाजवाद की गाड़ी चलायी। बच्चों को शिक्षा मिली। खेतों के लिए दर्जनों सिंचाई नहरें और बाँध बने। बड़े स्तर पर विद्युत उत्पादन शुरू हुई, घर-घर बिजली जाने लगी।

पेरियार भी तो यही चाहते थे कि विषमता घटे, पिछड़े पढ़ें, हर जाति के बच्चे एक साथ बढ़ें। इसके लिए आक्रामक रुख क्रांति के मायने से उचित कहा जा सकता है, किंतु समाजवाद का चक्र तब तक पूरा नहीं होता जब तक जमीन पर काम न हो। कामराज ने शोषितों के हाथ में डंडे-तलवार न देकर किताबें दी। 

पेरियार को भी कहना पड़ा, 

“इस प्रदेश में चोल, चेर और पाण्ड्य ने जो कार्य किया, वह मैं नहीं देख सका। मगर मुझे खुशी है कि जीते-जी मैंने कामराज का कार्य देख लिया।”

कामराज के कामों ने अन्नादुरइ का भी भला किया। उन्होंने इस बढ़ती शिक्षा और समानता का उपयोग किया। अखबारों से, पत्रिकाओं से, किताबों से द्रविड़ विचार गाँव-गाँव तक पहुँचने लगे। करुणानिधि की लिखी फ़िल्म ‘पराशक्ति’ एक बार फिर थिएटरों में चल पड़ी थी। गलियों के लड़के शिवाजी गणेशन की नकल उतारने लगे। अब लाइट्स, कैमरा, ऐक्शन के साथ मद्रास आगे बढ़ रहा था। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

दक्षिण भारत का इतिहास - तीन (5)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/02/5.html 
#vss

No comments:

Post a Comment