Monday, 7 February 2022

बलात्कारी राम रहीम की 21 दिन की फर्लो हरियाणा सरकार रद्द करे / विजय शंकर सिंह

डेरा सच्चा सौदा का गुरुमीत राम रहीम जो बलात्कार के आरोप में आजीवन कारावास की सज़ा भुगत रहा है, उसे हरियाणा सरकार ने 21 दिन का फर्लो (सज़ा के बीच छुट्टी) स्वीकृत की है। कहते हैं, राम रहीम का पंजाब में कुछ भागों पर असर है और वह चुनाव में अपने प्रभाव के इस्तेमाल के लिये जेल से 21 दिन के लिये निकाला गया है। 

अब फर्लो और पेरोल में क्या कानूनी अंतर होता है, उसे समझते हैं। 
● पैरोल और फर्लो दोनों सशर्त रिहाई हैं।
● छोटी अवधि के कारावास के मामले में पैरोल दी जा सकती है, जबकि लंबी अवधि के कारावास के मामले में फर्लो दी जाती है।  
● पैरोल की अवधि एक महीने तक होती है जबकि फर्लो के मामले में यह अधिकतम चौदह दिनों तक होती है।
● पैरोल संभागीय आयुक्त (डिविजनल कमिश्नर) द्वारा दी जाती है और फर्लो उप महानिरीक्षक कारागार द्वारा प्रदान की जाती है।
● पैरोल के लिए किसी विशेष कारण की आवश्यकता होती है, जबकि फरलो कारावास की एकरसता को तोड़ने के लिए होती है।
● कारावास की अवधि पैरोल की अवधि की गणना में शामिल नहीं होती है, जबकि यह फरलो में इसके विपरीत है।
● पैरोल कई बार दी जा सकती है जबकि फर्लो के मामले में एक सीमा तय होती है।
● चूँकि फर्लो किसी विशेष कारण से नहीं दिया जाता है, इसलिए इसे समाज के हित में अस्वीकार भी किया जा सकता है।

चुनाव के दौरान, सभी वांछित और अन्य अपराधी जो बाहर हैं, उन्हें चुन चुन कर एक अभियान चला कर जेल भेजा जाता है, ताकि, चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हो सके। पर यहां तो हरियाणा सरकार एक गंभीर मामले में सजायाफ्ता उम्रकैदी को 21 दिन की छुट्टी देकर जेल से घर ला रही है। हरियाणा सरकार के मंत्रियों पर रामरहीम का विशेष प्रभाव है और यह बात सार्वजनिक भी है। 

हरियाणा में चुनाव नहीं है, जबकि पंजाब में चुनाव हो रहा है और वहां फरवरी के तीसरे हफ्ते में मतदान है। ऐसे में यह आदमी चुनाव में कोई असर न डाल सके, फर्लो की शर्तों का उल्लंघन न कर सके, इसे भी निर्वाचन आयोग को देखना होगा। फर्लो देनी ही है तो पंजाब के चुनाव के बाद दी जानी चाहिए थी। 

(विजय शंकर सिंह)

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