Sunday 6 February 2022

प्रवीण झा - दक्षिण भारत का इतिहास - तीन (10)

       (चित्र: घायल एमजीआर अस्पताल में)

तमिल फ़िल्म आइकन एम जी आर को गोली क्यों मारी गयी? क्या चुनावी मुद्दा था? नहीं भी था, तो बन गया। 

जनवरी, 1967 में उस दिन मद्रास की जनता भारत-वेस्टइंडीज़ के मध्य टेस्ट-मैच देखने जा रही थी। कांग्रेस और डीएमके की चुनावी तैयारियाँ जोर-शोर से चल रही थी। माहौल गरम था, और अफ़वाह यहाँ तक थी कि के. कामराज की हत्या की साजिश चल रही है। 

उस दिन एम. जी. रामचंद्रन के घर पर एक फ़िल्म प्रोजेक्ट की मीटिंग चल रही थी, जब उनके मित्र राधा ने अपने बैग से पिस्तौल उठायी और सीधे सर पर गोली दाग दी। एम जी आर झुक गए, पर गोली कान से गुजरती गर्दन में घुस गयी। इसके बाद राधा ने स्वयं को भी गोली मार ली। 

यह खबर आग की तरह फैल गयी। ख़ास कर यह कि राधा पेरियार के आदमी हैं, और उन्होंने अन्नादुरइ के आदमी को गोली मार दी। यह बात बकवास थी। पेरियार कोई सुपारी-किलर नहीं थे, और ऐसी बेवक़ूफ़ी तो नहीं ही करते। 

पेरियार ने कहा, “ये दोनों अभिनेता फ़िल्म में तो एक-दूसरे पर गोली चलाते ही हैं, अब घर में भी शुरू हो गए? आज इस कारण मुझ पर और कामराज पर हमला किया जा रहा है। यह चुनाव है या कोई नौटंकी?”

बहरहाल अस्पताल में दोनों की गोलियाँ निकाली गयी। अस्पताल के बिस्तर से चुनाव लड़ रहे एमजीआर की तस्वीरें हर मंच पर लगा दी गयी। सिनेस्टार की यह तस्वीर डीएमके के लिए वोटों की बारिश लाने वाली थी।

संयोगवश, कामराज भी अस्पताल में एडमिट हो गए। उनसे जब पूछा गया कि आपके चुनाव का क्या होगा, तो उन्होंने कहा, “मैं अस्पताल में लेटे-लेटे चुनाव जीत सकता हूँ”

यह उनका ओवर-कॉन्फ़िडेंस था, और वह एक कॉलेज जाते युवक से चुनाव हार बैठे। वहीं एमजीआर और पूरी डीएमके भारी मतों से जीती।

जब राधा अस्पताल से निकले, और जेल गए तो उन्होंने अलग ही बात कही। उनके अनुसार एमजीआर ने उन पर हमला करना चाहा था, तो उन्होंने बंदूक छीन कर गोली दागी। बाद में उन्होंने कहा कि यह कुछ पैसे का मामला था, जो पिछली फ़िल्म का बकाया था। किसी भी स्थिति में यह पेरियार की साजिश नहीं थी। यह बात तो अन्नादुरइ को भी पता ही थी, और यह पूरा फ़िल्मी ड्रामा वोटों के लिए जान-बूझ कर जोड़ा गया। 

खैर, कामराज की हार के बाद जब पेरियार निराश बैठे थे, तो उनके द्वार पर एम करुणानिधि और नेदुंचेजियन के साथ अन्नादुरइ आए। पेरियार गुस्से में उठ कर खड़े हुए, तो वे दोनों झुक गए और उनका आशीर्वाद माँगा। 

अन्ना ने कहा, “पेरियार! हम अपनी यह जीत आपको समर्पित करने आए हैं। यह द्रविड़ मुनेत्र कड़गम आपके ही आदर्शों पर बनी। हमारे मध्य जो भी निजी समस्यायें आयी, उसके लिए मैं क्षमा माँगता हूँ। आप हमें आशीर्वाद दीजिए।”

अट्ठासी वर्ष के हो चुके पेरियार एक बार फिर पिघल गए। उन्होंने गुस्सा थूका और कहा, “अब कुर्सी मिल गयी है, तो अच्छा काम करो। लेकिन, तुमने यह चुनाव राजाजी की पार्टी के साथ मिल कर लड़ा। एक ब्राह्मणवादी पार्टी के साथ कितने दिन टिक पाओगे?”

पेरियार की बात सत्य निकली। जब शपथ-ग्रहण समारोह हुआ, वहीं से विवाद शुरू हो गया। राजाजी ने सभी विधायकों को ईश्वर का नाम लेकर शपथ लेने कहा, जो अन्ना के पार्टी सदस्यों ने मना कर दिया। राजाजी गठबंधन से अलग हो गए। 

डीएमके सरकार चलती रही, मगर अचानक अन्नादुरइ की गले के कैंसर की वजह से मृत्यु हो गयी। वह सिर्फ़ दो वर्ष ही मुख्यमंत्री रह सके। उनकी मृत्यु पर जो भीड़ उमड़ी वह गिनीज़ बुक में सबसे बड़ी शवयात्रा रूप में दर्ज़ हुई। इस असमय मृत्यु के साथ ही वह खेल भी शुरू हो गया, जो आज तक चल रहा है। मद्रास का राजा कौन? 

सबसे वरिष्ठ नेता नेदुंचेजियन को ही सबका समर्थन था। वही कार्यकारी मुख्यमंत्री बने थे। पेरियार से एमजीआर तक तैयार थे।

तभी उस रात एमजीआर के रामावरम गार्डन हाउस में उनके पुराने दोस्त मिलने आए और कहा, “तुम्हें याद है जब तुम फ़िल्मों में संघर्ष कर रहे थे, तो किसकी कहानियों ने तुम्हें नायक बनाया?”

“यह मैं कैसे भूल सकता हूँ करुणानिधि? तुम्हारा यह कर्ज तो मुझ पर आजीवन रहेगा”

“आजीवन नहीं रहेगा, अगर आज यह कर्ज उतार दो। मुझे मद्रास का मुख्यमंत्री बना दो।”
(क्रमश:)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

दक्षिण भारत का इतिहास - तीन (9)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/02/9.html 
#vss 

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