(चित्र: एमजीआर और प्रभाकरण)
यह पेरियार का अंतिम वर्ष था। दिसंबर, 1972 में राजगोपालाचारी की मृत्यु पर वह उनके शव के सामने फूट-फूट कर रो रहे थे। पेरियार को इससे पूर्व इस तरह द्रवित होते गांधी की मृत्यु पर देखा गया था। जबकि पेरियार आजीवन इनसे ही लड़ते रहे। ठीक अगले वर्ष 23 दिसंबर, 1973 में अपने आखिरी सार्वजनिक वक्तव्य में पेरियार ने कहा,
“हमने स्वाभिमान आंदोलन पाँच चीजों के अंत के लिए शुरू किया था- ईश्वर, गांधी, कांग्रेस, धर्म और ब्राह्मण। गांधी मर गए। कांग्रेस टूट गया। ईश्वर की स्थिति हास्यास्पद है। जब भी हम धर्म में बदलाव की बात करते हैं, ब्राह्मण आज भी अड़ंगा लगाते हैं। उन्हें बदलना होगा।”
अगले दिन 94 वर्ष की अवस्था में पेरियार चल बसे। तमिलनाडु इतिहास का पटाक्षेप हुआ।
एमजीआर ने इंदिरा गांधी को चिट्ठी लिख कर करुणानिधि और उनके मंत्रियों के भ्रष्टाचार का विवरण दिया। वह दल में कोषाध्यक्ष रहे थे, तो उनके पास कई गुप्त दस्तावेज भी थे। भ्रष्टाचार तो खैर चल ही रहा था, और कुछ नेता महज कुछ महीनों में अकूत संपत्ति हासिल कर चुके थे। मगर इंदिरा गांधी ही कई आरोपों में घिरती चली गयी। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन शुरू हो गया था। 25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी।
स्तालिन एक साक्षात्कार में कहते हैं कि इंदिरा गांधी ने करुणानिधि से कहा, “आपको आपातकाल के समर्थन करने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन, अगर आप विरोध करेंगे तो आपकी सरकार बर्खास्त कर दी जाएगी।”
करुणानिधि उस समय वयोवृद्ध नेता के. कामराज से मिलने गए। उन्होंने कहा, “भारत में अब कहीं लोकतंत्र नहीं बचा। सिर्फ़ तमिलनाडु में बचा है। इसे संभाल कर रखो। तुम मुख्यमंत्री बने रहो।”
उसी वर्ष गांधी जयंती के दिन कामराज चल बसे। करुणानिधि ने चंडीगढ़ में नज़रबंद जयप्रकाश नारायण को चिट्ठी लिखी कि वह आपातकाल का विरोध करने जा रहे हैं, अन्यथा पेरियार, अन्नादुरइ और कामराज की आत्मा उन्हें माफ़ नहीं करेगी।
30 जनवरी, 1976 को मद्रास के मरीना बीच पर करुणानिधि ने एक विशाल रैली कर इंदिरा गांधी का विरोध किया। अगले ही दिन उनकी सरकार गिरा दी गयी, डीएमके के नेताओं को गिरफ़्तार किया गया, करुणानिधि पर भ्रष्टाचार की जाँच के लिए सरकारिया कमीशन बिठा दिया गया। उनके बेटे स्तालिन और युवा नेता मुरासोली मारन को खूब पीटा गया। स्तालिन आज भी चेहरे पर अपने उस दाग को आपातकालीन धारा के नाम पर ‘मीसा निशान’ कहते हैं।
जब डीएमके के नेता जेल में बंद थे, एमजीआर ने इंदिरा गांधी से संधि कर ली। उन्होंने जनता के सामने करुणानिधि सरकार के भ्रष्टाचार को खूब उभारा। नतीजतन 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी भले हारी, एमजीआर ने भारी जीत हासिल की।
उन्हीं दिनों पड़ोसी देश श्रीलंका में गुरिल्ला-युद्ध चल रहे थे। एमजीआर की तो वह जन्मभूमि थी। कहा जाता है कि एमजीआर ने स्वयं एक युवा गुरिल्ला योद्धा प्रभाकरण को चुना, और उसे धन भी मुहैया कराया। प्रभाकरण ने एक-एक कर पहले संगठन के उदारवादी नेताओं को रास्ते से हटाया, और हिंसा-समर्थकों को गुट में रखा। एमजीआर के समय लिट्टे की ताकत बढ़ती गयी। एमजीआर ने भी सत्ता में बने रहने के सभी तिकड़म लगाए।
एक सुभाषी व्यक्ति एमजीआर ने इंदिरा गांधी की हार के बाद प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से हाथ मिला लिया। इसे इंदिरा गांधी ने पीठ में छुरा भोंकना माना। 1980 में वापस गद्दी संभालते ही उन्होंने एमजीआर सरकार को बर्खास्त कर दिया, और फिर से चुनाव की घोषणा की। अब इंदिरा गांधी वापस करुणानिधि के साथ हुई।
मगर एमजीआर एक करिश्माई नेता और नामी अभिनेता थे, तमिलनाडु की धड़कन थे। करुणानिधि दस वर्ष तक विपक्ष में बैठे एमजीआर के घोटाले उजागर करते रहे, जिनमें कुछ गंभीर भी थे, मगर वह उनकी सत्ता नहीं हिला सके। एमजीआर जब तक जीए, गद्दी पर रहे। उन्होंने तमिलनाडु के लिए कई कार्य किए, लेकिन उनका एक स्वप्न अधूरा रह गया।
1987 में भारतीय वायु सेना के विमान ने जाफ़ना (श्रीलंका) के सुतुमलइ अम्मन मंदिर से प्रभाकरण को उठाया और दिल्ली के होटल अशोक लाया गया। वहाँ प्रभाकरण को शांति समझौते पर हस्ताक्षर के लिए दबाव डाला गया। प्रभाकरण ने कहा कि यह निर्णय जनता करेगी, मैं नहीं।
उस समय श्रीलंका में राजदूत जे. एन. दीक्षित ने धमकाया, “तुम एक मामूली आदमी हो। तुम्हें हम यूँ ही मसल देंगे। तुम यहाँ से जिंदा बच कर भी तभी जा पाओगे, अगर हम चाहेंगे।”
प्रभाकरण ने कहा, “आप अन्ना को यहाँ बुलाइए। मुझे पहले उनसे बात करनी है।”
दीक्षित ने पूछा, “कौन से अन्ना?”
“एमजीआर!”
एक द्रविड़नाडु का स्वप्न। एक तमिल ईलम (तमिल देश) का स्वप्न। किसी न किसी रूप में यह पेरियार, अन्नादुरइ, एमजीआर, करुणानिधि सबका साझा स्वप्न था।
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
दक्षिण भारत का इतिहास - तीन (13)
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