(चित्र: कोलंबा में नौसेना गार्ड द्वारा राजीव पर हमला)
“मैंने जैन कमीशन को कहा कि 1983 से इंदिरा गांधी और तमाम तमिल नेता लिट्टे को सहयोग देते रहे हैं। सिर्फ़ मुझे ही क्यों बलि का बकरा बनाया जा रहा है?”
- एम करुणानिधि
एम जी रामचंद्रन का जन्म कैंडी (श्रीलंका) में हुआ। उन दिनों श्रीलंका का उत्तरी और पूर्वी हिस्सा तमिल-बहुल था। उनके भारतीय तमिल राज्य से भी अच्छे संपर्क रहे, और वैवाहिक रिश्ते, धार्मिक तीर्थयात्रा आदि नियमित थे। श्रीलंका के अन्य हिस्सों में सिंहल बौद्ध, ईसाई और मुसलमान पसरे हुए थे।
सिंहलों को यह तमिल ‘गेत्तो’ संस्कृति कभी पसंद नहीं रही, क्योंकि वे तमिल राष्ट्रवाद और स्वतंत्र अस्तित्व की बात करते थे। उनकी भिन्न-भिन्न सरकारों ने तमिल क्षेत्रों में सिंहल बस्तियाँ बसाने का निर्णय लिया, जिससे कि संजातीय समीकरण संतुलित हो। 1956 में एक तमिल इलाके में भूमिहीन सिंहलों को जमीन दी गयी। कुछ ही दिनों में अफ़वाह फैली कि तमिलों ने किसी सिंहल लड़की का बलात्कार कर उसे नग्न घुमाया। परिणाम यह हुआ कि सिंहलों ने तमिलों की बस्ती जला दी, और डेढ़ सौ तमिल मारे गए। अगले दो वर्षों में लगभग हज़ार से अधिक तमिलों की हत्यायें हुई, और तमिलों ने भी जवाबी हमले किए।
उस समय भारत के तमिलों ने जब इन संघर्षों के विषय में सुना तो वे उन्हें यथासंभव सहयोग देने लगे। कई श्रीलंकाई तमिल भाग कर मद्रास और अन्य जिलों में भी बस गए। उन्होंने तमिल गुरिल्ला संगठन बनाने शुरू किए, जो सिंहलों के हमले का मुकाबला करते। 1974 में श्रीलंकाई तमिलों ने अपना एक साझा राजनैतिक दल ‘तमिल यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट’ बना लिया, और 1976 में एक स्वायत्त ‘तमिल ईलम’ (तमिल राज्य) की माँग रखी। अगले वर्ष चुनाव में उन्हें अपने क्षेत्रों में जीत मिली, और वे संसद में ठीक-ठाक प्रतिनिधित्व लेकर पहुँचे।
उसी दौरान वेल्लुपलइ प्रभाकरण नामक युवक ने लोकतांत्रिक हल के बजाय हिंसक हल को चुना, और एक लिट्टे नामक संगठन बनाने की सोची। प्रभाकरण के पास धन की कमी थी, जिसके लिए उसने भारत और अन्य देशों में बसे तमिलों से संपर्क साधने शुरू किए। मगर इसके लिए कुछ ठोस कारण की ज़रूरत थी, जिससे सिद्ध हो कि तमिल खतरे में हैं।
1981 में तमिल यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट की एक रैली में दो सिंहल पुलिसकर्मियों पर हिंसक हमला हुआ, जिसमें वे मारे गए। सिंहल पुलिस दल-बल के साथ तमिलों से बदला लेने आयी। उन्होंने ताबड़तोड़ गोलियाँ चलायी, पार्टी का मुख्यालय तोड़ दिया। सबसे बड़ी घटना यह हुई कि पुलिस ने एशिया के सबसे बड़े पुस्तकालयों में एक जाफ़ना पुस्तकालय जला दिया। हज़ारों प्राचीन पांडुलिपियाँ भस्म हो गयी।
माना जाता है कि उस समय तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम जी रामचंद्रन इस हिंसा से आहत हुए, और तमिलों की लड़ाई को सहयोग देने का निर्णय लिया। उन्होंने कई श्रीलंकाई नेताओं से संपर्क किया, जिनमें प्रभाकरण नामक युवक उन्हें सबसे दमदार लगा। एमजीआर ने तमिलनाडु विधानसभा में घोषणा कर दी कि वह इस संगठन को चार करोड़ का अनुदान दे रहे हैं। यह तो बाक़ायदा सरकारी फंडिंग थी। तमाम तमिल डायस्पोरा अलग से भी करोड़ों दे रही थी। इसके अतिरिक्त इंदिरा गांधी ‘रॉ’ के सहयोग से लिट्टे से संपर्क में थी।
मान्यता है कि लिट्टे आत्मघाती वस्त्र (suicide vest) पहन कर हमला करने वाले पहले उग्रवादी संगठनों में से थे। ख़ास कर महिलाएँ इसके लिए तैयार की जाती। हर लिट्टे उग्रवादी अपने गले में एक ‘साइनाइड कप्पा’ भी रखता, जो पकड़े जाने पर चाट लेता। शहादत को प्रधानता देने वाले इस संगठन ने आतंक का स्वरूप ही बदल दिया।
आखिर श्रीलंका के राष्ट्रपति जयवर्धने ने भारत से सीधे बात-चीत का निर्णय लिया। यह बात अब यूँ भी छुपी नहीं थी कि इस पूरे संगठन और ‘तमिल ईलम’ की डोर भारत से खिंची जा रही थी। 1971 में भारत बांग्लादेश को सफल रूप से तोड़ चुका था। उस बनिस्बत श्रीलंका मामूली देश था।
1987 की जुलाई में राजीव गांधी और जयवर्धने के मध्य एक समझौता तय हुआ। इस पर सहमति के लिए तमिल नेताओं, एम जी रामचंद्रन, और प्रभाकरण, सभी से बात की गयी। डील यह थी - ‘तमिल-बहुल श्रीलंकाई क्षेत्रों को एक प्रांत बनाया जाएगा, जहाँ एक जनमत-संग्रह किया जाएगा कि वे स्वायत्त प्रांत बनना चाहते हैं या नहीं। इसके बदले प्रभाकरण और अन्य उग्रवादी संगठन आत्मसमर्पण कर देंगे। भारत की एक शांति सेना इस प्रक्रिया में दोतरफ़ा मदद करेगी।’
जुलाई के आख़िरी हफ़्ते में जब प्रभाकरण को दिल्ली में धमकाया जा रहा था, एम जी आर वहाँ आए।
वह प्रभाकरण को देख कर मुस्कुराए और कहा, “यह मेरा छोटा भाई है। मैं इसे समझाता हूँ।”
उनके मध्य क्या बात हुई, यह सार्वजनिक नहीं है। यूँ भी एमजीआर की उसी वर्ष मृत्यु हो गयी। मगर यह निष्कर्ष निकालना कठिन नहीं कि उन्होंने प्रभाकरण को झुकने से मना कर दिया। प्रभाकरण ने इस समझौते को एक धोखे की तरह ही देखा।
राजीव गांधी अगले दिन हस्ताक्षर करने कोलंबो के लिए निकलने वाले थे, जब प्रभाकरण को उनके पास लाया गया। राजीव गर्मजोशी से मिले, और जब प्रभाकरण वापस जा रहे थे तो उन्होंने अपने पुत्र को आवाज़ दी, “राहुल! मेरा बुलेटप्रूफ़ वेस्ट लेकर आना”
प्रभाकरण को वह तोहफ़ा देते हुए कहा, “अपना ध्यान रखना दोस्त। यह काम आएगी।”
राजीव गांधी यह नहीं जानते थे कि जिसे वह ‘बुलेटप्रूफ़ वेस्ट’ दे रहे हैं, उसके लोग एक दिन ‘सुसाइड वेस्ट’ पहन कर उनकी जान ले लेंगे।
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
दक्षिण भारत का इतिहास - तीन (14)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/02/14.html
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