जब सरकारे ऐसे आदेश देती हैं जिनको कानूनी रूप से पालन करना मुश्किल हो जाता है तो पुलिस को उन मूर्खतापूर्ण गैर कानूनी रास्तों का अनुसरण करना पड़ता है जो प्रथम दृष्टया ही हास्यास्पद और दुर्भावनपपूर्ण लगती हैं। नोयडा सेक्टर 58 में जिस पार्क में सरकार नमाज़ रोकना चाहती है, को कल पुलिस ने पानी से भरवा दिया। यही गनीमत मानिये कि उसे जगह जगह खोद नहीं दिया गया। भारी पुलिस बल का बंदोबस्त ऊपर से किया गया। कुछ गिरफ्तार हुए तो कुछ ने नमाज़ पढ़ने पढ़ाने से मना कर दिया। दिन टल गया। सब कुछ शांति से निपट गया। पुलिस को तो सतर्क रहना होगा और रहेगी भी। अखबार और टीवी वाले उस खबरों की सनसनाहट की आशा लिये निराश लौटे। ग़ालिब के शब्दों में मीडिया के इस दुख को, कि जब वह सनसनी ढूंढने निकला हो और कोई खबर न मिले तो इसे इससे बेहतर तरीके से व्यक्त नहीं किया जा सकता है,
थी खबर गर्म कि ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्जे,
देखने हम भी गये, पै तमाशा न हुआ !!
अब अगले शुक्रवार को क्या होता है वह तो अगले शनिवार को ही पता लगेगा।
यह नहीं पता कि सरकार को यह इलहाम कहाँ से हुआ कि राष्ट्र निर्माण के लिये नोयडा सेक्टर 58 के पार्क में हो रही नमाज़ को रोकना ज़रूरी है। फिर भी सरकार का आदेश हुआ तो, आनन फानन में सचिवालय सक्रिय हो गया है। सचिव और सचिवालय की सबसे बड़ी खूबी और क्षमता यही है कि वह हर आदेश का तर्कपूर्ण कागज़ तुरन्त तैयार कर लेता है । ब्रिटिश राज ने दो सौ साल के शासन में देश को खूब लूटा। पर हर लूट उन्होंने कानून बना कर की । कानून शब्द कभी कभी निरुत्तर कर देता है। जब कागज़ों के पुलिंदे खंगाले जाने लगे तो, पता चला 2009 का एक सुप्रीम कोर्ट का आदेश है जिसके अनुसार किसी भी सार्वजनिक स्थल पर धार्मिक गतिविधियां नहीं होनी चाहिये। यह आदेश भी सुप्रीम कोर्ट के उसी निर्देश के अंतर्गत जारी किया गया है।
अब जरा सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्णय के बारे में जानकारी कर लें। सुप्रीम कोर्ट दिनांक 29 सितंबर 2009 को अहमदाबाद हाईकोर्ट के एक निर्णय की अपील पर एक फैसला सुनाती है कि सार्वजनिक जगहों पर अतिक्रमण कर के बने हुए मंदिर मस्जिद और दरगाहों को सरकार हटा लें ताकि लोगों को अतिक्रमण से मुक्ति मिले। इस प्रकरण की पृष्ठभूमि यह है कि टाइम्स ऑफ इंडिया के अहमदाबाद संस्करण में 2 मई 2006 के अखबार में एक समाचार छपता है कि अहमदाबाद शहर में कुल 1200 मंदिर, 260 इस्लामी इबादतगयाहें सार्वजनिक स्थलों पर अतिक्रमण कर के बनायी गयी हैं। जिससे लोगों को आवागमन में दिक्कतें हो रही हैं। इन देवस्थानों के कारण यातायात अवरुद्ध रहता है, और दुर्घटनाओं की संभावना बनी रहती है। पुलिस पर भी यातायात नियंत्रित करने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अखबार में छपी इस खबर का हाईकोर्ट अहमदाबाद ने स्वतः संज्ञान लिया और इस मामले में कानूनी कार्यवाही शुरू की। अदालत ने 14 लोगों को नोटिस जारी की और एक अंतरिम आदेश जारी किया कि, सभी पक्षकार अपने अपने उपासना स्थल जो अतिक्रमण कर के बनाये गए हैं, हटा लें और अतिक्रमण हटा कर वस्तुस्थिति से हाईकोर्ट अहमदाबाद को अवगत करावें।
हाईकोर्ट के इस आदेश पर रोक लगाने के लिये सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी। सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार के एडीशनल सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने यह तर्क रखा कि हाईकोर्ट ने पहले नोटिस दे कर पक्षकारों को अदालत में अपना पक्ष रखने को कहा, फिर यह अंतरिम आदेश भी जारी कर दिया। अंतरिम आदेश की प्रकृति भी अंतिम आदेश की तरह है अतः हाईकोर्ट के उक्त अंतरिम आदेश को रोक दिया जाय और सुप्रीम कोर्ट सभी पक्ष को सुनकर अंतिम निर्णय दे। तब सुप्रीम कोर्ट ने अहमदाबाद हाईकोर्ट के उक्त आदेश को रोक दिया और मामले की सुनवायी की।
31 जुलाई 2009 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना निर्णय सुनाया और निम्न निर्देश जारी किये,
* किसी भी दशा में सरकार किसी भी अनधिकृत स्थान, सार्वजनिक स्थल, सड़क, सार्वजनिक पार्क, या अन्य सार्वजनिक स्थान पर किसी मंदिर, मस्ज़िद, गुरुद्वारा, चर्च आदि के निर्माण के लिये अनुमति नहीं देगी।
* यदि किसी धर्मस्थल का किसी अनधिकृत स्थल पर निर्माण किया जा रहा है तो उसे उक्त धर्मस्थल विशेष के बारे में अध्ययन कर के उसे रुकवाने के लिये राज्य सरकारें और केंद्र प्रशासित क्षेत्र अग्रिम आवश्यक कार्यवाही करें।
सुप्रीम कोर्ट के यह निर्देश भारत सरकार द्वारा इसी आशय के दिये गए हलफनामे पर आधारित था, जो सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से एकत्र सूचना और उनकी राय पर आधारित था।
नोयडा के सेक्टर 58 के सार्वजनिक पार्क में होने वाली नमाज़ को रोकने के लिये सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को आधार बनाया गया है। इस फैसले के दिये निर्देश के अनुसार, सेक्टर 58 के सार्वजनिक पार्क में धार्मिक गतिविधियां रोकी जा सकती है। इसी आदेश के अनुपालन के लिये नोयडा प्रशासन ने सभी 23 कम्पनियों को, जिनके कर्मचारियों के बारे में कहा जाता है कि वे नमाज़ पढ़ने जाते हैं यह नोटिस जारी करके यह निर्देश दिया गया कि वे अपने कर्मचारियों को यह हिदायत दें कि वे सार्वजनिक पार्क में नमाज़ न पढ़े। कम्पनियों ने सरकार का आदेश से अपने कर्मचारियों को अवगत करा दिया। लेकिन कम्पनियों को यह अधिकार नहीं प्राप्त है कि वह किसी को किसी स्थान विशेष पर उपासना करने से रोक दें।
कल 28 दिसंबर को शुक्रवार था। उम्मीद थी कि लोग भारी संख्या में नमाज़ के लिये सेक्टर 58 के पार्क में जुटेंगे। पर ऐसा नहीं हुआ और मुसलमानों ने भी ऐसी जगह जहां नमाज़ की अनुमति नहीं है, नमाज़ पढ़ने से मना कर दिया। पर फिर भी कुछ लोग नमाज़ पढ़े, कुछ हिरासत में भी लिये गये और सब कुछ शांति से निपट गया। खबर है कि तीन कम्पनियों ने नमाज के लिये जगह भी उपलब्ध कराने की बात की है और उन कम्पनियों ने अपनी छतों पर नमाज़ के लिये जगहें भी दी हैं।
यह आदेश बिल्कुल सही है कि कोई भी उपासना स्थल किसी अनधिकृत और अतिक्रमण कर के कब्ज़ियाये गये ज़मीन पर नहीं होना चाहिये। पर शायद की कोई शहर हो जहां पर अनधिकृत रूप से बने मंदिर, दरगाहें आदि न मौजूद हों। दरगाहें तो रेलवे ट्रैक के बीच मे भी मैंने कई जगहों पर देखीं है। कुछ तो धार्मिक आस्था और कुछ धर्म का भय इन अतिक्रमण को मान्यता दिलाते हुए इन्हें बनाये रखता है। कभी जब सड़कें चौड़ी करनी होती हैं, या नया रेलवे ट्रैक बनाना होता है या फ्लाई ओवर पुल बनाना होता है तो अवैध बने ये उपासनास्थल कानून व्यवस्था की समस्या उतपन्न कर देते हैं।
नोयडा सेक्टर 58 के पार्क में नमाज़ पर रोक के साथ ही गौतम बुद्ध नगर के ही ग्रेटर नोयडा शहर में सेक्टर 37 में भी एक पार्क में एक धर्मिक आयोजन को लेकर विवाद खड़ा हो गया। वहां कोई नमाज़ का मसला नहीं था, बल्कि वहां मामला भागवत कथा का था। भागवत कथा को भी इसी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अंतर्गत रोका गया। यह आदेश अगर सचमुच में नोयडा के सेक्टर 58 के पैटर्न और इरादे के आधार पर लागू किया गया तो अक्सर होने वाले धार्मिक समारोह, दुर्गा पूजा, गणपति पूजा, रामलीलाएं , रासलीलाएं, भागवत या रामकथा के आयोजन, भी बाधित होंगे या इन्हें लेकर आयोजकों और प्रशासन में विवाद भी उठेगा। क्योंकि अधिकतर सार्वजनिक पूजा पंडाल और कथा वार्ताएं अक्सर पार्कों , यातायात द्वीपों, चौड़ी सड़कों के एक किनारे को घेर कर ही की जाती हैं। सार्वजनिक पार्क तो ऐसे आयोजनों की सबसे प्रमुख पसंद होते हैं। सरकार कोई ऐसा आदेश या निर्देश लिखित रूप से दे भी नहीं सकती कि केवल जुमा की नमाज़ को ही रोका जाए और शेष आयोजनों को होने दिया जाय। ऐसा आदेश, आदेश देने वाला भी समझता है कि अवैध आदेश है और वह अदालत में चैलेंज हो जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का 2009 का यह आदेश उचित है और इसका पालन, बेहतर शहरी जीवन, प्रदूषण रहित वातावरण, और कानून व्यवस्था के लिहाज से सरकारों द्वारा किया जाना चाहिये। धार्मिक गतिविधियों को उनके लिये निर्दिष्ट स्थान में ही किया जाना चाहिये। सरकार को यह भी चाहिये कि वह उपासनास्थल के निर्माण या धार्मिक गतिविधियों के लिए विभिन्न धर्मों और आस्था के अनुसार स्थान भी उपलब्ध करावे। सार्वजनिक पार्कों के लिये, क्या करें क्या न करें के नियम बनाये जांय, उन्हें पार्को के गेट पर प्रदर्शित किया जाय, नियमानुसार प्रवेश और पार्को का उपयोग हो ताकि पार्क भी सुव्यवस्थित रहें और उनका दुरूपयोग भी न हो। यातायात द्वीपों, और सड़कों को भी किसी भी धार्मिक पर्व पर या विवाह आदि उत्सवों में उनका अतिक्रमण न होने दें । साथ ही अतिक्रमण कर के अवैध बने स्थलों को भी सम्मान पूर्वक कहीं स्थानांतरित करने पर विचार किया जाय। वैसे सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का पालन आसान नहीं है। इसके लिये एकं दृढ़ इच्छाशक्ति वाली सरकार की ज़रूरत हैं अन्यथा इस आदेश का अनुपालन समस्याओं का समाधान कम, समस्याएं अधिक पैदा करेगा।
© विजय शंकर सिंह
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