जब कभी कोई सर्जिकल स्ट्राइक की बात करे तो 16 दिसम्बर 1971 का दिन याद कर लीजिएगा। याद कर लीजिएगा, भरतीय सेना के शौर्य, पराक्रम, रणनीति औऱ आत्मविश्वास को। याद कर लीजिएगा, बांग्लादेश के उन निवासियों को जिन्होंने सैनिक तानाशाही और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ बीसवीं सदी का एक महान जन आंदोलन खड़ा कर दिया था। याद कर लीजिएगा, इंदिरा जैसी महान शख्सियत को जिसने उन कठिन समय मे अपनी कूटनीतिक कौशल का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और एक विश्व नेत्री के रुव में प्रतिष्ठित हुयी। याद कर लीजिएगा बाबू जगजीवन राम को जो उस युद्ध के समय देश के रक्षामंत्री थे । नेतृत्व की परख संकटकाल मे ही होती है।
ऐसे गौरवपूर्ण क्षण विश्व के सैन्य इतिहास में बहुत ही कम आते हैं। आज उसी गौरवपूर्ण क्षण की याद में विजय दिवस मनाया जाता है, जब 90,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिक भूमिशस्त्र के साथ अपनी बेल्ट उतार कर युद्दबन्दी के रूप में खड़े थे और भारतीय सेना के ले.जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने पाकिस्तानी सेना के ले.जनरल नियाज़ी के साथ जब आत्मसमर्पण के कागज़ों पर उनके हस्ताक्षर कराने के लिये ढाका में अस्थायी रूप से बनाये भारतीय सेना के कमांड रूम में प्रवेश किया तो यह खबर उस दिन दुनिया की सबसे बडी ब्रेकिंग न्यूज़ थी। पराजित और हताश जनरल नियाज़ी रुंआसे थे, पर वे क्या करते पराजय सभी को रुआंसी बना भी तो देती है।
आज उस घटना के 47 साल हो चुके हैं औऱ तब से गंगा औऱ ब्रह्मपुत्र में न जाने कितना पानी बह गया है, दुनिया की राजनीति और कूटनीति में कितना परिवर्तन आ गया है पर गौरव के क्षण कुंदन की तरह होते हैं कभी मलिन नहीं होते हैं। वे सदैव प्रेरणादायक बने रहते हैं।
1971 के इस युद्ध के सभी ज़ीवित या शहीद हुये सैनिको का वीरोचित स्मरण।
© विजय शंकर सिंह
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