Wednesday, 26 December 2018

सुबोध और संजली हत्याकांड, बुलंदशहर और आगरा की दो हत्याएं और पुलिस विवेचना के दो रंग / विजय शंकर सिंह

आगरा के संजली हत्याकांड का अभियुक्त उसके घर का चचेरा भाई निकला है। आगरा के संजली की हत्या का रहस्य खुल गया है और पुलिस ने मुल्ज़िम को गिरफ्तार कर लिया है। यह पुलिस की एक उपलब्धि है। उसकी अच्छी सफलता है। जब अभियुक्त नामजद न हों और अज्ञात हों तब विवेचना में मेहनत लगती है और काफी छानबीन करनी पड़ती है। ऐसे मामलों को हम ब्लाइंड मर्डर कहते हैं। पर जब ब्लाइंड मर्डर खुलता है तो सुबूत अपने आप सारी कहानी कहने लगते हैं और ऐसी हत्याओं में अक्सर सज़ायाबी भी हो जाती है। आगरा पुलिस को को इस सनसनीखेज और जघन्य हत्याकांड का रहस्य खोलने के लिये बधाई।

लेकिन अभी एक और महत्वपूर्ण हत्या जिसके मुल्ज़िम सबको पता हैं, नामजद हैं और वह हत्या किसी प्रेम प्रसंग के विफल होने की कुंठा का परिणाम भी नहीं है, बल्कि उद्दंड राजनीति की एक बानगी है और भीड़ तथा अराजक हिंसा का एक दुष्परिणाम है, के मुल्जिमों का गिरफ्तार होना अभी बाकी है। वह हत्या है इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की जो 3 दिसम्बर 2018 को बुलंदशहर के स्याना थाना क्षेत्र में ड्यूटी पर भीड़ द्वारा पथराव और गोली मार कर की गयी है। उस हत्या के 27 नामजद मुल्ज़िमान में दो तो बजरंग दल के पदाधिकारी हैं, शेष उनसे जुड़े। पर पुलिस द्वारा दर्ज कराए गए मुक़दमे में नामज़दगी के बावजूद आज तक मुख्य मुल्ज़िम #योगेशराज जो बजरंगदल का संयोजक है, आज तक घटना के 25 दिन बाद भी, न तो पकड़ा जा सका न ही वह अदालत में हाज़िर हुआ। इससे साफ दिखता है कि अभियुक्त किसी भी प्रकार के दबाव में नहीं है और वे अपने राजनीतिक आकाओं द्वारा निश्चिंत कर दिये गए हैं।

आगरा की पुलिस, एक अज्ञात हत्या का राज़ खोल देती है, और बुलंदशहर की पुलिस अपने ही एक सहकर्मी के हत्यारे को जानते, पहचानते और नामजद होते हुये भी गिरफ्तार नहीं करती है तो, इसे क्या कहा जाय ? यह पुलिस की नालायकी नहीं है यह पुलिस पर राजनीतिक हस्तक्षेप का दुष्परिणाम है। सरकार, को आगरा के संजली हत्याकांड के अभियुक्तों को पकड़ने देने में कोई आपत्ति नहीं थी। क्योंकि वह हत्या का एक ऐसा मामला था, जहां अभियुक्तों की गिरफ्तारी किये जाने पर ,  सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक एजेंडे पर कोई असर नहीं पड़ता है। लेकिन बुलंदशहर हिंसा तो राजनीतिक एजेंडे का एक सक्रिय क्रियान्वयन था, यह अलग बात है कि लोग समझदार निकले और दंगा भड़काने की साज़िश विफल हो गयी। विवेचना के दौरान जब राजनीतिक एजेंडे के क्रियान्वयन से देश की सबसे प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई नहीं बच सकी तो, ज़िला पुलिस के बारे में क्या कहा जाय !

© विजय शंकर सिंह

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